नागरी लिपि में समाहित हैं, चिति तत्व – डॉ हरिसिंह पाल

asiakhabar.com | August 29, 2024 | 4:13 pm IST
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नई दिल्ली: ” नागरी लिपि का प्रादुर्भाव समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप हुआ है। समय-समय पर इसमें परिवर्तन और परिवर्धन होते रहे हैं। आज़ नागरी लिपि जिस रूप में है प्रारंभ में ऐसी नहीं थी हमारे देश के भाषाविदों ने इसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन और परिवर्धन किए हैं। शून्य और दशमलव का चिन्ह विश्व में पहली बार नागरी लिपि में ही प्रयुक्त हुआ, जिसपर समस्त सूचना प्रौद्योगिकी का संसार टिका हुआ।इस रूप में, नागरी लिपि में चिति तत्व का समावेषण मिलता है। नागरी लिपि अपनी सरलता, सुगमता और बोधगम्यता तथा वैज्ञानिक प्रवृत्ति के कारण विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय लिपि बनी हुई है।” उक्त विचार नागरी लिपि परिषद के महामंत्री और प्रख्यात लेखक एवं समालोचक डॉ हरिसिंह पाल ने अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लैखक संघ के तत्वावधान में आयोजित पाक्षिक संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। इस राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी की अध्यक्षता नागरी लिपि परिषद, तमिलनाडु इकाई की अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध हिंदी लेखिका 80 वर्षीय डॉ राजलक्ष्मी कृष्णन ने की। संगोष्ठी का शुभारंभ संघ के कार्यकारी अध्यक्ष श्री सोमदत्त शर्मा के गाए कल्याण मंत्र से हुआ। संचालिका सुश्री अंजली वाजपेई ने संगोष्ठी की अध्यक्ष और मुख्य वक्ता का स्वागत करते हुए इनका परिचय प्रस्तुत किया। सभा की अध्यक्ष
डॉ राज लक्ष्मी कृष्णन ने मुख्य वक्ता और नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल को उनके ‘ नागरी लिपि के चिति तत्व ‘ विषय पर अपना व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया। डॉ पाल ने पहले अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ के पदाधिकारियों को इस महत्वपूर्ण एवं समयोचित विषय पर एकल व्याख्यान हेतु आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। तत्पश्चात डॉ पाल ने भारत में लिपि के आविष्कार, इसके विकास और ब्राह्मी लिपि के उत्तरी रूप से नागरी लिपि की उत्पत्ति और इसकी विकास यात्रा एवं इसकी संवैधानिक स्थिति पर विस्तार से प्रकाश डाला।
संगोष्ठी की अध्यक्ष डॉ राजलक्ष्मी कृष्णन ने राष्ट्रीय एकता में नागरी लिपि के महत्व को प्रतिपादित करते हुए तमिलनाडु में इसकी उपयोगिता को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की प्रचारक होने के नाते प्रारंभ में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यहां तक कि उन्हें देखते ही चेन्नई में लोग अपने घरों के दरवाजे बंद कर लेते थे।आज पूरे तमिलनाडु में हिंदी और नागरी लिपि सीखने के लिए होम ट्यूशन लेते हैं। इसकी वजह यह है कि डॉ हरिसिंह पाल के भगीरथी प्रयासों से नागरी लिपि परिषद द्वारा पूरे देश में नागरी लिपि के प्रचार-प्रसार की मुहीम है। मैं डॉ पाल की आभारी हूं कि इन्होंने मुझे नागरी लिपि परिषद की तमिलनाडु इकाई की प्रभारी बनाया है। मैंने तमिलनाडु में नागरी लिपि परिषद के अनेक आजीवन सदस्य बनाए हैं और कई महाविद्यालयों में नागरी लिपि संगोष्ठी एवं प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित करने का सौभाग्य मिला है।
अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष श्री सोमदत्त शर्मा ने डॉ पाल के विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान के लिए उनका आभार प्रकट किया और अध्यक्ष डॉ राजलक्ष्मी कृष्णन को उनकी गरिमामई उपस्थिति के लिए संघ की ओर से कृतज्ञता ज्ञापित की। श्री शर्मा ने डॉ पाल और कृष्णन को अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ की मानद सदस्यता प्रदान की। संगोष्ठी में डिब्रूगढ़, असम के पत्रकार श्री ललित शर्मा, हैदराबाद के हिंदी सेवी डॉ वी वेंकटेश्वर राव, केंद्रीय विश्वविद्यालय कोरापुट, ओडिशा के डॉ उमेश प्रजापति, इंदौर, मध्यप्रदेश की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ कला जोशी, नाशिक महाराष्ट्र के हिंदी सेवी डॉ राहुल खटे, गाजियाबाद की नागरी लिपि अध्येता डॉ रश्मि चौबे, डॉ साईं नाथ साहू, डॉ सुनीता त्रिपाठी, आशा राठौर, पार्वती डी एम सहित अनेक नागरी लिपि प्रेमियों की आभासी उपस्थिति सराहनीय रही।
संगोष्ठी के आयोजन में संयोजक डॉ आनंद पाटिल (वर्धा),महासचिव श्री घनश्याम, कोषाध्यक्ष मेजर सरस चंद त्रिपाठी, डॉ अतुल गुप्ता (संयोजक – भारतीय इतिहास कोश), अवंतिका यादव,अभिजीत कुमार, अरविंद कुमार, डॉ मंजू तिवारी , संगठन सचिव श्री सिद्धार्थ की भूमिका उल्लेखनीय रही। संगोष्ठी का समापन सामूहिक कल्याण मंत्र से हुआ।


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