पटना/नई दिल्ली। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही तीन दिवसीय छठ पर्व शुक्रवार की सुबह संपन्न हो गया। इससे पहले छठ पूजा के दूसरे दिन उगते सूरज को अर्घ्य देने के लिए घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए गुरुवार की शाम से ही घाटों पर श्रद्धालु जमे रहे।
बिहार-झारखंड, दिल्ली-एनसीआर, मुंबई सहित पूरे देश में घाट पर छठ पूजा के तीसरे दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। दिल्ली एनसीआर के व्रती घाट पर अपने परिवार के साथ पहुंचे और पूजा अर्चना की।
आस्था का महापर्व छठ बिहार समेत देश के कई राज्यों में मनाया जा रहा है। यह पर्व मंगलवार को नहाए-खाए के साथ शुरू हो चुका है और बुधवार को खरना मनाया गया। गुरुवार को अस्ताचलगामी (डूबते हुए) सूर्य को अर्घ्य दिया गया, जबकि शुक्रवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन हुअा।
इस त्योहार में श्रद्धालु तीसरे दिन डूबते सूर्य को और चौथे व अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं। पहले दिन को ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है जिसमें व्रती लोग स्नान के बाद पारंपरिक पकवान तैयार करते हैं। दूसरे दिन को ‘खरना’ कहा जाता है, जब श्रद्धालु दिन भर उपवास रखते हैं, जो सूर्य अस्त होने के साथ ही समाप्त हो जाता है। उसके बाद वे मिट्टी के बने चूल्हे पर ‘खीर’ और रोटी बनाते है, जिसे बाद में प्रसाद के तौर पर वितरित किया जाता है।
पर्व के तीसरे दिन छठ व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देते हैं। चौथे व अंतिम दिन को पारन कहा जाता है। इस दिन व्रती सूप में ठेकुआ, सठौरा जैसे कई पारंपरिक पकवानों के साथ ही केला, गन्ना सहित विभिन्न प्रकार के फल रखकर उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं जिसके बाद इस पर्व का समापन हो जाता है।
श्रद्धा के साथ-साथ सियासत का भी जरिया है मुंबई की छठ पूजा –
संभवतः मुंबई ही एकमात्र जगह होगी, जहां छठ पूजा श्रद्धा के साथ-साथ सियासत का भी जरिया बन जाती है। इस बार भी यह उत्सव कांग्रेस और भाजपा के बीच यह लाग-डाट का माध्यम बनने से नहीं बच पाया है। पिछले दो वर्ष से मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस स्वयं जुहू पधारकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते नजर आते हैं।
मुंबई महानगर का जुहू स्थित समुद्री तट छठ पूजा की शाम सागर में डूबते लाल-लाल सूर्य और उन्हें अर्घ्य देते छठ व्रतियों से गुलजार हो जाता है। मुंबई में पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लोगों की आबादी करीब 40 लाख है। इनमें से छठ पूजा करनेवाले श्रद्धालुओं का तांता आज सुबह से ही जुहू तट की ओर जानेवाले रास्तों पर लग गया था। छठ व्रती महिलाओं के साथ-साथ उनके परिवारों के पुरुष सिर अथवा सामूहिक रूप से छोटे टैम्पो में पूजा का सामान लेकर समुद्र तट की ओर जाते दिखाई दे रहे थे। शाम होने तक एक तरफ अरब सागर होता है, तो दूसरी तरफ उसके किनारे ही जनसागर। जो शाम की अर्घ्य देकर रात भर जुहू तट पर ही रुकता है। अगली सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर ही अपने घर लौटता है।
हिंदीभाषियों की इतनी बड़ी आबादी महानगर के राजनीतिक दलों को भी लुभाती रही है। इनके बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कर राजनीतिक दल अपनी सियासत चमकाते रहे हैं। करीब तीन दशक पहले उस समय के जनसंघ के कार्यकर्ता मोहन मिश्र ने छठव्रती महिलाओं को वस्त्र बदलने सहित कुछ और सुविधाएं देने के लिए छठ उत्सव महासंघ का गठन किया था। यह महासंघ करीब दो दशक तक चुपचाप अपना काम करता रहा। 2008 में लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव से पहले अचानक कई राजनीतिक दलों ने जुहू बीच पर अपने-अपने मंच सजाकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन शुरू कर दिया। जिसके जवाब में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने छठ पूजा को हिंदीभाषियों के शक्तिप्रदर्शन का माध्यम न बनाने की चेतावनी दी थी।
राज ठाकरे की उक्त चेतावनी के बाद से ही मुंबई में छठ पूजा सियासत का भी जरिया बन गई है। जब निकट भविष्य में कोई चुनाव होना रहता है, तो राजनीतिक दल ज्यादा सक्रिय होते हैं, जब चुनाव नहीं होता तो कम।
कांग्रेस के वर्तमान मुंबई अध्यक्ष संजय निरुपम जब शिवसेना के राज्यसभा सदस्य थे, तो वह शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को भी छठपूजा में लाए थे। इसी प्रकार मुंबई भाजपा के महासचिव अमरजीत मिश्र पिछले दो वर्षों से मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को जुहू की छठपूजा में लाकर उनसे सूर्यदेव को अर्घ्य दिलवा रहे हैं। मुंबई के हिंदीभाषी मतदाताओं पर मुख्यतया इन्हीं दोनों दलों का दावा रहता है। इसलिए सियासत भी इन्हीं दोनों दलों की चमकती है।