विकास गुप्ता
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने विभिन्न राज्यों में जारी चुनावों के दौरान प्रचार में
शामिल प्रत्येक व्यक्ति के लिए मास्क का इस्तेमाल अनिवार्य बनाने के लिये दायर याचिका पर केंद्र सरकार और
चुनाव आयोग से बृहस्पतिवार को जवाब मांगा। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की
पीठ ने उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी एवं थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर अकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टमिक चेंज’ (सीएएससी) के
प्रमुख विक्रम सिंह की याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किये। इन सभी को 30 अप्रैल तक
नोटिस के जवाब देने हैं। अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई 30 अप्रैल को तय की है जब वह सिंह की मुख्य
याचिका पर भी सुनवाई करेगी। मुख्य याचिका में सिंह ने ऐसे प्रचारकों एवं प्रत्याशियों को विधानसभा चुनावों में
प्रचार से रोकने का अनुरोध किया है जो कोविड-19 वैश्विक महामारी के मद्देनजर चुनाव आयोग द्वारा जारी
आवश्यक दिशा-निर्देशों का बार-बार उल्लंघन कर रहे हैं। सिंह की तरफ से पेश हुए वकील विराग गुप्ता ने पीठ को
बताया कि चुनाव आयोग को “विधानसभा चुनावों के दौरान शारीरिक दूरी और अनिवार्य रूप से मास्क पहनने के
लिए डिजिटल, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से जागरुकता पैदा करनी चाहिए।”
गुप्ता ने दलील दी, “जब मास्क का उपयोग अनिवार्य करने पर सभी अधिकारी एकमत हैं तो यह तर्क से परे है कि
इस नियम को चुनाव प्रचार के दौरान क्यों नहीं लागू किया जाना चाहिए।” केंद्र की तरफ से सरकार के स्थायी
अधिवक्ता अनुराग अहलुवालिया ने नोटिस स्वीकार किया। सिंह ने गौरव पाठक के माध्यम से दाखिल याचिका में
केंद्र को उसके 23 मार्च के आदेश का सख्ती से अनुपालन कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया जिसमें चुनाव
वाले राज्यों में सार्वजनिक स्थलों और कार्यस्थलों पर मास्क न पहनने वालों पर उचित जुर्माना लगाना आवश्यक
किया गया था। असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुदुचेरी में विभिन्न चरणों में विधानसभा चुनाव हो
रहे हैं। चुनाव 27 मार्च को शुरू हुए थे और 29 अप्रैल को समाप्त होंगे। सिंह ने दलील दी कि केंद्र और चुनाव
आयोग के दिशा-निर्देशों को बावजूद, ‘‘चुनाव प्रचार कोविड-19 नियमनों के उल्लंघन करते हुए पुरजोर तरीके से चल
रहे हैं।” उन्होंने दावा किया कि आम जनता के साथ “अप्रत्यक्ष रूप से भेदभाव” किया जा रहा है क्योंकि कोविड-19
नियमों के उल्लंघन के लिए उनसे जुर्माना वसूला जाता है लेकिन नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती
है।