अंतरिक्ष कंसल
नई दिल्ली। देश में कोविड-19 टीकाकरण की शुरुआत और आगामी दिनों में कुछ और
टीके आने की संभावना के बीच वैज्ञानिकों ने कहा है कि कोरोना वायरस के नए स्वरूप या इसमें बदलाव के
मद्देनजर दूरगामी कदम उठाने की जरूरत होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि टीका के शुरुआती संस्करण के
आने के बाद वायरस के स्वरूप में बदलाव के कारण भविष्य के लिहाज से टीका तैयार करने पर काम जारी
रखना होगा। नयी दिल्ली में राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान (एनआईआई) के वैज्ञानिक ने कहा कि मौजूदा
टीकाकरण अभियान से संक्रमण फैलने की रफ्तार कम हो जाएगी लेकिन टीकों के आगामी संस्करण को वायरस
में आने वाले बदलाव के हिसाब से तैयार किया जाएगा। वायरस में टीका के खिलाफ प्रतिरोधक भी तैयार हो
सकता है और ऐसे में नए संस्करण में इसका भी ध्यान रखना होगा। वायरस में आने वाले बदलाव के कारण
यह भी आशंका है कि वायरस के शुरुआती स्वरूप की तुलना में ये इंसान को आसानी से संक्रमित कर सकते
हैं। अध्ययनकर्ताओं के एक हालिया अध्ययन में कहा गया कि कोविड-19 से बचाव के लिए ‘एमआरएनए’
आधारित टीकों को समय-समय पर उन्नत बनाना होगा ताकि यह संक्रमण से बचाव में कारगर रहे। इस शोध
टीम में अमेरिका के रॉकफेलर विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ भी थे। एमआरएनए आधारित टीकों में जेनेटिक कोड
का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि मॉडर्ना और फाइजर के टीके वायरस के कई
स्वरूप के खिलाफ असरदार पाए गए हैं। पिछले सप्ताह जारी एक अध्ययन में कहा गया कि फाइजर का टीका
ब्रिटेन में मिले स्वरूप से बचाव में कारगर है। पुणे में भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान से जुड़ीं
प्रतिरक्षा विज्ञानी विनीता बल के मुताबिक वायरस में बदलाव के कारण समय के साथ मौजूदा टीकों का असर
घटता जाएगा। वहीं, माउंट सिनाई, अमेरिका में इकान स्कूल ऑफ मेडिसिन में माइक्रोबॉयोलॉजी के प्रोफेसर
फ्लोरियन क्रैमर ने कहा है कि ब्रिटेन में मिला वायरस का नया स्वरूप, टीका से शरीर में तैयार होने वाली
प्रतिरक्षा पर संभवत: असर नहीं डालेगा। बल ने कहा, ‘‘एमआरएनए आधारित टीकों में बदलाव करना सबसे
आसान होगा। वायरस के नए स्वरूप से बचाव के लिए प्रोटीन आधारित टीकों में भी बदलाव किया जा सकता
है। इन टीकों के लिए नए सिरे से नियामकीय मंजूरी लेनी होगा।’’