-ओम प्रकाश मेहता-
देश के सबसे वयोवृद्ध राजनीतिक दल कांग्रेस को अब 3 दिन रायपुर में बैठकर यह आत्मचिंतन
करना है कि क्या वह अंगद के पैर की तरह भारतीय राजनीति में अडे नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार
से देश को मुक्ति दिलाने और पूरे प्रतिपक्ष का नेतृत्व करने की क्षमता रखती है, और वह अपने
आपमें इसके लिए तैयार है? किंतु इस गंभीर आत्मचिंतन से पहले उसे अपने अंदर व्याप्त खामियों
को दूर करना पड़ेगा, तभी वह इस कथित दायित्व का निर्वाहन कर पाएगी, यद्यपि आज भावी
प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और विपक्षी दल में है कांग्रेस भी राहुल गांधी को भला प्रधानमंत्री मानती
आ रही है, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव व जनता दल (यूनाइटेड) के नेता व बिहार के
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री पद के रंगीन ख्वाबों में खोए हुए हैं, आप के अरविंद
केजरीवाल भी इसी पंक्ति में शामिल है, इसीलिए राजनीतिक क्षेत्रों में यह आशंका व्यक्त की जा रही
है कि क्या यह सभी प्रतिपक्षी नेता किसी एक नाम पर सहमत हो पाएंगे? खैर, यह तो तबकी बात
है, जब प्रतिपक्ष दल ही एकजुट हो? और यदि ऐसा हो गया तो वास्तव में यह भारतीय राजनीति का
अजूबा ही होगा।
….आज की वास्तविकता यह है कि आज पूरे देश की राजनीति पर चौबीस हावी हो गया है और हर
दल व उसके नेता अपनी किस्मत चमकाने की जुगत में संलग्न हो गए हैं, यद्यपि अभी चुनाव में
एक साल से भी ज्यादा का समय है और इस अवधि में यह भी तय है कि देश या देशवासियों के
हित में कोई बड़ा निर्णय लिया जाने वाला नहीं है, क्योंकि राजनेताओं के पास इसके लिए समय व
फुर्सत ही नहीं है, हर दल व उसका नेता अपनी-अपनी उधेड़बुन में संलग्न है और उसे सिर्फ और
सिर्फ अपनी और अपने भविष्य की ही चिंता है और वह हर हाल में अपने मंसूबे पूरे करना चाहता
है।
वास्तव में आज जो भी कुछ चल रहा है, उसके लिए न तो राजनीति दोषी है और न उसके लिए
राजनीतिक दल। दोषी वे हैं जिन्होंने हमारे देश के संविधान को तैयार करते समय भावी राजनीतिक
स्थितियों की कल्पना कर उन्हें संविधान के माध्यम से दुरुस्त करने का प्रयास नहीं किया। हमारा
संविधान यदि यह स्पष्ट कर देता कि जिस चुनावी घोषणा पत्र में लुभावने वादे करके राजनीतिक दल
सत्ता प्राप्त करते हैं, वह राजनीतिक दल ही अपने खर्चे से उन वादों को पूरा करेंगे ना कि जनता की
गाढ़ी कमाई के सरकारी धन से, तो आज यह स्थिति पैदा ही नहीं होती, यही स्थिति राजनीतिक दलों
की जिम्मेदारियों व दायित्व को लेकर भी स्पष्ट हो जाती किंतु हमारे संविधान निर्माताओं ने भावी
स्थितियों का आंकलन भी नहीं किया और हमारे संविधान में अब तक किए गए डेढ़ सौ से अधिक
संशोधनों की भी आज तक किसी ने कोई चिंता नहीं की? आज की यही सबसे बड़ी समस्या है
जिसके प्रति आज भी कोई चिंतित नहीं हैं?
…..और जहां तक संविधान का सवाल है, उसे तो रामायण, महाभारत, भागवत गीता की तरह लाल
कपड़े में लपेट कर रख दिया गया है, आज तो जो सत्ता में होता है, उसी का अपना संविधान होता है
और उसी के आधार पर वह सत्ता के माध्यम से देश को चलाने की कोशिश करता है और जो
प्रतिपक्षी दल स्वयं सत्ता में रहकर सरकार के कार्यों को पानी पी पीकर कोसते हैं, वही कार्य स्वयं
सत्ता में आने के बाद करते हैं, यही आज की राजनीति का चलन बन गया है और इसी के माध्यम से
सत्ता हथियाने के प्रयास किए जाते रहे हैं, कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि आज की राजनीति
से जनसेवा का लोप हो गया तो कतई गलत नहीं होगा।
हां… अब यदि हम देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस की बात करें, जिसके खाते में आजादी
के बाद और पूर्व के कई चमकते तमगे विद्यमान हैं, तो वह आज सिर्फ याद करने के लायक ही रह
गई हैं, क्योंकि मौजूदा राजनीति में वह धीरे-धीरे अपनी पहचान खोती जा रही है, अब इसके वे
ऊर्जावान ना तो नेता रहे, और न ही कार्यकर्ता। इसलिए शेष प्रतिपक्षी दल इसे अपना नेता चुनने में
झिझक रहे हैं, अब रायपुर में कांग्रेस को इन सब आत्मचिंतन के बिंदुओं पर चिंतन-मनन करना होगा
तथा मौजूदा राजनीति के दौर में अपना रास्ता खोजना होगा, यही आज की कांग्रेस की प्राथमिकता
है।