कैबिनेट ने दी अध्यादेश को मंजूरी, स्वास्थ्य कर्मियों पर हमला करने पर होगी सात साल तक की जेल

asiakhabar.com | April 23, 2020 | 12:06 pm IST

मनीष गोयल

नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को एक अध्यादेश को मंजूरी दे दी, जिसमें कोरोना
वायरस के खिलाफ लड़ाई में शामिल स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा और उनके उत्पीड़न को संज्ञेय और गैर
जमानती अपराध बनाया गया है। अध्यादेश में इस जुर्म के लिये अधिकतम सात साल कैद और 5 लाख रुपये के
जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक
में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इससे स्वास्थ्यकर्मियों की एक महत्वपूर्ण मांग पूरी हो गई है जिन्हें
हाल के दिनों में हमलों का सामना करना पड़ा है। डॉक्टरों, नर्सों, पैरामेडिकल स्टाफ और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के
खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न के प्रति सरकार की ‘बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने’ की नीति होने की बात करते हुए बैठक
के बाद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने संवाददाताओं को बताया कि नये प्रावधानों के तहत ऐसा अपराध करने पर
किसी व्यक्ति को तीन महीने से लेकर पांच वर्ष तक कैद की सजा दी जा सकती है और 50 हजार रुपये का
जुर्माना लगाया जा सकता है। गंभीर रूप से घायल होने की स्थिति में छह महीने से लेकर सात वर्ष तक की कैद
और जुर्माना 1 से 5 लाख रूपये तक हो सकता है। जावडेकर ने कहा कि प्रस्तावित अध्यादेश में स्वास्थ्य कर्मियों
के घायल होने, सम्पत्ति को नुकसान होने पर मुआवजे का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित
अध्यादेश के माध्यम से महामारी अधिनियम 1897 में संशोधन किया जायेगा। इस कानून को तब भी लागू किया
जाएगा जब स्वास्थ्यकर्मियों को अपने मकान मालिकों या पड़ोसियों से महज इस संदेह की वजह से उत्पीड़न का
सामना करना पड़ा कि उनके काम की प्रकृति की वजह से कोविड-19 का संक्रमण हो सकता है। उन्होंने बताया कि
संशोधित कानून के तहत ऐसे अपराध को संज्ञेय और गैर जमानती बनाया गया है। संज्ञेय और गैर जमानती
अपराध का मतलब यह है कि पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है और उसे अदालत से ही जमानत मिल
सकती है। जावडेकर ने कहा, ‘‘डाक्टरों, नर्सो, पैरामेडिकल कर्मी, आशा कर्मियों को परेशान करने और उनके
खिलाफ हिंसा को हमारी सरकार बर्दाश्त नहीं करती, खासकर ऐसे समय में जब वे ऐसी महामारी के खिलाफ लड़ाई
में सर्वश्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं।’’ सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने कहा कि जो लोग भी हिंसा के लिये जिम्मेदार होंगे,
उनसे नुकसान की भरपायी की जायेगी और यह तोड़फोड़ की गई सम्पत्ति के बाजार मूल्य का दोगुना होगा। उन्होंने
कहा कि सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि स्वास्थ्य कर्मी बिना किसी तनाव के काम कर सकें। गौरतलब है कि
हाल के दिनों में देश के कई क्षेत्रों से स्वास्थ्यर्मियों पर हमले एवं उन्हें परेशान किये जाने की घटनाएं सामने आई
हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर ऐसे हमलों एवं स्वास्थ्यकर्मियों को परेशान किये जाने की घटनाओं की निंदा करते
रहे हैं।प्रधानमंत्री इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में स्वास्थ्य कर्मियों की भूमिका की सराहना करते रहे हैं। यह पूछे
जाने पर क्या कोविड-19 के बाद भी नये बदलाव लागू रहेंगे, जावड़ेकर ने संवाददाताओं से कहा कि अध्यादेश को
महामारी अधिनियम 1897 में संशोधन के लिये मंजूरी दी गई है। उन्होंने सिर्फ इतना कहा, ‘‘लेकिन यह अच्छी
शुरूआत है।’’ बहरहाल, जावडेकर ने बताया कि इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रिय स्वास्थ्य मंत्री
डॉ. हर्षवर्धन ने बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से डॉक्टरों और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के

प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की। गृह मंत्री ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में डॉक्टरों की भूमिका की सराहना की
और विश्वास व्यक्त किया कि सभी डॉक्टर इस लड़ाई में समर्पित रूप से काम करना जारी रखेंगे, जैसा कि वे अब
तक कर रहे हैं। कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में डॉक्टरों की सुरक्षा के बारे में उनकी सभी चिंताओं को ध्यान
में रखते हुए गृह मंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि मोदी सरकार उनकी भलाई और सुरक्षा सुनिश्चित करने में कोई
कसर नहीं छोड़ेगी। स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिये कानून बनाने की मांग कर रहे आईएमए ने इस बैठक के
बाद क्रमश: 22 अप्रैल और 23 अप्रैल को प्रस्तावित 'व्हाइट अलर्ट' और 'काला दिवस' विरोध को वापस ले लिया।
बहरहाल, राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी करने और सरकार के इसे अधिसूचित करने के बाद संशोधित कानून लागू
होगा।


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