अंतरिक्ष कंसल
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के
मद्देनजर कैदियों की अंतरिम जमानत और पैरोल की अवधि बढ़ाने वाले आदेश को समाप्त करने का समय आ
गया है क्योंकि अब जेलों में संक्रमित मरीजों की संख्या केवल तीन रह गई है। महानिदेशक (जेल) के अनुसार,
6,700 से अधिक कैदी जमानत या पैरोल पर बाहर हैं और उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा समय-समय पर
पारित किए गए आदेश के मद्देनजर जमानत पर हैं। महानिदेशक (जेल) ने अदालत को यह भी बताया कि राष्ट्रीय
राजधानी के तिहाड़, रोहिणी और मंडोली जेलों में कैदी क्षमता लगभग 10,000 है, लेकिन वर्तमान में इनमें
15,900 कैदी बंद थे। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली पूर्ण पीठ ने मंगलवार को कहा, "अब
कोविड अध्याय को समाप्त करते हैं। इन लोगों को आत्मसमर्पण करने दें या वापस जेल लाया जाए। हमने
महामारी को देखते हुए आदेश पारित किया था। हमारे आदेश का जेलों की भीड़ से कोई लेना देना नहीं है। अपराधों
की गंभीरता हमारा विषय नहीं हैं।" पीठ ने यह भी बताया कि जेल प्रशासन कोविड-19 के मामलों पर उचित
कार्रवाई कर रहा था और कोविड-19 से संक्रमित पाए गए कैदियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। चीफ
जस्टिस ने कहा कि जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और तलवंत सिंह समेत पीठ के सभी जज एक साथ बैठेंगे और इस
पर फैसला लेंगे कि जमानतों और पैरोल के विस्तार संबंधी आदेश को बढा़या जाए या नहीं। पीठ ने यह टिप्पणियां
उत्तरपूर्वी दिल्ली दंगा मामले में अभियोजन पक्ष की एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए की। अर्जी में उच्च न्यायालय
के 13 जुलाई और 24 जुलाई के जमानत और पैरोल बढ़ाने के आदेशों को संशोधित करने की मांग की गई थी।
आवेदन में आरोप लगाया गया है कि दंगों के मामलों में अभियुक्तों द्वारा नियमित जमानत मांगने के बजाय
पारिवारिक बीमारी या कुछ अन्य कारण बताकर जमानत मांगने के बाद इन्हें बढ़ाने को लेकर अदालत के निर्देश
और दोनों आदेशों का दुरुपयोग किया जा रहा था। वकील ने बताया कि दंगों के मामले में सुनवाई के दौरान
लगभग 20 आरोपियों ने कुछ बहाने से अंतरिम जमानत ली थी और अब उच्च न्यायालय के जमानत विस्तार के
आदेश का लाभ उठा रहे हैं।