नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने में क्या स्विट्जरलैंड के छोटे से शहर दावोस की भूमिका अहम होगी? कूटनीतिक सर्किल में यह सवाल आजकल गर्म है। दरअसल अगले हफ्ते दावोस में वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की सालाना बैठक में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंच रहे हैं और पाकिस्तान के पीएम शाहिद अब्बासी भी।
इन दोनों के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी दावोस में होंगे। कूटनीतिक जानकार कयास लगा रहे हैं कि जिस तरह से अमेरिका पर्दे के पीछे से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव खत्म करने की कोशिश कर रहा है उसे देखते हुए दावोस की गतिविधियां काफी अहम होंगी। दावोस में पीएम मोदी की किन-किन नेताओं के साथ द्विपक्षीय मुलाकात होगी, इसे अभी अंतिम रूप दिया जा रहा है।
भारत और पाक के पीएम के बीच मुलाकात के कयास लगाने के पीछे एक वजह यह भी है कि दोनों देश यह बात स्वीकार कर रहे हैं कि उनके बीच “बैक डोर डिप्लोमेसी” चल रही है। पाकिस्तान के नए उच्चायुक्त सोहेल मुहम्मद इसमें खासी भूमिका निभा रहे हैं।
हालांकि दोनो देशों ने यह भी स्वीकार किया कि तीन हफ्ते पहले (26 जनवरी, 2017) को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की पाकिस्तान के एनएसए नासिर खान जांजुआ से मुलाकात हुई थी। इस पर तकरीबन दो हफ्ते तक चुप्पी साधने के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने पिछले हफ्ते माना।
उन्होंने यह भी कहा था कि “आतंकवाद और वार्ता एक साथ नहीं” की नीति पर भारत अभी भी कायम है लेकिन आतंकवाद के खात्मे को लेकर पाकिस्तान से बात की जा सकती है। साफ है कि पाकिस्तान के साथ वार्ता पर भारत अपना रुख बदल चुका है।
सनद रहे कि भारत और पाकिस्तान में जब भी लंबे समय तक तनाव रहा है तो उसे घटाने में किसी तीसरे देश में इनके नेताओं के बीच होने वाली मुलाकात की भूमिका अहम रही है। मुंबई आतंकी हमले के बाद बढ़ रहे तनाव को खत्म करने में वर्ष 2009 में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम युसूफ रजा गिलानी से मुलाकात हुई थी।
इसके बाद वर्ष 2005 में पीएम नरेंद्र मोदी ने उफा (रूस) में नवाज शरीफ से कुछ मिनटों की मुलाकात की थी जिसके बाद तनाव घटाने में काफी मदद मिली थी। इस मुलाकात के कुछ ही महीने बाद दोनों देशों के एनएसए व विदेश सचिवों की बैंकाक में मुलाकात हुई थी।