-अनिल बिहारी श्रीवास्तव-
बात सम्भवत: 2012 या 2013 की है। औरंगाबाद में एक प्रमुख दैनिक के दफ्तर में सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता
सीतलवाड़ से मुलाकात हुई थी। आधा-पौन घण्टे की मुलाकात के दौरान तीस्ता की जुबान ने एक पल के लिए ब्रेक
नहीं लिया। उसके जाने के बाद मस्तिष्क ने कुछ निष्कर्ष निकाले थे जो आज सटीक लग रहे हैं। जैसे, गुजरात दंगों
पर इस कथित सामाजिक कार्यकर्ता का नजरिया सिरे से इकतरफा है, इसमें नरेंद्र मोदी का विरोध कूट-कूट कर भरा
है, यह अकेली नहीं है बल्कि इसे आगे करके मोदी के राजनीतिक विरोधी, लिबरल लॉबी और कुछ विदेशी ताकतें
अपना मिशन बढ़ाने की कोशिश कर रहीं हैं। तीस्ता के बारे में यह धारणा मजबूत हुई कि वह प्रोपेगण्डा चलाने और
पब्लिसिटी लूटने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकती है। 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का
फैसला आंखें खोल देने वाला है। इस फैसले ने तीस्ता और उसके जैसे कई लोगों की कलई खोल कर रख दी।
सुप्रीम कोर्ट ने दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य लोगों को एसआईटी द्वारा दी गई
क्लीन चिट पर मुहर लगा दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात दंगों के पीछे उच्च स्तरीय साजिश का आरोप
लगाने वाली याचिका खारिज करते हुए सख्त लहज में कहा कि मामले को गर्म बनाए रखने के लिए आधारहीन
और गलत बयानी से भरी याचिका दाखिल की गई। फैसले में उन व्यक्तियों और अधिकारियों के खिलाफ कानून
सम्मत कार्रवाई की पैरवी की गई, जिन्होंने मामले को सनसनीखेज और राजनीतिक रूप से गर्म बनाने का प्रयास
किया।
तीस्ता सीतलवाड़ को पुलिस ने हिरासत में लिया है। उसके साथ-साथ कुछ अन्य लोगों पर भी बेकसूरों को फंसाने
की साजिश रचने का आरोप है। जांच के शुरूआती दो दिनों में उसने मुंह नहीं खोला। माना जा रहा है कि जल्द ही
वह उगलेगी कि आखिर किसकी शह और मदद से वह मोदी को बदनाम कर उनका राजनीतिक जीवन खराब करने
में जुटी थी। यह साफ हो चुका है कि अपना हित साधने की गरज से वह गुजरात दंगों से संबंधित जकिया जाफरी
याचिका में दिलचस्पी लेती रही और तथ्यों को मन मुताबिक गढ़ती रही। इस मामले में तीस्ता के अलावा गुजरात
के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर. बी. श्रीकुमार को हिरासत में लिया गया है। श्रीकुमार को तीस्ता के एनजीओ
सिटीजन्स फार जस्टिस एंड पीस में सहयोगी बताया जाता है। ऐसा माना जाता है कि तीस्ता के एनजीओ को
दिल्ली और देश के अन्य भागों में प्रभावशाली लिबरल और राजनेताओं का आशीर्वाद प्राप्त रहा है। एक अन्य पूर्व
आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के विरूद्ध भी मामला पंजीबद्ध किया गया है। भट्ट पहले से ही पालनपुर जेल
में बंद हैं।
मोदी को क्लीन चिट मिलने और तीस्ता को हिरासत में लिए जाने के बाद मौलाना आजाद उर्दू विश्वविद्यालय के
पूर्व कुलपति और मुस्लिम कारोबारी जफर सरेशवाला ने जो आरोप लगाया है उससे कांग्रेस भी कठघरे में खड़ी नजर
आने लगी है। कभी तीस्ता के सहयोगी रहे सरेशवाला का कहना है कि गुजरात में दंगा पीड़ित मुसलमानों को
हिंदुओं के खिलाफ भड़काया और डराया जाता था। तीस्ता तत्कालीन यूपीए सरकार के नेताओं के इशारे पर एजेंडा
चला रही थी। ये लोग नहीं चाहते थे कि जो हुआ उसे भूल कर मुसलमान आगे बढ़ें। दौलत और शोहरत की भूखी
तीस्ता पूरी तरह से कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल के इशारे पर काम कर रही थी। अहमद पटेल को सोनिया
गांधी और राहुल गांधी का काफी करीबी माना जाता था। गुजरात दंगों को लेकर फैलाये जाते रहे झूठ के अभियान
का मकसद मोदी और भाजपा की छवि खराब करना रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विरोधियों को
मोदी की क्षमताओं का अहसास था इसलिए उनकी छवि खराब करके उन्हें सियासी मैदान से बाहर करने की साजिश
की जा रही थी। सरेशवाला ने दंगों की त्रासदी झेली थी।
कभी वह भी नाराज थे लेकिन 2004 में उन्हें अहसास हो गया कि मुसलमानों का हितैषी बन कर एक लॉबी अपना
उल्लू सीधा करने में लगी है। गुजरात दंगे, मोदी और गुजरात से जुड़े घटनाक्रम काफी कुछ संकेत देते हैं। 27
