नई दिल्ली। ग्लैमर से परे कंटेंट, नौटंकियों से परे किरदार और माध्यम के तौर पर एक
पूरी नई स्टार प्रणाली, ये कुछ ऐसे लक्षण हैं, जो पिछले कुछ महीनों में चल रहे ओटीटी लहर को परिभाषित करते
हैं।
हालांकि उद्योग पर नजर रखने वाले और व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि ये बातें दूरदर्शन युग की याद दिलाते
हैं। वह एक ऐसा दौर था जब भारत में छोटे पर्दे ने वैश्विक अपील के साथ कहानियों का मंथन किया और कई
प्रतिभाशाली कलाकारों के लिए नौकरियों के अवसर पैदा कीं। इसके साथ ही उन्हें घर-घर पहचान और नाम भी
मिली। ठीक उसी तरह आज ओटीटी प्लेटफार्मों पर हो रहा है।
साल 1980 के दशक में टेलीविजन के सुनहरे युग की पटकथाओं के साथ दूरदर्शन कई कलाकारों को सुर्खियों में
लाया, टेलीविजन में अभिनय के अवसरों के द्वार खोले। ओटीटी वही कर रहा है, लेकिन एक बड़े और अधिक
संगठित तरीके से।
व्यापार विश्लेषक राजेश थडानी ने आईएएनएस को बताया, ओटीटी दूरदर्शन के स्वर्ण युग का प्रतिबिंब है। यह
लोगों को वह करने की अधिक गुंजाइश देता है, जो वे चाहते हैं। इसने उन कलाकारों को एक मंच दिया है जो
फिल्मों में नहीं आ सके। इसने करियर को पुनर्जीवित किया है और सबके लिए आगे आने की संभावनाएं पैदा की
हैं।
थडानी ने आगे कहा, इसने उन्हें एक बड़ी गुंजाइश दी है।
इन दिनों ओटीटी दुनिया में कुछ ऐसा ही हो रहा है, जहां डिजिटल प्लेटफॉर्म उन कलाकारों के लिए अपनी प्रतिभा
दिखाने के लिए जगह दे रहा है, जिन्हें शायद ही फिल्मों में ऐसा करने के लिए ब्रेक मिला होगा।
विभिन्न क्षेत्रों के कलाकारों को ओटीटी शो और फिल्मों से लोकप्रियता मिली है। नीरज काबी, नमित दास, रसिका
दुग्गल, पंकज त्रिपाठी, सुमित व्यास, मानवी गगरू, श्रीया पिलगांवकर, अमित साध, श्वेता त्रिपाठी, कुबेर सेत,
अमोल पाराशर, अंगद बेदी, विजय वर्मा, प्रियांशु पेनयुली, बानी जे, सयानी गुप्ता और निधि सिंह उन नामों की
सूची में सबसे आगे हैं।
इस बारे में नमित ने कहा, मैंने अक्सर इस बारे में सोचा है कि 1980 के दशक में टेलीविजन बूम के आने और
हम लोग और अन्य शो के दिनों में क्या हुआ होगा। मैं उस युग और 2020 तक ओटीटी प्लेटफार्मों के बीच
समानताएं देखता हूं।