नई दिल्ली। भारत और श्रीलंका के बीच रामसेतु को लेकर अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि वो इंसानों द्वारा बनाया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार 83 किलोमीटर लंबे गहरे इस जल क्षेत्र में चूना पत्थर की चट्टानों का नेटवर्क दरअसल मानव निर्मित है।
यह वही रामसेतु है जिसे 2004 से 2006 के बीच यूपीए-1 की सरकार तोड़ना चाहती थी। तत्कालीन यूपीए-1 सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था कि इस बात के कोई सुबूत नहीं हैं कि रामसेतु कोई पूज्यनीय स्थल है। बाद में कड़ी आलोचना के बीच तत्कालीन सरकार ने यह हलफनामा वापस ले लिया था।
दरअसल वैज्ञानिकों का मानना है कि सैटेलाइट में नजर आने वाली छिछले या सपाट चूना पत्थर हैं। भारत के रामेश्वरम के करीब स्थित द्वीप पमबन और श्रीलंका के द्वीप मन्नार के बीच 50 किलोमीटर लंबा अद्भुत पुल कहीं और से लाए पत्थरों से बनाया गया है। वैज्ञानिकों के इस दावे के बाद भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि रामसेतु भारत की सांस्कृतिक विरासत है और इसके साथ कोई भी छेड़ छाड़ नहीं होनी चाहिए।
यह है दावा
अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थवेस्ट, यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो और सर्दन ओरीगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि बलुई परत भले ही प्राकृतिक हों, लेकिन उसके ऊपर बिछाए गए विशाल चूना पत्थर कतई प्रकृति की देन नहीं हैं। यह कहीं और से लाए गए हैं। कार्यक्रम में बताया गया है कि पुल की चट्टानें सात हजार साल पुरानी हैं, जबकि उस पर बिछी बालू की परत महज चार हजार साल पुरानी है।
सर्दन ओरीगन यूनिवर्सिटी की इतिहास की पुरातत्ववेत्ता चेल्सिया रोज ने कहा कि बालू पर बिछी चट्टानें बालू को कम पुराना करती हैं। चैनल इस बात का समर्थन करता है कि विशाल पुल बेहद प्राचीन होने के बावजूद मानव निर्मित है। सोशल मीडिया में तहलका मचा रही इस रिपोर्ट पर एक ट्विटर यूजर ने कहा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इस मामले को सुलझाने के लिए क्यों कुछ नहीं करता।
भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद ने विगत मार्च में जल के अंदर शोध करने की घोषणा की थी। उसकी रिपोर्ट भी नवंबर में आ जानी थी। लेकिन पुरातत्ववेत्ता और एएसआई के पूर्व निदेशक आलोक त्रिपाठी ने कहा कि अभी काम शुरू होना बाकी है। इस योजना का प्रस्ताव करने वाले त्रिपाठी कहते हैं कि अभी फील्डवर्क ही नहीं किया गया है। इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए कुछ औपचारिकताओं को पूरा करना बाकी है।
यूपीए सरकार के दौरान रामसेतु को तोड़ने की थी तैयारी-
केंद्र की यूपीए-1 सरकार की महत्वाकांक्षी सेतुसमुद्रम नहर परियोजना के चलते रामसेतु के अस्तित्व पर ही संकट आ गया था। अति प्राचीन सेतु को नहर के लिए रोड़ा बताए जाते हुए इसकी चट्टानों को तोड़ने की तैयारी थी। इसी सिलसिले में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए-1 सरकार ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर कोहराम मचा दिया था। रामसेतु का मुद्दा देश में तभी से गर्माया हुआ है।
तत्कालीन यूपीए-1 सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था कि इस बात के कोई सुबूत नहीं हैं कि रामसेतु कोई पूज्यनीय स्थल है। साथ ही सेतु को तोड़ने की इजाजत मांगी गई थी। बाद में कड़ी आलोचना के बीच तत्कालीन सरकार ने यह हलफनामा वापस ले लिया था। इस परियोजना की इसलिए भी कड़ी आलोचना हुई थी कि इससे हिंद महासागर की जैव विविधता तो प्रभावित होती ही। साथ ही देश के बड़े समुदाय की धार्मिक भावनाएं भी आहत होंगी।