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राकेश
मुंबई। 'सनम तेरी कसम' और 'तैश' जैसी फिल्मों में ऐक्टिंग प्रतिभा दिखाने वाले ऐक्टर
हर्षवर्धन राणे इन दिनों फिल्म 'हसीन दिलरुबा' में अपने हॉट अंदाज के लिए चर्चा में हैं। एक खास बातचीत के
दौरान हर्षवर्धन ने हमसे फिल्म, को-स्टार तापसी पन्नू, कोरोना काल के अलावा कुछ अनछुए पहलुओं पर भी चर्चा
की:
इन चाहनेवालों की ममता मां की तरह होती है। मुझे तो मॉम के साथ तो ये अनुभव नहीं मिल पाया, लेकिन मैंने
सुना है कि माएं अपने बच्चे को ऐसे ही देखती हैं कि मेरा बेटा राजा बेटा। ये लोग उसी नजरिए से मेरे काम को
देखते हैं और प्यार देते हैं, भले ही मुझे इतनी क्षमता हो या नहीं। हालांकि, कहते हैं न कि दुआओं का असर पड़ता
है, तो वाकई इससे मेरी जिंदगी में असर पड़ा है। इनकी शुभकामनाएं ब्रह्मांड में कहीं न कहीं गूंज रही हैं, जिसकी
वजह से पिछले एक-दो साल में मुझे थोड़ा सा काम मिलना शुरू हो रहा है, क्योंकि इन्होंने इतनी पॉजिटिविटी फैला
रखी है। अब ये है कि मां को हमेशा सब अच्छा लगता है, पर अब प्रेशर मुझ पर है कि उनकी उम्मीदों पर खरा
उतर सकूं। कोशिश यही है कि इन्हें निराश न करूं। रिलीजेज पर काम करूं कि फिल्में आती रहें, मैं दिखता रहूं
और मैं अच्छा काम करता रहूं। मुझे इनके लिए यह करना है, क्योंकि मेरी जिंदगी में कोई रिश्तेदार तो हैं नहीं,
पैरंट्स भी नहीं है, तो मेरी जिम्मेदारी इन लोगों के प्रति हैं और मेरी कोशिश है कि इन लोगों को गर्व महसूस करा
सकूं।
नहीं, ऐसा तो नहीं था। दरअसल, ऐक्टर के तौर पर वह काफी सेंसिटिव हैं, तो उन्हें ऐसा लगा होगा। हमें पहले ही
दिन इंटीमेट सीन करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने मुझे डरने का कोई ऐसा मौका नहीं दिया। वैसे भी, तापसी जैसे
अनुभवी और प्रफेशनल ऐक्टर्स अपने को-स्टार्स को डर जैसी चीजों से दूर ही रखते हैं। वे सेट पर आते हैं, फटाफट
काम करते हैं। वे डराने में विश्वास नहीं रखते, बल्कि चीजों का आसान करने का रास्ता बनाते हैं। तापसी और
विक्रांत दोनों ही बहुत प्रफेशनल हैं, इसीलिए इतना काम कर रहे हैं। मेरे लिए ये सीखने वाली बात थी। ये दोनों ही
ट्रेन की तरह फटाफट काम करते हैं।
मुझे लगता है कि सागर मंथन जैसा कुछ हुआ है। जैसे वहां अमृत और विष दो तबके में बंट गया था, वैसे ही जो
मजबूत लोग हैं, वे और मजबूत हो गए है और जो कमजोर हैं, वे और कमजोर हो गए। मेरे हिसाब से इससे
असमानता बढ़ी है और ये सिर्फ पैसे वाली बात नहीं है। साइकोलॉजिकली भी मैं दो तरह के लोग देख रहा हूं, वे या
तो बहुत ज्यादा आत्म निर्भर हो गए हैं कि अब जो करना है, खुद ही करना पड़ेगा या फिर एकदम ही टूट गए हैं
कि हमारा ये भी चला गया, वो भी चला गया। ये नैचरल प्रॉसेस है, इससे उबरने में बहुत टाइम लगेगा।
जॉन सर के सामने मैं हमेशा नवर्स ही रहता हूं। दरअसल, साल 2004 में मैं कुरियर बॉय का काम करता था, तब
मैंने जॉन सर को एक हेलमेट डिलिवर किया था। तब उनको देखकर जो मुझे फील हुआ, आज भी मुझे वैसा ही
लगता है। वे मेरी फिल्म के प्रड्यूसर हैं, लेकिन आज भी उनको देखकर मेरी ये हालत होती है कि वे कभी कंधे पर
हाथ रख देते हैं, तो मैं नर्वस होने लगता हूं कि अरे, कब हटेगा, कब हटेगा। मैं पीछे होने लगता हूं। अभी तक
उनके लिए सर ही निकलता है। वे कहते हैं, सर मत कहो, पर मुझसे होता ही नहीं हैं, क्योंकि जैसे मैं उनसे तब
मिला था, तेल लगे बाल, मुंह पर पिंपल, गंदी सी बाइक लेकर मैं डिलिवरी कर रहा था और आज वे मेरी फिल्म
प्रड्यूस कर रहे हैं, तो उनके सामने मैं आज भी नर्वस ही रहता हूं। मैं कोशिश करता हूं कि मैं थोड़ा खुलूं, पर हो ही
नहीं पाता। मुझे लगता है कि ये इस जनम में तो हो ही नहीं पाएगा।