नई दिल्ली। भारत ने चीन के साथ सैन्य टकराव के बीच चरम सर्दियों में लद्दाख की 15
हजार फीट ऊंची बर्फीली पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों के लिए अमेरिका और यूरोप से सर्दियों के कपड़े और उच्च
ऊंचाई वाले इलाकों के लिए युद्धक किट खरीदी हैं। माइनस 50 डिग्री तक तापमान को झेलने वाले तंबू भी इन
सैनिकों को उपलब्ध कराए गए हैं। पिछले चार दशकों में पड़ोसी चीन के साथ सबसे खराब गतिरोध ने भारत को
सीमा पर हजारों सैनिकों, टैंकों और मिसाइलों को तैनात करने के लिए मजबूर किया है जबकि लड़ाकू जेट स्टैंड पर
हैं। चीन से वार्ताओं के सात दौर बीतने के बाद भारत अब भी एलएसी पर लम्बी तैनाती नहीं चाहता लेकिन अगर
ऐसी स्थिति बन रही है तो उसके लिए तैयारी भी पूरी कर ली है। भारत ने यह खरीददारी अमेरिका से 2016 में
हुए लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम (लेमोआ) समझौते के तहत की है। इस समझौते से दोनों देशों के सशस्त्र बलों
के बीच युद्धपोतों, विमानों के लिए ईंधन, स्पेयर पार्ट्स, लॉजिस्टिक सपोर्ट, सप्लाई और अन्य सेवाओं की सुविधा
मिलती है। इनमें कपड़े, भोजन, स्नेहक, स्पेयर पार्ट्स, अन्य आवश्यक वस्तुओं के बीच चिकित्सा सेवाएं शामिल
हैं। भारत अब तक मुख्य रूप से यूरोप या चीन से अपने रक्षा बलों के लिए उच्च-ऊंचाई वाली किट बनवाता था
लेकिन इस बार चीन से ही टकराव के चलते युद्धक किट अमेरिका और यूरोप से खरीदी गई है। भारतीय सेना में
दूसरी सबसे बड़ी रैंक के अधिकारी वाइस चीफ एसके सैनी अन्य आपातकालीन खरीद और निर्माण क्षमताओं पर
चर्चा करने के लिए 17 अक्टूबर से तीन दिन की अमेरिकी यात्रा पर हैं। हालांकि भारतीय सेना और भारत में
अमेरिकी दूतावास के एक प्रवक्ता ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है। सूत्रों ने बताया कि चीन सीमा की अग्रिम
चौकियों पर तैनात सैनिकों की तत्काल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यूरोपीय देशों से भी आपातकालीन
खरीद की गई है। भारत ने तत्काल आधार पर अमेरिका से सर्दियों के कपड़े और उच्च ऊंचाई वाले युद्धक किट
खरीदे हैं। भारतीय सेना ने लद्दाख की सर्दियों में खुद को लंबी दौड़ के लिए तैयार रखने की यह तैयारियां तब की
हैं जब पांच महीने पुराने गतिरोध का हल खोजने के लिए कोर कमांडर स्तर पर सैन्य वार्ता के सात दौर हो चुके हैं
लेकिन गतिरोध जारी है। भोजन और अन्य आवश्यक चीजों का अच्छी तरह से स्टॉक करने के लिए लगभग हर
दिन विशाल सैन्य काफिलों में सामग्री के ट्रक एयरबेस पर पहुंच रहे हैं। भारतीय वायु सेना के परिवहन विमान सी-
17 ग्लोब मास्टर से भी उक्त सामग्रियों को लेह एयरबेस पर लाकर अनलोड किया जा रहा है। इस समय पूरे जोश
में दिख रही भारतीय वायु सेना ने अमेरिकी चिनूक भारी-लिफ्ट हेलीकॉप्टरों को अग्रिम चौकियों तक इन आवश्यक
सामानों की आपूर्ति करने के लिए लगाया है। आने वाले दिनों में बर्फबारी और भीषण ठंड के मौसम को ध्यान में
रखते हुए सेना ने एक साल के लिए पर्याप्त मात्रा में आवश्यक वस्तुओं का स्टॉक कर लिया है। याद रहे कि चीन
ने सन 1962 का युद्ध अक्टूबर के महीने में ही शुरू किया था, इसलिए सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं के जरिये
पांच माह का समय बिताकर इस बार फिर चीन की तरफ से सर्दियों में किसी भी तरह का दुस्साहस किये जाने की
आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। सैनिकों के लिए सामानों का स्टॉक करने में लगे सेना के एक वरिष्ठ
अधिकारी का कहना है कि भारत एलएसी पर लम्बी तैनाती नहीं चाहता लेकिन अब ऐसी स्थिति बन रही है तो हम
उसके लिए भी पूरी तरह तैयार हैं। एयर कमाडोर डीपी हिरानी ने कहा कि फ्रंटलाइन पर तैनात जवानों को भेजे गए
टेंट माइनस 50 डिग्री तक तापमान को झेलने की क्षमता रखते हैं। भारतीय सेना के राशन गोदाम एलएसी माउंट
पर भरे हुए हैं। लेह में सेना का ईंधन डिपो तेल टैंकर लाइन से भरा हुआ है। सेना ने राशन, गरम कपड़े, उच्च
ऊंचाई वाले टेंट और ईंधन का भी बड़े पैमाने पर स्टॉक कर लिया है। सेना के एक अन्य अधिकारी ने बताया कि
भारत के पास ऐसे स्ट्रैटजिक एयरलिफ्ट प्लेटफॉर्म हैं, जिससे सड़क मार्ग कटने पर भी भारतीय सेना और एयरफोर्स
मिलकर एक-डेढ़ घंटे के भीतर ही दिल्ली से लद्दाख और अग्रिम चौकियों तक जरूरी सामान पहुंचाया जा सकता
है। इसी महीने 3 अक्टूबर को रोहतांग टनल का उद्घाटन होने के बाद लद्दाख रीजन तक हर मौसम में पहुंच
आसान हो गई है। इससे पहले संसद में पेश एक रिपोर्ट में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने उच्च ऊंचाई वाले
क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के लिए सर्दियों के कपड़े और उपकरणों की कमियों को इंगित करते हुए शीतकालीन गियर
की कमी का मुद्दा उठाया था। कैग के निष्कर्षों का जवाब देते हुए सेना ने हाल ही में लोक लेखा समिति को
जानकारी दी है कि पिछले कुछ महीनों में अमेरिका और यूरोप से सभी आवश्यक वस्तुओं की अतिरिक्त खरीद के
साथ भंडार में कमी अब पूरी हो गई है।