भारत में मुगल शासन की नींव रखने वाले हुमायूं को लोग आज भी उनकी राजशाही ठाठबाट से नहीं
बल्कि हुमायूं के मकबरे से ज्यादा याद करते हैं। दिल्ली स्थित यह मकबरा मुगल धरोहरों में सबसे
शानदार धरोहर है। यह मकबरा भारत में मुगल वास्तुकला का पहला उदाहरण है। इस मकबरे के
बनने के कई शताब्दी बाद इसी तर्ज पर ताजमहल का निर्माण हुआ।
इस मकबरे का निर्माण हुमायूं की पत्नी हमीदा बानु बेगम ने अपने पति की मौत के नौ साल बाद
शुरू करवाया। यह फारस की वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण है। इसके आगे बने बगीचे को चहारबाग
कहते हैं। यह बगीचा चार मुख्य भागों में विभाजित है जहां से लोगों का आना जाना होता है। इन
रास्तों को खूबसूरत बनाने के लिए बहते पानी का रास्ता बनाया गया है।
17वीं से 19वीं शताब्दी के बीच कई मुगल शासकों को इसी मकबरे में दफनाया गया था। हुमायूं के
इस मकबरे को नेक्रोपोलीस (मृत शरीर से प्रेम) नाम भी दिया गया है। भारत के किसी भी शहर में
मुगल शासकों और उनके रिश्तेदारों के इतनी कब्र कहीं देखने को नहीं मिलती। भारतीय उपमहाद्वीप
में यह पहला ऐसा मकबरा है।
हुमायूं के मकबरे का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है। दो मंजिला यह मकबरा सफेद मार्बल के
गुबंद से ढंका हुआ है, जो देखने में आकर्षक है। इस मकबरे की ऊंचाई 47 मीटर और चैड़ाई 91
मीटर है। वहां के गलियारे, खिड़की में भी फारसी वास्तुकला झलकती है। कुछ जगहों पर भारतीय
शैली की भी झलक देखी जा सकती है। कुल मिलाकर यहां 150 कब्र हैं जो चारों तरफ से गार्डन से
घिरी हैं।
इस मकबरे के बनने के बाद ही इसका पतन शुरू हो गया था। मुगल बादशाहत जैसे-जैसे खत्म हुई
उनके बनाए स्मारकों का भी पतन होना शुरू हो गया। मकबरे की आसपास बने बगीचे में लोगों ने
सब्जियां उगानी शुरू कर दीं। 1857 में ब्रिटिश ने इंगलिश स्टाइल गार्डन बनाया। 1903-1909 के
बीच इस बगीचे को अपनी खोयी हुई असली खूबसूरती लार्ड कर्जन से मिली। अभी कुछ साल पहले
मकबरे का पुनरूद्धार होने के बाद से इसकी चमक अब देखने लायक है।
यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर माना है। इस मकबरे की खूबसूरती बरकरार रखने के लिए इस पर
काफी काम किया गया है। इसकी शान-ओ-शौकत अब देखने लायक है। हुमायूं के मकबरे को देखने
कभी भी जाया जा सकता है। दिल्ली आने पर टैक्सी या ऑटो से यहां आप पहुंच सकते हैं। बच्चों का
प्रवेश निःशुल्क है। परिसर के बाहर पार्किेंग की अच्छी व्यवस्था है। जलपान और शीतल पेय के लिए
भी भटकना नहीं पड़ता। परिसर के एक किनारे इसका भी इंतजाम हैं।