घटती जनसंख्या व चीन की मुश्किलें

asiakhabar.com | February 28, 2023 | 4:26 pm IST
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-डा. अश्विनी महाजन-
‘वल्र्ड पोपुलेशन रिव्यु’ के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2022 के अंत तक भारत की जनसंख्या 141.7
करोड़ पहुंच गई थी और 17 जनवरी 2023 को चीन द्वारा घोषित उसकी जनसंख्या 141.2 करोड़ से
अब यह 50 लाख ज्यादा हो गई है। यानी भारत अब दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन
गया है। यही नहीं, चीन द्वारा घोषित जनसंख्या अनुमानों के अनुसार चीन की जनसंख्या में पिछले
वर्ष 8.5 लाख की गिरावट हुई है। यानी 1960 के बाद चीन की जनसंख्या में यह गिरावट पहली बार
आई है, जबकि भारत की जनसंख्या में वृद्धि दर तो पहले से कम हुई है, लेकिन जनसंख्या अभी भी
बढ़ रही है और विशेषज्ञों के अनुसार यह कम से कम वर्ष 2050 तक लगातार बढऩे वाली है।
हालांकि कोरोना महामारी के कारण 2021 में होने वाली जनगणना, जो हर 10 वर्ष बाद की जाती है,
टाल दी गई थी और इसलिए उसके अनुमान आना अभी बाकी हैं। आधिकारिक जनसांख्यिकी आंकड़ों
के अभाव में विभिन्न एजेंसियां अलग-अलग प्रकार के आंकड़े प्रस्तुत कर रही हैं, लेकिन सभी में
समानता यह है कि भारत की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है।
चीन की एक संतान नीति
यह बात तो सर्वविदित ही है कि भारत दुनिया का सर्वाधिक युवा देश है, यानी भारत की युवा आबादी
चीन समेत दुनिया में किसी देश से ज्यादा है। चीन की जनसंख्या हालांकि लंबे समय से भारत से
ज्यादा रही है, तो भी उसकी युवा जनसंख्या भारत की युवा जनसंख्या से कम ही रही। इसका कारण
यह है कि 1980 के दशक में चीन ने अपनी जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए हर दंपत्ति के लिए एक
संतान की अनिवार्य शर्त रख दी, यानी कोई भी दंपत्ति एक संतान से अधिक पैदा नहीं कर सकता।
यदि किसी भी महिला द्वारा एक से अधिक संतान पैदा करने का प्रयास किया जाता था तो उसे
विभिन्न प्रकार से प्रताडि़त किया जाता था। एक बच्चे के जन्म के बाद गर्भ धारण करने पर
जबरदस्ती गर्भपात भी करवाया जाता था। इस प्रकार से एक संतान की नीति को क्रूरता से लागू
करने के कारण चीन की जनसंख्या की वृद्धि दर में भारी कमी आ गई और अब अंततोगत्वा चीन
की जनसंख्या घटने लगी है। दूसरी तरफ भारत में भी हालांकि जनसंख्या नियंत्रण के उपाय तो
अपनाए गए और सामान्य परिवार दो बच्चों तक ही सीमित हो गए, लेकिन इसमें ज़बरदस्ती का पुट

