मनदीप जैन
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में हुई दिल्ली हिंसा के एक पीड़ित को उस मामले
में हस्तक्षेप करने की अनुमति देने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र ने सीएए विरोधी प्रदर्शनों के
दौरान कार्यकर्ता हर्ष मंदर के कथित घृणा भाषणों के मुद्दे को उठाया है। वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया और कहा कि दंगा
पीड़ित हर्ष मंदर के मामले में हस्तक्षेप करना चाहता है जिस पर शुक्रवार को सुनवाई होनी है। प्रधान न्यायाधीश ने
वकील से कहा, ‘‘हम आपको हस्तक्षेप करने नहीं देंगे।’'गोंजाल्विस ने कहा कि दंगा पीड़ित ने मंदर की कथित घृणा
भाषण की वीडियो देखी थी और इसे रिकॉर्ड में रखना चाहते हैं। सीजेआई ने कहा, ‘‘हमने सॉलिसिटर जनरल से
इसे रिकॉर्ड में रखने के लिए कहा था। हमें इस सुनवाई में आपकी जरूरत नहीं है।’'जब गोंजाल्विस ने कहा कि वह
दिल्ली हिंसा मामले में मंदर की ओर से उच्च न्यायालय में पेश हुए थे तो इस पर पीठ ने कहा, ‘‘आप उनकी यहां
भी पैरवी कर सकते हैं।’'दिल्ली पुलिस ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में मंदर के खिलाफ एक हलफनामा दाखिल
किया था और उच्चतम न्यायालय तथा उसके न्यायाधीशों के खिलाफ कटाक्ष करने वाली कथित ‘‘अपमानजनक
टिप्पणियों’'के लिए उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया था। केंद्र ने उच्चतम
न्यायालय में आरोप लगाया था कि कथित घृणा भाषणों के लिए कुछ भाजपा नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज
करने का अनुरोध कर रहे मंदर ने खुद शीर्ष न्यायालय, सरकार और संसद के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां की
थी। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने हलफनामा दाखिल किया। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र के आरोपों को गंभीरता से
लिया और न सिर्फ मंदर के कथित नफरत भरे भाषण के मुद्दे का निपटारा होने तक उनकी वकील करूणा नंदी को
सुनने से इनकार कर दिया, बल्कि मंदर की याचिका अपने पास ही रखी। मंदर ने भी हिंसा के सिलसिले में
न्यायालय के समक्ष एक अलग याचिका दायर की थी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पिछले साल 16 दिसंबर
को जामिया मिल्लिया इस्लामिया और सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान मंदर द्वारा दिए गए कुछ कथित घृणा
भाषणों का उल्लेख किया था।