‘योगीराज’ में कानून व्यवस्था एक बड़ी चुनौती

asiakhabar.com | May 29, 2017 | 6:07 pm IST

-तनवीर जाफरी- उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार के बारे में विधानसभा के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी द्वारा जोर-शोर से यही प्रचारित किया गया था कि ‘सपा के शासन में पूरे राज्य में गुंडाराज कायम है’। ‘एक जाति विशेष के लोगों को सबसे अधिक महत्व दिया जा रहा है’। ‘कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है’ और ‘उत्तर प्रदेश बदहाली व भ्रष्टाचार के दौर से गुजर रहा है’। जाहिर है भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव संकल्प पत्र में प्रदेश की जनता को उपरोक्त सभी सामाजिक बुराईयों से मुक्ति दिलाए जाने का संकल्प लिया तथा प्रदेश में सुशासन कायम करने का जनता से वादा किया। प्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को ऐतिहासिक बहुमत से जीत दिलाई और पार्टी ने गेारखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को देश के इस सबसे बड़े राज्य की सत्ता की बागडोर सौंपने में ही अपनी राजनैतिक भलाई समझी। हालांकि योगी का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित होने के साथ ही राजनैतिक विश्लेषकों द्वारा इस बात को लेकर शंका जाहिर की जाने लगी थी कि प्रदेश में कानून व्यवस्था ठीक करने, राज्य से गुंडा व मािफया राज समाप्त करने की जो चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को दी है वे स्वयं ही कई अपराधिक मुकद्दमों का सामना कर रहे हैं। केवल मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित राज्य के और भी कई विधायक अपराधिक मुकद्दमों का सामना कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के निर्वाचित 322 सत्तारुढ़ विधायकों में 143 सत्ताधारी विधायकों पर गंभीर आपराधिक मुकद्दमे दर्ज हैं। इनमें 107 विधायकों पर हत्या, हत्या का प्रयास, दंगे-फसाद फैलाने जैसे गंभीर आरोप भी हैं। सवाल यह है कि क्या उत्तर प्रदेश विधानसभा में निर्वाचित अपराधी विधायकों की इतनी बड़ी सं या यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री की आपराधिक पृष्ठभूमि, उत्तरप्रदेश में कानून व्यवसथा को नियंत्रण में रखने तथा प्रदेश से गुंडाराज व अराजक ता को समाप्त कर पाने में कारगर सबित हो सकेगी? एक और जरूरी बात यह भी कि योगी आदित्यनाथ ने 2002 में जिस हिंदू युवा वाहिनी नामक संगठन को खड़ा किया था उसमें भी तमाम सदस्य ऐसे हैं जिनपर अनेक आपराधिक मुकद्दमे चल रहे हैं। इस संगठन के अनेक लोगों का प्रदेश के कई सांप्रदायिक दंगों में भी हाथ रहा है। बहरहाल इन सब बातों के बावजूद प्रदेश के मतदाताओं ने अखिलेश यादव सरकार के मुकाबले में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को चुनने का फैसला लिया है, इसका स्वागत किया जाना चाहिए। परंतु जहां तक पार्टी के संकल्प पत्र पर अमल करने का प्रश्र है और राज्य की सबसे बड़ी चुनौती जो स्वयं भाजपा द्वारा चिन्हित की गई थी यानी प्रदेश से गुंडाराज का खात्मा करना और राज्य की कानून व्यवस्था पटरी पर लाने जैसी बड़ी चुनौती के संदर्भ में राज्य में फिलहाल किसी प्रकार की सकारात्मक प्रगति होने के बजाए उलटे राज्य की निराशाजनक तस्वीर ही योगी राज में सामने आती दिखाई दे रही है। उत्तरप्रदेश में भाजपा की जीत के नशे में भाजपाई इतने मदमस्त हो चुके हैं कि उन्हें किसी पुलिस स्टेशन में आग लगाने और तोड़फोड़ करने से लेकर जिले के पुलिस प्रमुख के बंगले पर तोड़फोड़ करने, धरना देने तथा बंगले में जबरन घुसकर जनसभा करने तक में कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं हो रही है। भाजपा के ‘अति उत्साही’ विधायक द्वारा कहीं किसी जिले में बैंक मैनजर की पिटाई की जा रही है तो कहीं उप पुलिस अधीक्षक व थानेदार को धमकाया जा रहा है। कहीं सरकारी कार्यालयों में हिंसा की जा रही है। प्रायः सभी जगहों पर भाजपा नेताओं द्वारा यह जताया जा रहा है कि अब सपा का शासन खत्म हो चुका है और भाजपा का ‘योगी राज’ आ चुका है और राज्य में अब वही होगा जो भाजपा व उसके सहयोगी संगठनों के