फरवरी 2002 को अयोध्या से साबरमती एक्सप्रेस से लौट रहे 59 कारसेवकों को गोधरा स्टेशन पर जिंदा जला
दिया गया। उसके दूसरे ही दिन गुजरात के कम से कम आठ जिलों में दंगे भड़क गए। 28 फरवरी को उग्र भीड़ के
हमले में कांग्रेसी सांसद एहसान जाफरी समेत 69 लोग मारे गए थे। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार गुजरात दंगों
में 1044 मौतें हुईं थीं। लगभग 250 लोग लापता हो गए। ढाई हजार लोग घायल हुए थे। मरने वालों में 790
मुसलमान और 254 हिंदू थे। अन्य सूत्रों का मानना है कि गुजरात दंगों में 1926 लोग मारे गए थे। लिबरल लॉबी,
कतिपय विपक्षी पार्टियां और वामपंथ से प्रभावित पत्रकार और बुद्धिजीवी इसे गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार
के इशारे पर किया गया नरसंहार बताते रहे हैं जबकि गोधरा कांड पर प्रतिक्रिया ने साम्प्रदायिक दंगे का रूप ले
लिया था। दंगों में हिंदू भी मारे गए थे। एक खास लॉबी सिर्फ मुसलमानों की बात करती रही है। गोधरा कांड और
दंगों में हिंदुओं की मौत पर उसने कभी मुंह नहीं खोला।
तत्कालीन सरकार, मोदी और भाजपा के विरूद्ध मुसलमानों को बरगलाने में पूरी ताकत झोंक दी गई थी। तीस्ता
एक मोहरा मात्र कही जा सकती है। एक खास बात नोटिस की गई। तीस्ता को कांग्रेस से काफी सम्मान और
महत्व मिलता रहा है। 2002 कांग्रेस के द्वारा सालाना दिया जाने वाला राजीव गांधी सद्भावना अवार्ड हर्षमंदर के
साथ उसे दिया गया था। 2006 में प्रतिष्ठित नानी पालखीवाल पुरस्कार और 2007 में कांग्रेस की अगुआई वाली
यूपीए सरकार ने उसे पद्म श्री से सम्मानित किया था। तीस्ता पर आरोप भी लगते रहे हैं। भाजपा का आरोप है
कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में ही तीस्ता के एनजीओ को एक करोड़ 40 लाख रुपये दिये गए थे इस धन का
उपयोग नरेंद्र मोदी के विरूद्ध अभियान चलाने और देश को बदनाम करने के लिए किया गया था।
यह तथ्य सामने आ चुका है कि वह तत्कालीन आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट और गुजरात के कुछ खास
कांग्रेसी नेताओं के लगातार संपर्क में रहती थी। संजीव भट्ट का प्रयास रहता था कि तीस्ता के एनजीओ के माध्यम
से मामलों को प्रभावित किया जाए। जाकिया एहसान जाफरी के मामले में कहा गया है कि तीस्ता ने एक वकील के
साथ पहले अंगे्रजी में हलफनामे बनवा कर टाइप करा लिये थे फिर उन पर संबंधितों से हस्ताक्षर या अंगूठे के
निशान ले लिये गये थे। तीस्ता पर गवाह पर दबाव डालने का आरोप भी लग चुका है। कहा जाता है कि 2004 में
चर्चित बेस्ट बेकरी मामले में उसने एक प्रमुख गवाह कुछ खास बयान देने के लिए दबाव डाला था। तीस्ता का एक
पूर्व सहयोगी शपथपत्र देकर आरोप लगा चुका है कि दंगों से संबंधित पांच संवेदनशील मामलों में गवाहों के बयान
के रूप में दर्ज साक्ष्यों से छेड़छाड़ की गई थी। 2009 में एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि एसआईटी के
अनुसार तीस्ता ने हिंसा के कुछ मामले यूं ही गढ़ लिए। काल्पनिक घटनाओं के झूठे गवाह सिखा-पढ़ा कर खड़े कर
दिए गये थे। कुल मिलाकर कर तीस्ता ‘शौय-गाथा’ खासी लंबी है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सही कहा है कि नरेंद्र मोदी 18-19 साल तक अपमान सहते रहे। दुष्प्रचार के इस
अभियान में तीस्ता सीतलवाड़ का एनजीओ, कुछ पत्रकार और विरोधी राजनीतिक दलों की तिकड़ी शामिल थी। पूर्व
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस, लालू यादव और वामदलों पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का
फैसला विपक्षी दलों के लिए बड़ा झटका है। तीस्ता के पास अपने बचाव में बोलने के लिए क्या है? मोदी और
भाजपा के विरूद्ध झूठ से भरे उसके शरारती अभियान से दुनिया भर में भारत की छवि खराब हुई थी। अब जरूरी
है कि उन सभी चेहरों को बेनकाब किया जाए तीस्ता के पल्लू की आड़ में लोकतंत्र के साथ किए जा रहे घोर पाप
में सहभागी थे। ऐसे दंदी-फंदी लोग सिर्फ मोदी अकेले के अपराधी नहीं हैं, इन्होंने झूठे आरोप लगा कर
न्यायपालिका और देशवासियों को गुमराह करने की कोशिश है। इन्हें कान पकड़ कर दण्डित किया जाना चाहिए।