नई दिल्ली। तख्त पटना साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह के द्वारा सिख गुरु
साहिबानों की वंश के बारे दिए गए विवादित ब्यान पर 'जागो' पार्टी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने
जत्थेदार अकाल तख्त साहिब को स्थिति स्पष्ट करते हुए कौम में पैदा हुई इस दुविधा को दूर करने की अपील की
है। गुरु गोबिंद सिंह की रचना 'बचित्र नाटक' तथा केसर सिंह छिब्बर रचित 'बंसावलीनामा' को लेकर इस संबंधी
कुछ विद्वानों के द्वारा दिए जा रहें संदर्भों पर ध्यान देने की ज्ञानी हरप्रीत सिंह को विनती करते हुए जीके ने कहा
कि गुरमत मर्यादा उक्त वंश बताने वाली सोच को रद्द करती है तथा अमृत छककर खालसा बनने के बाद पुरानी
वंश की सोच खत्म होने की परंपरा के बारे में हम सभी जानते है। इसलिए गुरु साहिबानों के वंश प्रचार के बारे में
छपे इतिहासिक स्रोतों को दुबारा से देखना बहुत जरूरी हो जाता है। इसके साथ ही सवाल पैदा होता है कि कहीं
किसी ने इतिहास में छेड़छाड़ करके हमें गुरु सिद्धांतों से तोड़ने के लिए कहीं कोई मिलावट तो नहीं की थी?
जीके ने कहा कि जिस प्रकार इतिहास और इतिहास के स्रोतों में मिलावट की आशंका व्यक्त की जा रहीं है, वो
सच भी हो सकती है। क्योंकि गुरु गोबिंद सिंह के द्वारा आनंदपुर साहिब का किला छोड़ने के बाद हमारे कई
इतिहास के स्रोत समाप्त हो गए थे। बाबा बंदा सिंह बहादर की शहीदी के बाद सिख मिसलों के अस्तित्व में आने
के बीच के लंबे समय दौरान सिख ज्यादातर जंगलों में रहते थे। इस वजह से उस समय गुरुधामों पर गुरमत
विरोधी सोच काबिज हो गई थी। जिसकी छाया पूर्ण तौर पर 1920 में शिरोमणी कमेटी के अस्तित्व में आने के
बाद हटी थी। इन लोगों ने अपनी सोच को गुरमत की सोच वाले इतिहास के स्रोतों से मिलाकर छेड़छाड़ ना की हो,
ऐसा कहना आसान व तर्कसंगत नहीं होगा। इसलिए इतिहास के सभी स्रोतों की जाँच गुरमत की कसौटी पर करने
का अब समय आ गया है। किसी दुसरे को दोष देने की बजाए हमें अपने घर को सुरक्षित करना पहले जरूरी है।
जीके ने बिना प्रमाणित तथ्यों के गलत इतिहास पढ़ने या सुनाने वाले प्रचारकों और नेताओं के खिलाफ कड़ी कानूनी
व धार्मिक सजा लगाने या दिलवाने की वकालत करते हुए इस संबंधी एक ढाँचा विकसित करने की जत्थेदार को
सलाह दी है। ताकि गलत इतिहास का हवाला देने की कोई हिम्मत ना करें।