राष्ट्रपति भवन में गांधी दर्शन पर आधारित नाटक "भारत भाग्य विधाता" का मंचन

asiakhabar.com | May 19, 2019 | 4:38 pm IST
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नई दिल्ली। देश के राजनीतिक हलके में शुक्रवार को जहां एक ओर नाथूराम गोडसे
पर तीखी बहस हो रही थी वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति भवन में गांधी जी के जीवन और दर्शन का एक
भावपूर्ण मंचन हो रहा था। यह बात दीगर है कि चुनाव के शोर में वह दबकर रह गया।
राष्ट्रपति भवन स्थित सांस्कृतिक केन्द्र में 17 मई की शाम छह से आठ बजे तक गांधी जी के जीवन
और दर्शन पर आधारित यह नाट्य प्रस्तुति की गई। ‘भारत भाग्य विधाता’ नामक इस नाटिका को देखने
के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ उनकी सहधर्मिणी भी उपस्थित थीं। इसके साथ ही सेना के
उच्चाधिकारी, विदेश सेवा के अधिकारी व बड़ी संख्या में गण्यमान्य लोग उपस्थित थे। इस नाटिका की
प्रस्तुति श्रीमद राजचन्द्र मिशन (धर्मपुर) ने की थी। इसके प्रमुख राकेश भाई को राष्ट्रपति ने मंच पर
बुलाकर सम्मानित किया तथा कलाकारों के साथ फोटो खिंचवाकर उनका उत्साहवर्धन भी किया।
गांधीजी के जीवन व दर्शन पर आधारित इस नाटिका की विशेषता यह है कि इसमें खुद गांधीजी अपने
बारे में बताते हैं। बालक मोहन को कथा सुनाते हुए दृश्य देश के विभाजन से शुरू होता है। 1947 में
नेहरू जी देश के विभाजन के बाद दिया जाने वाला अपना पहला भाषण तैयार कर रहे हैं। ‘नियति से

मुलाकात’ नामक भाषण से पहले वे गांधीजी से परामर्श करना चाहते हैं। वे सरदार पटेल से पूछते हैं कि
गांधीजी कहां हैं? पटेल पता कराते हैं और आभा से फोन कर पूछते हैं तो पता चलता है कि गांधी जी तो
कोलकाता से नोआखली के रास्ते में हैं। इस दृश्य से विभाजन के दौर में नेहरू और गांधी की मानसिक
अवस्था का पता चलता है।
गांधीजी के बचपन के उस दृश्य का मंचन भी बेहद जानदार था, जिसमें अंग्रेज अफसर के स्कूल भ्रमण
के दौरान उनके शिक्षक स्वयं चाहते थे कि मोहनदास नकल कर लें परन्तु अंग्रेजी में कम नंबर न लाएं
लेकिन मोहनदास ने शिक्षक द्वारा अवसर उपलब्ध कराए जाने के बावजूद नकल नहीं की। भले ही इसके
लिए उन्हें अपने शिक्षक के गुस्से का शिकार होना पड़ा।
इस नाट्य प्रस्तुति में गांधीजी का कस्तूरबा से विवाह, गांधीजी की अफ्रीका यात्रा, वापसी के बाद मुंबई में
बतौर वकील बहस के लिए खड़े होते समय नर्वस हो जाने, आजादी के आंदोलन में सहभागिता और
अनेक प्रकार के आंदोलनों को बेहद प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया गया। खासकर नमक सत्याग्रह के
शुरुआती समय में जब कांग्रेस के लोग ही उनका उपहास उड़ा रहे थे। बाद में दिखाई देता है कि नमक
सत्याग्रह का व्यापक परिणाम निकला और लोग आश्चर्यचकित रह गए। भारत में माउंटबेटन पावेल के
पहुंच जाने और विभाजन तय हो जाने के बाद भी गांधी जी प्रयास करते रहे थे कि विभाजन को रोका
जाए। इसके लिए उन्होंने जिन्ना को ही अविभाजित भारत का प्रधानमंत्री बनाने का सुझाव दिया था। इसे
भी एक दृश्य में प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया है।
इस नाट्य प्रस्तुति का सबसे प्रभावी और मार्मिक मंचन था दक्षिण अफ्रीका से लौटते समय गांधी जी
और कस्तूरबा को मिले उपहारों की वापसी। गांधी जी के नेतृत्व से प्रभावित होकर वहां के लोगों ने उनकी
भारत वापसी के समय सोने व चांदी के बने आभूषण, हार व रुपये आदि उन्हें भेंट किए। उस रात ही
गांधी जी ने तय कर लिया कि इस पर उनका कोई अधिकार नहीं है। वे अफ्रीका में बनाए गए ट्रस्ट को
ही उसे दान कर देंगे लेकिन अगले दिन उपहार में मिली कीमती वस्तुएं, आभूषण आदि ट्रस्ट को दान
कर देने के लिए कस्तूरबा को मनाने में बहुत मेहनत करनी पड़ी। कस्तूरबा कहती रहीं कि यह वे अपने
लिए नहीं चाहतीं। वे चाहती हैं कि उनकी आने वाली बहुओं को वे यह भेंट दें। गांधीजी आखिरकार उन्हें
मनाने में सफल रहते हैं और वे सारी वस्तुएं व सारा धन वहीं ट्रस्ट को दान करके भारत लौटते हैं।


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