नई दिल्ली। राजकमल प्रकाशन द्वारा शुक्रवार को कांस्टीट्यूशन क्लब में अरुंधति राय की पुस्तक ””एक था डॉक्टर एक था संत”” का विमोचन किया गया जिसमें संविधान निर्माता भीमराव अम्बेडकर और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के राजनीतिक मतभेदों का लेखाजोखा है। इस मौके पर अरुंधति राय ने कहा कि यह पुस्तक अंबेडकर और गांधी की तुलना नही कर रही है बल्कि ये उस समय दलितों की दशा और उनकी राजनीतिक मांगों का जिक्र कर रही हैं । उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई का यह एक दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय है जब एक जाति समुदाय को अपना प्रतिनिधित्व करने से वंचित कर दिया गया। इसके पीछे साजिश क्या थी और उस समय के राजनीतिक नेता क्या सोच रखते थे इसका लेखाजोखा पुस्तक में लिया गया है। वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने कहा कि अरुंधति की खास बात यह है कि वह जब कुछ लिखती हैं तो उसके पीछे शोध बहुत करती हैं। यह बात सीखने लायक है। उन्होंने कहा कि लेखिका किस तरह के सामाजिक विषयों और प्रथाओं पर लिखती हैं, वह अनुकरणीय है। इस पुस्तक से हिंदी पाठक प्रेरित होंगे। अंबेडकर को हिंदी भाषाभाषी राज्यों में स्थापित करने का अगर श्रेय बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम को जाता है। अरुंधति की किताब ”एक था डॉक्टर, एक था संत” के अनुवादक अनिल यादव ‘जयहिंद’ ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “हमारे देश को एक सामाजिक क्रांति की जरूरत है और यह क्रांति पढ़ने से आती है, अरुंधति की यह पुस्तक इस देश में क्रांति ला सकती है। जब अंग्रेजी में इस पुस्तक को पढ़ा तो झकझोर दिया था। अनुवाद करते वक्त प्रयास रहा कि सरल शब्दों का प्रयोग किया जाये। अरुंधति के पुस्तकों का अनुवाद करना कठिन है क्योकि इनके एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। हमने पूरी कोशिश की है कि लेखनी में हमारी अपनी भावनाएं न झलकें।”” पुस्तक के सह- अनुवादक रतन लाल ने कहा कि इतिहास में अम्बेडकर के साथ अन्याय पूर्ण व्यवहार किया गया। इतिहास ने अम्बेडकर के लेखों को दुनिया की नज़रों से छिपा दिया लेकिन फिर भी अम्बेडकर के मानने वालों ने उन्हें अपने दिलों में जिन्दा रखा।” उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक की मूल कृति अंग्रेजी में ””द डॉक्टर एंड द सेंट :कास्ट,रेस एंड एनीहिलेशन ऑफ़ कास्ट:द डिबेट बिटवीन बीआर अम्बेडकर एंड एम के गांधी।” इस किताब का हिंदी अनुवाद डॉ अनिल यादव ”जयहिंद” और रतन लाल ने किया है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित यह किताब पहले पेपरबैक संस्करण में आ रही है।