विनय गुप्ता
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को आप सरकार से कहा कि गर्भवती
महिलाओं के कोविड-19 जांच कराने के अनुरोध को तत्काल मानना चाहिए और नतीजे जल्द घोषित किए जाने
चाहिए। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने कहा कि जांच का अनुरोध मानने,
नमूना लेने और नतीजा घोषित करने के बीच लंबा समयांतर नहीं होना चाहिए। अदालत ने कहा कि जो गर्भवती
महिलाएं प्रसूति के लिए जा रही हैं, वे जांच और नतीजे के लिए पांच-छह दिन इंतजार नहीं कर सकती हैं। पीठ ने
कहा, "तत्काल अनुरोध को स्वीकार करना चाहिए और तुरंत नतीजा देना चाहिए।" दिल्ली सरकार ने अदालत से
कहा कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की ओर से जारी परामर्श के तहत जांच का परिणाम
एक घंटे के अंदर घोषित कर दिया जाना चाहिए।दिल्ली सरकार ने बताया कि हालांकि परामर्श में जांच के लिए
अनुरोध को पूरा करने की समय सीमा पर कुछ नहीं कहा गया है। सरकार ने कहा कि उसने एक अधिसूचना जारी
की है जो कहती है कि जांच के सभी आवेदनों को 48 घंटे के अंदर पूरा किया जाए। पीठ ने दिल्ली सरकार से
परामर्श और अधिसूचना उसके समक्ष रखने को कहा और मामले को बृहस्पतिवार के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
अदालत ने पूछा कि गर्भवती महिला को भर्ती करने के लिए क्या रैपिड जांच से निगेटिव आई रिपोर्ट स्वीकार्य है या
आरटी/पीसीआर जांच करानी जरूरी है। दिल्ली सरकार के वकील ने पीठ के सवालों पर निर्देश लेने के लिए समय
देने का अनुरोध किया। अदालत एक वकील की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। इस याचिका में अनुरोध
किया गया है कि गर्भवती महिलाओं की जांच रिपोर्ट प्राथमिकता के आधार पर दी जाए। उच्च न्यायालय ने 22
जून को टिप्पणी की थी कि बच्चे को जन्म देने जा रही गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में भर्ती करने से पहले
कोविड-19 की जांच रिपोर्ट देने के लिए पांच-सात दिन नहीं लिए जा सकते हैं। अदालत ने आईसीएमआर और
दिल्ली सरकार से तेजी से मामले को देखने को कहा था। इसके बाद दिल्ली सरकार ने एक हलफनामा दायर कर
कहा था कि गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में भर्ती करने से पहले कोविड-19 की जांच जरूरी नहीं है। सरकार ने
कहा था कि जांच को इलाज करने के साथ-साथ किया जा सकता है और अगर रिपोर्ट में संक्रमित होने की पुष्टि
होती है तो गर्भवती महिला को निर्दिष्ट कोविड-19 अस्पताल में भेजा जाएगा।