बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक ऐसी ढेर सारी फिल्में है जिनमें सीक्रेट सर्विस एजेंट्स तो बनते हैं लेकिन, उनके पकड़े जाने की स्थिति में उन्हें गोली मार देने से भी परहेज नहीं किया जाता। और इस तल्ख़ हकीकत से सीक्रेट एजेंट्स भी बखूबी परिचित होते हैं! बावजूद इसके देशभक्ति का जज्बा उनमें इस कदर भरा होता है कि वो हर जोखिम लेने के लिए तैयार रहते हैं! ‘चमकू’ और हाल ही में रिलीज़ हुई ‘टाइगर ज़िन्दा है’ समेत कई सारी फिल्में बॉलीवुड में ऐसे ही दिलेर और जांबाज एजेंट्स पर बन चुकी हैं।
नीरज पांडे एक सुलझे हुए निर्देशक रहे हैं और उनकी फिल्मों से हमेशा एक एक्स फैक्टर की उम्मीद की जाती है। अभी तक निर्माता-निर्देशक के तौर पर वह अपने काम को लेकर खरे रहे हैं लेकिन, ‘अय्यारी’ को लेकर वह थोड़े से कंफ्यूज नजर आते हैं। ‘अय्यारी’ का मतलब ऐसा जासूस जो रूप बदलने में माहिर होता है।
‘अय्यारी’ की कहानी शुरू होती है कर्नल अभय सिंह (मनोज बाजपेयी) और मेजर जय बख्शी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) की तकरार से! यह दोनों इंडियन आर्मी के लिए काम करते हैं लेकिन, हालात कुछ ऐसे हो जाते हैं कि जय अचानक से दिल्ली से गायब होने की कोशिश में लग जाता है। दूसरी तरफ अभय जोकि जय का गुरु भी है वह हैरान है और समझ नहीं पा रहा कि आखिर जय ऐसा क्यों कर रहा है? कहानी में जय का प्यार यानी सोनिया (रकुल प्रीत) भी हैं! कहानी दिल्ली से कश्मीर, लंदन घूमती हुई वापस दिल्ली में आकर खत्म होती है।
यह देखना भी दिलचस्प है कि फ़िल्म में कुछ इंटेलिजेंस एजेंट्स जिसकी जानकारी सिर्फ सेनाध्यक्ष और रक्षा मंत्री को ही है और जो देश के दुश्मनों का सफाया अपने अंदाज़ में कर रहे हैं। इन सबके बीच राजनीति और भ्रष्टाचार से लिप्त सिस्टम में सेनाध्यक्ष के सामने फोर्स से रिटायर्ड उनका सहयोगी एक कंपनी की डील रखता है जिसमें हथियारों के भाव 4 गुना तक हैं और उसकी दलाली काफी बड़ी है। मगर ईमानदार सेनाध्यक्ष इस डील को स्वीकार करने से मना कर देता है। बदले में उन्हें धमकी मिलती है कि वह उनका स्थापित किया गया सीक्रेट, डिपार्टमेंट जिसके लिए उन्होंने सरकार का पैसा भ्रष्टाचार के रूप में बिना किसी अनुमति के खर्च किया है जनता के सामने लायेंगे! यहीं से सिलसिला शुरू होता है परत दर परत खुलने का!
नीरज पांडे की ‘अय्यारी’ का सबसे कमजोर पहलू है स्क्रिप्ट। 2 घंटा और 40 मिनट की इस फिल्म में 2 घंटा 25 मिनट तो फौज में हथियारों की दलाली और उसके अंजाम पर ही लगा दिए गए हैं! इस भ्रष्टाचार का फ़ौज पर और देश की जनता पर क्या असर पड़ेगा, इसे दिखाया गया मगर, क्लाइमेक्स में टांय टांय फिस्स! नीरज पांडे ने क्लाइमेक्स एक बिल्डिंग के करप्शन की बात करके खत्म कर दी है! प्रतीकात्मक रूप में किसी एक अफसर को खुद को गोली मार लेने से यह मामला स्पष्ट नहीं होता! कहना गलत नहीं होगा कि बात तो कर रहे थे कोहिनूर की लेकिन, कांच का एक टुकड़ा दिखाकर मामला समेट लिया गया! अपनी फिल्म में नीरज पांडे हमेशा एक बेहतर ट्रीटमेंट देते रहें हैं लेकिन, इस बार उनका स्क्रीनप्ले भी टुकड़े-टुकड़े में नजर आता है!
अभिनय की बात करें तो निश्चित तौर पर ‘अय्यारी’ में मनोज बाजपेयी पूरी तरह से छाए हुए हैं और हर मौके पर चौके-छक्के ही जड़ते हैं! जबकि, चार्मिंग से दिखने वाले सिद्धार्थ मल्होत्रा से मुझे काफी उम्मीदें थीं। उनमें एक सुपरस्टार बनने के सारे गुण मौजूद हैं मगर इस फिल्म को देखकर लगता है कि वह अपनी फिल्मों को बहुत गंभीरता से नहीं लेते? फौजी जासूस के किरदार में उनके शरीर में एनर्जी और डायनामिक्स का अभाव नज़र आता है। आदिल हुसैन का किरदार बड़ा तो नहीं मगर जब वह आते हैं तो पर्दे पर जान आ जाती है। रकुल प्रीत एक संवेदनशील कलाकार हैं और उनसे भविष्य में काफी अच्छी उम्मीदें की जा सकती हैं। कुमुद मिश्रा एक दमदार अभिनेता हैं और इस फिल्म में भी उन्होंने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। पूजा चोपड़ा ने भी अपना किरदार बखूबी निभाया है! जबकि अनुपम खेर और नसीरुद्दीन शाह जैसे मंझे हुए कलाकारों को पूरी तरफ से व्यर्थ गंवा दिया गया है।
हालांकि, फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बहुत अच्छी है और कई सारे कोण पर नए ढंग से सोचा गया है। जबकि एडिटिंग डिपार्टमेंट थोड़ा सा कमजोर रह गया है। लंबे-लंबे दृश्यों को काटा जा सकता था।
कुल मिलाकर नीरज पांडे की फिल्म ‘अय्यारी’ जिससे काफी उम्मीदें लगाई जा रही थी, अपनी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती! अगर आप इसे एक लॉजिकल स्पाइडर की तरह देखने जाएंगे तो निराशा ही हाथ लगेगी। अन्यथा एक आम फिल्म की तरह इसे एक बार देखा जा सकता है।