महाराष्ट्र के महानाटक का पटाक्षेप हो चुका है। बहुमत परीक्षण की नियति का एहसास था, लिहाजा सदन में जाने
से पहले ही उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद और विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उद्धव करीब 31
माह के कार्यकाल में सदन की सियासत से दुखी हो गए थे। हालांकि उन्होंने अपने अंतिम संबोधन में कहा है कि
उन्हें सत्ता का लालच नहीं है। उन्हें आप सब शिवसैनिकों का आशीर्वाद चाहिए। आप ‘मातोश्री’ में आएं और मेरे
सामने अपनी नाराज़गी, भावनाएं व्यक्त करें। हम सब आज भी शिवसैनिक हैं। यह भावुक आह्वान उद्धव ने बागी
शिवसेना विधायकों के लिए किया। वे उनकी आखिरी उम्मीद थे, लेकिन कोई लौट कर नहीं आया, लिहाजा इस्तीफे
की नौबत आई। उद्धव 2-3 दिन पहले ही इस्तीफा देना चाहते थे, लेकिन एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार रोकते रहे
और आखिरी लड़ाई को तैयार करते रहे। कैबिनेट की अंतिम बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने सभी संबद्ध कर्मचारियों,
अफसरों और मंत्रियों का हाथ जोड़ कर आभार जताया। बाद में शरद पवार और सोनिया गांधी का गठबंधन के
सहयोग के लिए धन्यवाद किया। यह मुद्रा भी स्पष्ट थी कि उद्धव मुख्यमंत्री पद से विदाई लेने के मानस में हैं।
बहरहाल सर्वोच्च अदालत ने एक बार फिर फैसला सुनाया कि राज्यपाल ने बहुमत परीक्षण का आदेश दिया है,
लिहाजा फ्लोर टेस्ट को रोका नहीं जा सकता। विधायकों की अयोग्यता और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास
प्रस्ताव बाद में तय किए जा सकते हैं, लेकिन राज्यपाल का सरकार के बहुमत पर आश्वस्त होना बेहद जरूरी है।
सर्वोच्च अदालत के फैसले के करीब 30 मिनट बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने फेसबुक लाइव के जरिए जनता को
संबोधित किया। वह बेहद मर्माहत लग रहे थे। उन्होंने कहा कि जिन फेरीवालों, चायवालों, रेहड़ीवालों और
रिक्शावालों को शिवसेना ने गले लगाया और अनपेक्षित बुलंदियों तक पहुंचाया, उन्होंने मुझे धोखा दिया। जिनके
लिए हम ज्यादा कुछ नहीं कर पाए, आज वे हमारे साथ हैं। उद्धव का साफ संकेत उन करीब 40 बागी विधायकों
की तरफ था, जिनकी वजह से सरकार का पटाक्षेप हुआ। बेशक शिवसेना विधायक दल में बग़ावत और विभाजन
हुए, लेकिन पार्टी शिवसेना पर उद्धव ठाकरे का ही नेतृत्व रहेगा। पार्टी को लेकर दावे सुप्रीम अदालत और चुनाव
आयोग में जाएंगे, जो बेहद लंबी प्रक्रिया है। इस्तीफा देने से पूर्व उद्धव और कैबिनेट ने कुछ प्रस्ताव पारित किए।
मसलन-औरंगाबाद का नया नाम संभाजीनगर होगा और उस्मानाबाद को धाराशिव कहेंगे। 22-24 जून के अंतराल में
करीब 440 ऑर्डर पास किए। इनमें करोड़ों-अरबों रुपए का ‘खेल’ है।
वे विकास-कार्य बताए जा रहे हैं। राज्यपाल ने उन पर भी स्पष्टीकरण मांगा था। बहरहाल महाराष्ट्र में शिवसेना,
एनसीपी, कांग्रेस का बेमेल गठबंधन ढह चुका है और महाविकास अघाड़ी सरकार का पटाक्षेप हो चुका है। राज्यपाल
के सामने दूसरा विकल्प भाजपा नेतृत्व की सरकार का है। यदि करीब 40 बागी और शेष निर्दलीय विधायक भाजपा
सरकार को समर्थन देते हैं, तो वैकल्पिक सरकार आराम से बन सकती है। हमारी सूचना है कि बागी विधायक नई
सरकार में शामिल हो सकते हैं। शिंदे सेना कभी भी मुंबई में लौट सकती है। बागी विधायकों की पहचान क्या
होगी? उद्धव की शिवसेना उन्हें पार्टी विधायक दल की मान्यता नहीं देगी। क्या बागी गुट भाजपा में विलय
करेगा? अथवा दो-तिहाई विधायकों का एक अलग गुट बनाया जाएगा? चूंकि अब नई सरकार में स्पीकर, डिप्टी
स्पीकर के पदों पर नए चेहरे होंगे, लिहाजा सर्वोच्च अदालत में जो सुनवाई 11 जुलाई के बाद होनी थी, संभवतः
वह टल जाएगी। यहां एक गौरतलब सवाल है कि विधायक दलबदल करते हैं और स्पीकर या डिप्टी स्पीकर के
खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे देते हैं, नतीजतन पाला बदलने वाले विधायकों के खिलाफ अयोग्यता का
फैसला नहीं लिया जा सकता है, उस स्थिति में दलबदल विरोधी कानून क्या मज़ाक बनकर नहीं रह जाता? ब्रिटेन
में कोई भी सांसद स्पीकर बनता है, तो वह अपनी मूल पार्टी से इस्तीफा दे देता है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है।
चूंकि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर गैर-राजनीतिक नहीं होते, दलबदल के संदर्भ में उन पर संदेह बना रहता है। इसका
निपटारा हो।