नहीं था। कुछ वर्गों में अधिक बच्चे पैदा करने की प्रवृत्ति जारी रही, लेकिन जनसंख्या की वृद्धि दर
घटने लगी।
हाल ही में प्रकाशित जनसांख्यिकी आंकड़ों के अनुसार कुल प्रजनन दर 2019 में 2.2 से घटकर
2022 तक 2.159 तक ही रह गई और गौरतलब यह है कि यदि प्रजनन दर 2.0 प्रतिशत से कम
होती है तो जनसंख्या अंततोगत्वा घटने लगती है। लेकिन पूर्व में जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियों के
कारण 1980 और 1990 के दशकों में जनसंख्या वृद्धि की दर 2 प्रतिशत के आसपास होने के
कारण देश में बच्चों की जनसंख्या में खासी वृद्धि हो गई। यही बच्चे जो 1980 और 1990 के
दशक में पैदा हुए, वे 2000 और 2010 के दशक में युवा अवस्था को प्राप्त हुए। यानी भारत में युवा
जनसंख्या का अनुपात बढऩे लगा। आज हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष से कम है। लेकिन
चीन की एक संतान नीति के कारण उनकी जनसंख्या में युवाओं का अनुपात कम होता गया।
हालांकि भारत में युवा जनसंख्या के बढऩे और देश में उस अनुपात में रोजगार नहीं बढ़ पाने के
कारण भारत के युवा दुनिया के दूसरे मुल्कों में रोजगार की तलाश में जाने लगे। इस कारण से शेष
दुनिया में भारतीयों की संख्या बढऩे लगी और उनके द्वारा भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा कमाकर भारत
में भेजी जाने लगी। वर्ष 2022 में भारतीयों द्वारा स्वदेश भेजी जाने वाली राशि 100 अरब डालर से
भी ज्यादा रही और यह राशि अनिवासी चीनियों द्वारा चीन भेजी जाने वाली राशि से कहीं ज्यादा है।
भारत में भी श्रमशक्ति की उपलब्धता काफी बढ़ गई और उसका पूरा उपयोग भी नहीं हो पाता और
देश में बेरोजगारी में भी भारी वृद्धि देखी जा रही है।
चीन के लिए बढ़ती मुश्किलें
चीन में बड़ी और तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण और उसके अनुपात में संसाधनों की कमी से
घबरा कर वहां के कम्युनिस्ट शासकों ने अत्यंत क्रूरता से एक संतान नीति लागू तो कर दी, लेकिन
चीन को इसके साथ एक अन्य समस्या का सामना करना पड़ा, कि चीन में युवाओं की तुलना में
बुजुर्गों का अनुपात बढऩे लगा। इसका असर यह हुआ कि देश में श्रमशक्ति की कमी हो गई और
मजदूरी दरें भी बढऩे लगी। लेकिन अब जब चीन की जनसंख्या ही घटने लगी है, इसके कारण चीन
की मुसीबतें और बढ़ सकती हैं। पहले से ही विकास दर की कमी, महामारी, सरकारों और निजी क्षेत्रों
की बढ़ती ऋणग्रसता और अमरीका समेत दुनिया के विभिन्न मुल्कों की बढ़ती बेरुखी के चलते पहले
से ही मुश्किल में आए चीन की मुश्किलें जनसंख्या की कमी के कारण और भी बढ़ सकती हैं। आज
चीन में खाद्य पदार्थों और अन्य विनिर्मित उत्पादों और साजोसामानों का उत्पादन बहुत अधिक मात्रा
में होता है, लेकिन घटती जनसंख्या के चलते देश में घरेलू मांग प्रभावित हो सकती है। भारत और
अन्य मुल्कों में आत्मनिर्भरता के प्रयास उसके साजोसामान की मांग को कम कर सकते हैं। ऐसे में
घटती घरेलू मांग चीन की अर्थव्यवस्था में ठहराव का कारण बन सकती है। हालांकि चीन की सरकार
ने कुछ साल पहले, आने वाली मुसीबतों को समझते हुए अपनी एक संतान नीति में कुछ ढिलाई का
ऐलान किया है, लेकिन श्रमशक्ति और घरेलू मांग में वृद्धि के संबंध में इसके परिणाम आने में
काफी देर लग सकती है। आज अवसर है कि भारत अपने जनसांख्यिकी लाभ (डेमोग्रेफिक डिविडेंड),
चीन के संकटों और रूस समेत दुनिया में भारत के लिए खुलते नए बाजारों का लाभ उठाते हुए

आत्मनिर्भरता के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़े। गौरतलब है कि सरकार इस मामले में संवेदनशील है
और इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए चीन से आयातों को रोकने हेतु पीएलआई स्कीम, एंटी डंपिंग ड्यूटी
और अन्य रुकावटें लगा रही हैं। गौरतलब है कि चीन से आने वाले अंधाधुंध आयातों के कारण पूरी
दुनिया में मैन्युफैक्चरिंग प्रभावित हुई, जिसके कारण दुनिया भर के मुल्कों को बेरोजगारी का सामना
करना पड़ रहा है। चीन की बढ़ती आर्थिक और सामरिक ताकत के चलते, भारत समेत चीन के सभी
पड़ोसी देश ही नहीं, कई दूसरे मुल्क भी आशंकित हैं। आज जब चीन संकट में है तो उन सभी मुल्कों
को एक रणनीति के तहत वे सभी उपाय अपनाने होंगे ताकि चीन के कम्युनिस्ट शासकों की आर्थिक
और सामरिक ताकत घटे, ताकि उस ताकत के बलबूते वे दुनिया को फिर से परेशान न कर सकं।


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