नेता व कार्यकर्ता चाहेंगे। इन नेताओं के इस विजय उत्साह के आगे किसी बड़े से बड़े अधिकारी से लेकर छोटे कर्मचारी तक की मान-मर्यादा, उसका सम्मान सब कुछ खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है। सहारनपुर में बीजेपी सांसद राघव लखनपाल ने जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लव कुमार आईपीएस के निवास पर उनकी अनुपस्थिति में जो तांडव किया तथा दहशत का जो वातावरण पुलिस अधीक्षक के बंगले पर पैदा किया उससे एसपी के परिवार के लोग भयभीत हो गए। ऐसा नहीं लगता कि ऐसी स्थिति उत्तरप्रदेश में पहले भी कभी उत्पन्न हुई होगी? हालांकि पुलिस ने सांसद के विरुद्ध एफआईआर तो जरूर दर्ज कर ली परंतु मुख्यमंत्री योगी ने उस एसएसपी लव कुमार को ही सहारनपुर से स्थानांतरित कर दिया। यही सहारनपुर इन दिनों दलित-राजपूत संघर्ष की आग में झुलस रहा है। लोगों के घर जलाए जा रहे हैं और हत्याएं हो रही हैं। गोया अराजकता का बोलबाला दिखाई दे रहा है। इसी प्रकार आगरा के अंतर्गत् फतेहपुर सीकरी के सदर थाने में पिछले दिनों भाजपा के कार्यकर्ताओं व विश्व हिंदू परिषद एवं बजरंग दल के लोगों ने पुलिस के साथ थाने में ही हिंसक तांडव किया तथा थाने में आग भी लगा दी। यह सत्ताधारी कार्यकर्ता पुलिस के कब्जे से अपनी ही पार्टी के कुछ गिर तार किए गए कार्यकर्ताओं को जबरन छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे। यह लोग पुलिस के लॉकअप से अपने पांच साथियों को गैरकानूनी तरीके से बलपूर्वक छुड़ा कर ले जाना चाह रहे थे। क्या सत्ताधारी पार्टी कार्यकर्ताओं की पुलिस के साथ इस प्रकार की सीधी मुठभेड़ राज्य में कानून व्यवस्था बहाल करने में सहयोगी साबित हो सकेगी? क्या थाने पर हमला व एसएसपी के घर पर धावा बोलना और आईपीएस जैसे वरिष्ठ अधिकारी को नालायक कहना एक सत्ताधारी सांसद या सत्ताधारी पार्टी कार्यकर्ताओं को शोभा देता है? इसी प्रकार बाराबंकी के एक भाजपा सांसद ने तो सार्वजनिक रूप से अपना आपा खोते हुए यहां तक कह डाला कि वे ‘पुलिस अधीक्षक की खाल खिंचवा देंगे’। बरेली में भाजपा विधायक ने एक बैंक मैनेजर की पिटाई कर दी और बाद में उसका अपहरण करवा दिया। कन्नौज में पीडब्लूडी कार्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा हंगामा बरपा किए जाने का समाचार आया। इनसब के अलावा भी प्रदेश के अनेक जिलों व कस्बों से भाजपाईयों द्वारा उद्दंडता बरते जाने के समाचार लगातार मिल रहे हैं। सवाल यह है कि जो भाजपा राज्य में गुंडागर्दी समाप्त करने व सुशासन कायम करने के नाम पर सत्ता में आई है उसी पार्टी के सांसद, विधायक व कार्यकर्ता यदि राज्य की कानून व्यवस्था को नियंत्रित रखने वाली सबसे बड़ी मशीनरी अर्थात् पुलिस विभाग के आला अधिकारियों, पुलिस कर्मियों का ही सम्मान नहीं करेंगे, उन्हीं के समक्ष कानून व्यवस्था खराब करने जैसी स्थिति स्वयं पैदा करेंगे, पुलिस अधीक्षक आवास तथा पुलिस थाने को अराजकता फैलाने का केंद्र बना देंगे फिर आिखर यह सत्ताधारी लोग इन्हीं पुलिस कर्मियों से राज्य में क़ानून व्यवस्था सुधारने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? दूसरी बात यह कि इन सत्ताधारी लोगों द्वारा पैदा की जाने वाली इस प्रकार की असहज स्थिति क्या पुलिस अधिकारियों व पुलिसकर्मियों का मनोबल नहीं गिराएगी? वैसे भी चाहे अखिलेश यादव की सरकार हो या योगी आदित्यनाथ की नई भाजपा सरकार। किसी भी सरकार में जब अपराधी पूष्ठभूमि रखने वाले लोग दुर्भाग्यवश मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, मंत्री अथवा विधायक जैसे संवैधानिक पदों पर आ जाते हैं उस समय प्रशासनिक अधिकारियों व पुलिस अधिकारियों के समक्ष एक असहज सी स्थिति पैदा हो जाती है और यदि इस प्रकार के लोग निर्वाचित होने के बाद या मंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर आसीन होने के बाद इन्हीं अधिकारियों को आंखें दिखाने लगें या इनसे अपनी मनमानी करवाने की उम्मीदें पालने लगें ऐसे में प्रदेश की कानून व्यवस्था की संभावित स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।


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