निर्भया के चारों दोषियों को फांसी, मां ने कहा ‘अब इंसाफ मिला’

asiakhabar.com | March 20, 2020 | 5:28 pm IST
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संजय चौधरी

नई दिल्ली। दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को एक महिला के साथ हुए सामूहिक बलात्कार
एवं हत्या के मामले के चारों दोषियों को शुक्रवार की सुबह साढ़े पांच बजे फांसी दे दी गई। इसके साथ ही देश को
झकझोर देने वाले, यौन उत्पीड़न के इस भयानक अध्याय का सात साल तक चली कानूनी लड़ाई के बाद अंत हो
गया। मुकेश सिंह (32), पवन गुप्ता (25), विनय शर्मा (26) और अक्षय कुमार सिंह (31) को सुबह साढ़े पांच
बजे फांसी के फंदे पर लटकाया गया। इस मामले की 23 वर्षीय पीड़िता को ‘‘निर्भया’’ नाम दिया गया था जो
फिजियोथैरेपी की छात्रा थी। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अपनी बेटी को आखिरकार न्याय मिलने से राहत महसूस
कर रहे निर्भया के माता-पिता ने कहा कि वे ‘‘भारत की बेटियों के लिए अपनी लड़ाई’’ जारी रखेंगे। रातभर जागने
के बाद निर्भया की मां आशा देवी ने दोषियों को फांसी दिये जाने के बाद अपने आवास पर पत्रकारों से कहा, ‘‘हमें
आखिरकार न्याय मिला। हम भारत की बेटियों के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। न्याय में देरी हुई लेकिन न्याय
मिला।’’ निर्भया मामले के दोषियों को फांसी दिये जाने को ‘‘ न्याय की जीत’’ बताते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने
शुक्रवार को कहा कि हमें ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना है जहां ध्यान महिला सशक्तीकरण, समानता और अवसर
प्रदान करने पर हो।दक्षिण दिल्ली में चलती बस में निर्भया के साथ छह व्यक्तियों ने सामूहिक बलात्कार करने के
बाद उसे बुरी तरह पीटा, घायल कर दिया और सर्दी की रात में चलती बस से नीचे सड़क पर फेंक दिया था। 16
दिसंबर 2012 को हुई इस घटना ने पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया था और निर्भया के लिए न्याय की मांग
करते हुए लोग सड़कों पर उतर आए थे। करीब एक पखवाड़े तक जिंदगी के लिए जूझने के बाद अंतत: सिंगापुर के
अस्पताल में निर्भया ने दम तोड़ दिया था। इस मामले में मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार
सिंह सहित छह व्यक्ति आरोपी बनाए गए। इनमें से एक नाबालिग था। मामले के एक आरोपी राम सिंह ने सुनवाई
शुरू होने के बाद तिहाड़ जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। नाबालिग को सुनवाई के बाद दोषी ठहराया

