दिल्ली एम्स के अध्ययन में दावा, रूमेटाइड अर्थराइटिस के इलाज में योग बेहद कारगर

asiakhabar.com | June 20, 2021 | 4:56 pm IST

मनीष गोयल

नई दिल्ला। देश के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल दिल्ली एम्स के एक अध्ययन में दावा किया
गया है कि योग ऑटोइम्यून अर्थराइटिस यानी रूमेटाइड गठिया के इलाज में बेहद कारगर है। इस अध्ययन में कहा
गया है कि योग किसी बीमारी के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों पहलुओं पर केंद्रित होता है। रूमेटाइड
अर्थराइटिस से पीड़ित 66 लोगों पर किया गया यह अध्ययन फ्रंटियर्स ऑफ साइकोलॉजी में प्रकाशित हुआ। एम्स
की इस स्टडी में कहा गया है कि योग को इस ऑटोइम्यून बीमारी के इलाज के लिए सहायक चिकित्सा पद्धति के
रूप में जोड़ा जाना चाहिए। इससे इस बीमारी से पीड़ित मरीजों को फायदा होगा। इस अध्ययन में दावा किया गया
है कि योग से रूमेटाइड अर्थराइटिस के क्लीनिकल आउटकम में सुधार आया, यानी इस बीमारी के इलाज में फायदा
हुआ। इसमें कहा गया है कि योग गठिया के सूजन को कम करता है। इसका लाभकारी प्रभाव साइको-न्यूरो-इम्यून
एक्सिस यानी मनोवैज्ञानिक तंत्रिका प्रतिरक्षा प्रणाली पर पड़ता है और यह उनमें गठिया के कारण आई
अनियमितताओं और विकृतियों को दूर करने में मदद करता है। साथ ही हड्डियों के जोड़ों में आई सूजन को कम
करता है। इस अध्ययन के नतीजों से पता चला कि योग करने से मरीजों में गठिया की समस्या कम हुई। योग
करने से सूजन पैदा करने वाले साइटोकिन्स जैसे आईएल 6, आईएल 17ए, टीएनएफए में बड़े पैमाने पर कमी
आई। साथ ही दिमाग और शरीर के बीच संचार स्थापित करने वाले मार्कर्स जैसे बीडीएनएफ, डीएचईएएस,
इंड्रोफिन्स और सिर्टुइन्स में बढ़ोतरी हुई, जिससे जीवन स्तर में सुधार आया। इस अध्ययन में कहा गया कि गठिया
के इलाज के साथ मरीज अगर योग करते हैं तो उनके लिए अच्छा रहता है। अपनी दिनचर्या में योग को शामिल
करके मरीज अपने ज्वाइंट यानी जोड़ों मे लचीलाचन ला सकते हैं और इससे दर्द कम कर सकते हैं। डिपार्टमेंट ऑफ
एनाटॉमी में लैब फॉर मॉलिक्यूलर रिप्रोडक्शन एंड जेनेटिक्स की प्रोफेसर डॉ. रीमा दादा ने रविवार को 'हिन्दुस्थान
समाचार' से इस अध्ययन पर विशेष बातचीत करते हुए कहा कि योग से व्यापक पैमाने पर गठिया के मनोदैहिक
लक्षण को कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि योग गठिया में दर्द को कम करने में मदद करता है। साथ ही
यह विकलांगता को कम करने के साथ जोड़ों के लचीलेपन को बढ़ात है। मांसपेशियों की ताकत को बढ़ाता है और
पूरे शरीर के साथ दिमाग का समन्वय ठीक करता है, जिससे रोग की गतिविधियां कम होती हैं और मरीजों को
आराम मिलता है। उल्लेखनीय है कि यह अध्ययन डॉ. रीमा दादा ने रूमेटोलॉजी के प्रोफेसर और हेड ऑफ
डिपार्टमेंट डॉ. उमा कुमरा के साथ मिलकर किया।


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