नई दिल्ली। कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में एक से बढ़कर एक दावों के बीच जमीनी
हकीकत बिल्कुल अलग है। इसे मोतीराम गोयल की कहानी से समझा जा सकता है। एक 75 साल के बुजुर्ग को
हाई ब्लड प्रेशर से चक्कर आ जाता है। बुजुर्ग बेहोश हो जाता है। परिजन आनन-फानन में उसे एक निजी अस्पताल
में ले जाते हैं। वहां कथित तौर पर उसे 2 कोरोना मरीजों के साथ रखा जाता है। बुजुर्ग में भी कोरोना के लक्षण
आ जाते हैं। गरीब परिवार अब मरीज के साथ सरकारी से लेकर प्राइवेट अस्पतालों का चक्कर लगाना शुरू करता है
लेकिन एक भी बेड खाली नहीं होने की बात कहकर कोई भी अस्पताल मरीज को भर्ती करने को तैयार नहीं होता
है।
बुजुर्ग की हालत बद से बदतर होती जाती है। सिस्टम और अस्पतालों की असंवेदनशीलता से थक-हारकर परिवार
आखिरकार हाई कोर्ट से गुहार लगाता है कि बुजुर्ग को अस्पताल में बेड उपलब्ध कराया जाए। हाई कोर्ट याचिका को
स्वीकार भी कर लेता है और अगले दिन सुनवाई की तारीख तय कर दी जाती है। लेकिन उसी दिन मरीज दम तोड़
देता है। यह कहानी कहीं और की नहीं, उस दिल्ली की है जहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अस्पतालों को लेकर
अक्सर इतराते रहते हैं।
साइकल मरम्मत की दुकान चलाने वाले 75 साल के मोतीराम गोयल हाई ब्लड प्रेशर के मरीज थे। वह दिल्ली के
नंदनगरी के रहने वाले थे। 25 मई को वह हाई बीपी की वजह से बेहोश गए। परिजन उन्हें शाहदरा के एक
अस्पताल लेकर पहुंचे। अगले दिन यानी 26 मई को परिजन उन्हें आनंद विहार के एक निजी अस्पताल में शिफ्ट
करते हैं। वहां मोतीराम को कथित तौर पर 2 कोरोना मरीजों के साथ रखा जाता है।
27 मई को मोतीराम में कोरोना जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। गरीब परिवार निजी अस्पताल में कोरोना के इलाज
का खर्च नहीं उठा पाता, इसलिए परिजन पहले दिल्ली के सरकारी अस्पतालों का चक्कर लगाते हैं लेकिन मोतीराम
को भर्ती नहीं किया गया। फिर प्राइवेट अस्पतालों का भी चक्कर लगाते हैं।
27 मई से 3 जून तक परिजन जीटीबी अस्पताल, राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, संजीवनी अस्पताल
और मैक्स पटपड़गंज हॉस्पिटल की खाक छानते हैं। लेकिन सबका जवाब एक ही होता कि बेड ही खाली नहीं है।
मोतीराम की हालत बिगड़ती चली जाती है।
आखिरकार 3 जून को परिजनों ने दिल्ली हाई कोर्ट में गुहार लगाई कि मोतीराम को बेड उपलब्ध कराने के लिए
सरकार को निर्देश दिया जाए। हाई कोर्ट में यह याचिका 4 जून को सुनवाई के लिए सूचीवद्ध होती है। लेकिन
इससे पहले कि हाई कोर्ट मोतीराम की तरफ से लगाई गई गुहार पर सुनवाई करता, उससे एक दिन पहले ही वह
दुनिया छोड़ गए।