अनिल रावत
नई दिल्ली। राज्यसभा में रविवार को कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह न्यूनतम
समर्थन मूल्य (एमएसपी) समाप्त करने और कार्पोरेट जगत को फायदा पहुंचाने के लिए दोनों नए कृषि विधेयक
लेकर आयी है। हालांकि सरकार ने इसका खंडन करते हुए कहा कि किसानों को बाजार का विकल्प और उनकी
फसलों को बेहतर कीमत दिलाने के उद्देश्य से ये विधेयक लाए गए हैं। राज्यसभा में कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा
ने आरोप लगाया कि दोनों विधेयक किसानों की आत्मा पर चोट हैं, यह गलत तरीके से तैयार किए गए हैं तथा
गलत समय पर पेश किए गए हैं। उन्होंने कहा कि अभी हर दिन कोरोना वायरस के हजारों मामले सामने आ रहे हैं
और सीमा पर चीन के साथ तनाव है। बाजवा ने आरोप लगाया कि सरकार का इरादा एमएसपी को खत्म करने का
और कार्पोरेट जगत को बढ़ावा देने का है। उन्होंने सवाल किया कि क्या सरकार ने नए कदम उठाने के पहले
किसान संगठनों से बातचीत की थी? उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों विधेयक देश के संघीय ढांचे के साथ भी
खिलवाड़ है। उन्होंने कहा कि जिन्हें आप फायदा देना चाहते हैं, वे इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे
में नए कानूनों की जरूरत क्या है। उन्होंने कहा कि देश के किसान अब अनपढ़ नहीं हैं और वह सरकार के कदम
को समझते हैं। बाजवा कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 तथा कृषक
(सक्तिशकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 पर सदन में एक साथ
हुयी चर्चा की शुरूआत कर रहे थे। बाजवा ने सवाल किया कि अगर सरकार के कदम किसानों के पक्ष में हैं तो
भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी अकाली दल क्यों इसका विरोध कर रही है? कांग्रेस नेता ने 2015 की
शांता कुमार समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को हो रहे घाटे को
दूर करने के लिए सरकार कदम उठा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार के नए कदम से पंजाब, हरियाणा एवं
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का सबसे ज्यादा नुकसान होगा। इससे पहले कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र
सिंह तोमर ने कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 तथा कृषक
(सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 को चर्चा एवं पारित करने
के लिए सदन में पेश किया। तोमर ने कहा कि दोनों विधेयक ऐतिहासिक हैं और इनसे किसानों के जीवन में
क्रांतिकारी बदलाव आएगा। उन्होंने कहा कि इन विधेयकों के प्रावधानों के अनुसार, किसान कहीं भी अपनी फसलों
की बिक्री कर सकेंगे और उन्हें मनचाही कीमत पर फसल बेचने की आजादी होगी। उन्होंने कहा कि इनमें किसानों
को संरक्षण प्रदान करने के प्रावधान भी किए गए हैं। तोमर ने कहा कि इसमें यह प्रावधान भी किया गया है कि
बुआई के समय ही कीमत का आश्वासन देना होगा। उन्होंने कहा कि यह महसूस किया जा रहा था कि किसानों के
पास अपनी फसलें बेचने के लिए विकल्प होने चाहिए क्योंकि एपीएमसी (कृषि उत्पाद बाजार समिति) में पारदर्शिता
नहीं थी। तोमर ने कहा कि दोनों विधेयकों के प्रावधानों से बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को बेहतर
कीमतें मिल सकेंगी। उन्होंने कहा कि विधेयक को लेकर कुछ धारणाएं बन रही हैं जो सही नहीं है और यह
एमएसपी से संबंधित नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि एमएसपी कायम है और यह
जारी रहेगा। तोमर ने कहा कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस
प्रकार के कृषि सुधारों की बात की थी। उन्होंने कहा कि किए जा रहे सुधारों से किसानों के जीवन में अभूतपूर्व
बदलाव आएगा। इससे पहले माकपा सदस्य के के रागेश और कुछ अन्य विपक्षी सदस्यों ने कृषक उपज व्यापार
और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अध्यादेश, 2020 तथा कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत
आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अध्यादेश, 2020 को अस्वीकार करने के लिए संकल्प पेश किया। रागेश ने
कहा कि कृषि राज्य का विषय है, ऐसे में केंद्र सरकार इस प्रकार के फैसले कैसे ले सकती है। उन्होंने कहा कि
अध्यादेश जारी होने के बाद ही पूरे देश में किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। उन्होंने सरकार से दोनों
विधेयक एवं अध्यादेश वापास लेने की मांग की। इसके अलावा रागेश, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, द्रमुक के
टी शिवा तथा कांग्रेस के केसी वेणुगापोल ने अपने संशोधन पेश किए तथा दोनों विधेयकों को प्रवर समिति में
भेजने की मांग की। भाजपा के भूपेंद्र यादव ने कहा कि इन दोनों विधेयकों की परिस्थिति पर विचार किया जाना
चाहिए। उन्होंने कहा कि आजादी के समय शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की आय का अनुपात 2 : 1 (दो
अनुपात एक) था जो अब 7 : 1 (सात अनुपात एक) हो गया है। उन्होंने सवाल किया कि ऐसा क्यों हो गया?