गया और उसे सुधार गृह भेज दिया गया। तीन साल तक सुधाार गृह में रहने के बाद उसे 2015 में रिहा कर
दिया गया। अंतिम क्षणों में दोषियों की जानकारियों के बारे में संक्षेप से बताते हुए एक जेल अधिकारी ने कहा कि
विनय और मुकेश ने रात को खाना खाया लेकिन फांसी के फंदे तक ले जाने से पहले चारों में से किसी ने भी सुबह
नाश्ता नहीं किया और नहाए भी नहीं। अधिकारी ने कहा, ‘‘ विनय और मुकेश ने रात को समय पर भरपेट खाना
खाया था। खाने में रोटी, दाल, चावल और सब्जी थी। अक्षय ने शाम को चाय भी पी थी लेकिन उसने रात को
खाना नहीं खाया। चारों दोषियों ने शुक्रवार सुबह नाश्ता नहीं किया था।’’ उन्होंने बताया कि चारों दोषियों में शाम
को घबराहट के कोई संकेत नहीं देखे गए। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि फांसी से कुछ मिनट पहले मुकेश ने
कहा कि वह अपने अंग दान करना चाहता है जबकि विनय ने कहा कि वह जेल में बनाई गई अपनी पेंटिंग्स को
जेल अधीक्षक और अपनी ‘हनुमान चालीसा’ अपने परिवार को देना चाहता है। जेल अधिकारियों ने बताया कि चारों
दोषियों के शव करीब आधे घंटे तक फंदे पर झूलते रहे जो जेल नियमावली के अनुसार फांसी के बाद की अनिवार्य
प्रक्रिया है। दक्षिण एशिया के सबसे बड़े जेल परिसर तिहाड़ जेल में पहली बार चार दोषियों को एक साथ फांसी दी
गई। इस जेल में 16,000 से अधिक कैदी हैं। चारों दोषियों ने फांसी से बचने के लिए अपने सभी कानूनी विकल्पों
का पूरा इस्तेमाल किया और बृहस्पतिवार की रात तक इस मामले की सुनवाई चली।सामूहिक बलात्कार एवं हत्या
के इस मामले के इन दोषियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद तीन बार सजा की तामील के लिए तारीखें
तय हुईं लेकिन फांसी टलती गई। अंतत: आज सुबह चारों दोषियों को फांसी दे दी गई। आखिरी पैंतरा चलते हुए
एक दोषी ने दिल्ली उच्च न्यायालय और फांसी से कुछ घंटे पहले उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। फांसी
से कुछ घंटों पहले पवन कुमार गुप्ता ने राष्ट्रपति द्वारा दूसरी दया याचिका खारिज किए जाने को चुनौती देते हुए
उच्चतम न्यायालय का रुख किया। अभूतपूर्व रूप से देर रात ढाई बजे सुनवाई शुरू हुई और एक घंटे तक चली।
उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने उसकी याचिका खारिज करते हुए फांसी का रास्ता साफ कर दिया। न्यायालय ने
पवन गुप्ता और अक्षय सिंह को फांसी से पहले अपने परिवार के सदस्यों से मुलाकात करने की अनुमति देने पर
भी कोई आदेश देने से इनकार कर दिया। तिहाड़ जेल के बाहर शुक्रवार तड़के ही सैकड़ों लोग इकट्ठा हो गए। उनके
हाथों में राष्ट्रध्वज था और वे ‘अमर रहो निर्भया’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे थे। जैसे ही फांसी हुई
तो उनमें खुशी की लहर दौड़ पड़ी। उनमें से कुछ ने फांसी के बाद मिठाइयां बांटी। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास
मंत्री स्मृति ईरानी ने भी इस खबर का स्वागत किया। ईरानी ने संसद भवन परिसर में कहा,‘‘ मैंने इतने सालों में
निर्भया की मां का संघर्ष देखा है। हालांकि न्याय पाने में समय लगा लेकिन आखिरकार न्याय हुआ। यह लोगों को
भी संदेश है कि आप कानून से भाग सकते हैं लेकिन आप हमेशा के लिए इससे बच नहीं सकते। मुझे खुशी है कि
न्याय हुआ।’’ घटना के समय अतिरिक्त डीसीपी (दक्षिण) और जांच टीम का नेतृत्व करने वाले प्रमोद सिंह कुशवाहा
ने कहा कि यह फांसी ‘‘दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि’ है और यह अन्य बलात्कारियों को अपराध करने से रोकने
का भी काम करेगी। इससे अलग विचार जाहिर करते हुए मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि
महिलाओं के खिलाफ हिंसा को खत्म करने की ओर मौत की सजा कभी एक समाधान नहीं होता है और उसने इस
फांसी को भारत के मानवाधिकारों के रिकार्ड पर ‘‘काला धब्बा’’ बताया। इस मामले में लंबी कानूनी लड़ाई चली और
यह निचली अदालतों से होकर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय तथा राष्ट्रपति के पास पहुंचा। अदालत ने
इस आधार पर तीन बार मौत का वारंट रोका कि दोषियों ने अपने सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल नहीं किया
था और एक के बाद एक ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी। पांच मार्च को एक निचली अदालत ने मौत का
नया वारंट जारी किया जिसमें फांसी की अंतिम तारीख 20 मार्च को सुबह साढ़े पांच बजे तय की गई थी।


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