मुंबई। पिछले काफी समय से फिल्म अपूर्वा सुर्खियों में है। यह इसलिए खास है क्योंकि इसके जरिए तारा सुतारिया ने ह्रञ्जञ्ज पर कदम रखा है और ऐसा पहली बार हुआ है, जब तारा का उनकी छवि से हटकर किरदार देखने को मिला है। फिल्म 15 नवंबर को डिज्नी+ हॉटस्टार पर रिलीज हो गई है। निखिल नागेश भट्ट के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अभिषेक बनर्जी और राजपाल यादव ने भी अहम भूमिका निभाई है। सबसे पहले परिचय होता है 4 लुटेरों, जुगनू भैया (राजपाल), सूखा (अभिषेक), बिल्ला (सुमित गुलाटी) और छोटा (आदित्य गुप्ता) से। फिर एंट्री होती है अपूर्वा (तारा) की, जो अपने मंगेतर का जन्मदिन मनाने के लिए सरकारी बस से आगरा जा रही है। इसी बीच गुंडे बस लूटकर अपूर्वा को अगवा कर लेते हैं। अब इन खूंखार दरिंदों के चंगुल से खुद को बचाने के लिए अपूर्वा किस तरह से संघर्ष करती है, यह आप फिल्म देखने के बाद जानेंगे। तारा पहली बार ग्लैमरस किरदार से परे कुछ नया करती दिखीं। उन्होंने साबित कर दिया कि वह अच्छा अभिनय भी कर सकती हैं। तारा ये मौका भुनाने में कामयाब रहीं। अपूर्वा का दारोमदार उन्हीं के कंधों पर हैं और वो ही इसकी जान हैं। बेशक यहां से हिंदी सिनेमा में उनकी नई पारी शुरू हो सकती है। अभिषेक, सुमित और राजपाल अपने-अपने किरदार में कहर हैं, वहीं तारा के मंगेतर बने धैर्य कारवा भी अपनी मनोदशाओं से प्रभावित करते हैं। राजपाल और अभिषेक ने अपने-अपने किरदार को इस कदर जीवंत बनाया कि उनके घिनौनेपन से नफरत होने लगती है। दोनों ने अपनी नकारात्मकता को खुलकर उभारा है। अभिषेक ने एक बार फिर प्रभावित किया है। हालांकि, उन्हें देख आपको पाताल लोक में उनके किरदार हथौड़ा त्यागी की याद आ जाएगी। राजपाल यादव चकित करते हैं। उनके अभिनय का एक अलग रूप देखने को मिला है। उनका खौफनाक अवतार डराता है। राजपाल की अभिनय क्षमता का पूरा इस्तेमाल किया गया है। निर्देशक ने ठीक-ठाक काम किया है। सबसे अहम उन्होंने तारा से बेहतरीन अभिनय करवाया है। फिल्म को आगे चाहे जैसी भी प्रतिक्रिया मिले, लेकिन यह यकीनन तारा की पहचान की बड़ी जीत है। भले ही 1 घंटे 35 मिनट की फिल्म की इस कहानी में दम न हो और रोमांच के नाम पर दर्शक ठगे गए हों, लेकिन इसमें कलाकारों का चयन बड़ी सूझ-बूझ से किया गया है। फिल्म का संगीत और गाने अच्छे हैं। कैमरे का सचालन ठीक-ठाक है। सर्वाइवल थ्रिलर फिल्मों में रोमांच एक बड़ी भूमिका निभाता है, जिसकी कमी अपूर्वा में कहीं-कहीं काफी खलती है। ऐसे दृश्य बहुत कम हैं, जो रोमांच को चरम पर ले जाएं। कुछ दृश्यों में दहशत दिखाए जाने की पूरी गुंजाइश थी, लेकिन यह अहसास कम ही होता है। शुरुआत से ही फिल्म की कहानी का अंदाजा लग जाता है। पटकथा और जोरदार हो सकती थी। फिल्म का माहौल कुछ-कुछ पिछली बार आई नुसरत भरूचा की फिल्म अकेली जैसा ही है। फिल्म में दिखाया गया कि एक अकेली लड़की वक्त आने पर कुछ भी कर सकती है। वह कमजोर नहीं है और हर मुश्किल का डटकर सामना कर सकती है। अपूर्वा इसी की मिसाल है, जिसकी हिम्मत न हारने की जिद हौसला देती है।