उन्होंने कहा कि किसान 70 साल से न्याय के लिए तरस रहे हैं और ये विधेयक कृषि क्षेत्र के सबसे बड़े सुधार हैं।
उन्होंने कहा कि दोनों विधेयकों से किसानों को डिजिटल ताकत मिलेगी और उन्हें उनकी उपज की बेहतर कीमत
मिल सकेगी। इसके अलावा उन्हें बेहतर बाजार मिल सकेगा और मूल्य संवर्धन भी हो सकेगा। यादव ने कहा कि
भारत में इतने बड़े पैमाने पर उत्पादन होने के बाद भी पांच प्रतिशत उत्पादन का खाद्य प्रसंस्करण हो पाता है।
इसके अलावा विश्व व्यापार में भी हमारी हिस्सेदारी कम है। उन्होंने कहा कि जीडीपी में कृषि का योगदान 12
प्रतिशत का है और करीब 50 प्रतिशत आबादी सीधे तौर पर खेती पर आश्रित है। उन्होंने कहा कि 2010 में संप्रग
सरकार के कार्यकाल में एक कार्यकारी समूह का गठन किया गया था और उसकी रिपोर्ट में अनुशंसा की गयी थी
कि किसानों के पास विपणन का विकल्प होना चाहिए। उसी रिपोर्ट में कहा गया था कि किसानों के लिए बाजार
प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। यादव ने आरोप लगाया कि अब कांग्रेस इस मुद्दे पर राजनीति कर रही है और किसानों
को रोकना चाहती है। उन्होंने इस आशंका को दूर करने का प्रयास किया कि एमएसपी समाप्त हो जाएगा। उन्होंने
कहा कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है और इन विधेयकों का मकसद एकाधिकारी प्रवृति को समाप्त करना है। सपा
के रामगोपाल यादव ने कहा ‘‘ ऐसा लगता है कि कोई मजबूरी है जिसके कारण सरकार जल्दबाजी में है।’’ उन्होंने
कहा ‘‘ दोनों महत्वपूर्ण विधेयक हैं और इन्हें लाने से पहले सरकार को विपक्ष के नेताओं, तमाम किसान संगठनों
से बात करनी चाहिए थी। लेकिन उसने किसी से कोई बातचीत नहीं की। सरकार ने भाजपा से संबद्ध भारतीय
मजदूर संघ तक से बातचीत नहीं की।’’ यादव ने सवाल किया कि किसान अपनी फसल बेचने कहां जाएगा?
उन्होंने कहा कि अभी राज्यों को मंडियों से पैसा मिलता है लेकिन प्रस्तावित स्थिति में राज्य को पैसे नहीं मिलेंगे,
ऐसे में राज्यों की क्षतिपूर्ति कैसे की जाएगी? इसका आकलन करने के लिए कोई प्रणाली भी नहीं है। उन्होंने आरोप
लगाया कि दोनों विधेयक किसान विरोधी हैं। शिरोमणि अकाली दल के नरेश गुजराल ने दोनों विधेयकों को पंजाब
के किसानों के खिलाफ बताते हुए उन्हें प्रवर समिति में भेजने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार को पंजाब के
किसानों को कमजोर नहीं समझना चाहिए। सरकार को पंजाब और हरियाणा के किसानों के असंतोष पर गौर करना
चाहिए तथा वहां जो चिंगारी बन रही है, उसे आग में नहीं बदलने देना चाहिए। शिअद के ही एसएस ढींढसा ने भी
सरकार से इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा करने और दोनों विधेयकों को प्रवर समिति में भेजने की मांग की। राकांपा के
प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि सरकार को इन विधेयकों को लाने के पहले विभिन्न पक्षों से बातचीत करनी चाहिए थी।
आप के संजय सिंह ने कहा कि दोनों विधेयक पूरी तरह से किसानों के खिलाफ हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र
सरकार विभिन्न कानूनों के जरिए राज्यों के अधिकार अपने हाथ में लेना चाहती है। सिंह ने राज्यों को उनके
जीएसटी बकाए का भुगतान किए जाने की मांग करते हुए आरोप लगाया कि यह सरकार आश्वासन और वादे करती
है लेकिन उन्हें पूरा नहीं करती है। उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया,
एमएसपी डेढ़ गुना करने का वादा किया, युवाओं को रोजगार लेने का वादा किया लेकिन किसी भी वादे को पूरा
नहीं किया। उन्होंने कहा कि देश भर के किसान इसके विरोध में सड़कों पर हैं और उनकी पार्टी पूरे देश में इसका
विरोध करेगी। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने दोनों विधेयकों को किसानों के हित
में बताया और कहा कि इससे उन्हें बेहतर बाजार मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि सरकार का पूरा ध्यान किसानों की
ओर है और उनकी स्थिति में सुधार के लिए वह प्रयासरत है।