विकास गुप्ता
नई दिल्ली। तिहाड़ जेल अधिकारियों ने निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले के
दोषियों से कहा है कि उन्होंने सभी कानूनी उपायों का इस्तेमाल कर लिया है और फांसी की सजा के
खिलाफ उनके पास अब सिर्फ राष्ट्रपति के पास दया याचिका देने का विकल्प बचा हुआ है। मामले के
चार दोषियों को 29 अक्टूबर को जारी एक नोटिस में जेल अधीक्षक ने उन्हें सूचना दी है कि दया
याचिका दायर करने के लिये उनके पास नोटिस पाने की तारीख से सात दिनों तक का ही वक्त है।
नोटिस में कहा गया है, ‘‘यह सूचित किया जाता है कि यदि आपने अब तक दया याचिका दायर नहीं की
है और यदि आप अपने मामले में फांसी की सजा के खिलाफ राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करना
चाहते हैं, तो आप यह नोटिस पाने के सात दिनों के अंदर ऐसा कर सकते हैं। इसमें नाकाम रहने पर यह
माना जाएगा कि आप अपने मामले में दया याचिका नहीं दायर करना चाहते हैं और जेल प्रशासन कानून
के मुताबिक आगे की आवश्यक कानूनी कार्यवाही शुरू करेगा।’’ तिहाड़ जेल के महानिदेशक संदीप गोयल
ने कहा कि उन्हें नोटिस जारी किया गया है और यदि वे दया याचिका दायर नहीं करते हैं तो निचली
अदालत को सूचित किया जाए तथा वह आगे की कार्रवाई पर फैसला करेगी। मामले के तीन दोषी तिहाड़
में कैद हैं और एक को मंडोली जेल में रखा गया है। सूत्रों ने बताया कि यदि दया याचिका दायर नहीं की
जाती है तो जेल अधिकारी अदालत का रुख करेंगे, जो मौत की सजा का वारंट जारी करेगी। गौरतलब है
कि 23 वर्षीय छात्रा से 16 दिसंबर की रात दिल्ली की एक चलती बस में छह लोगों ने सामूहिक
बलात्कार किया था और उसे सड़क पर फेंकने से पहले बुरी तरह से घायल कर दिया था। सिंगापुर के
एक अस्पताल में 29 दिसंबर 2012 को पीड़िता की मौत हो गई थी। इस घटना के खिलाफ देश भर में
रोष छा गया था। राम सिंह नाम के एक आरोपी ने जेल में फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली, जबकि
एक किशोर को बलात्कार और हत्या का दोषी ठहराया गया तथा उसे एक बाल सुधार गृह में अधिकतम
तीन साल की कैद की सजा दी गई। उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल नौ जुलाई को मामले के तीन
दोषियों — मुकेश (31), पवन गुप्ता (24) और विनय शर्मा (25) की याचिकाएं खारिज कर दी थीं।
उन्होंने 2017 के उस फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था जिसके तहत दिल्ली उच्च
न्यायालय ने मामले में निचली अदालत में उन्हें सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा था। वहीं,
मौत की सजा का सामना कर रहे चौथे दोषी अक्षय कुमार सिंह (33) ने शीर्ष न्यायालय में पुनर्विचार
याचिका दायर नहीं की थी।