पाकिस्तान में अब वही होगा, जो फौज चाहेगी। फौज का आशीर्वाद इमरान खान को मिला और अब वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री होंगे। किसी भी लोकतंत्र में जो प्रायः होता है, वह पाकिस्तान में नहीं हुआ। यदि किसी लोकप्रिय नेता को नवाज शरीफ की तरह अपदस्थ किया जाए और बाद में उसे जेल में डाल दिया जाए तो उस देश की जनता का गुस्सा उमड़ पड़ता है, जैसा कि 1979 में इंदिरा गांधी के साथ हुआ। ऐसा नवाज के साथ नहीं हुआ, इसका मतलब साफ है कि पाकिस्तान के लोगों के मन पर अभी भी फौज का दबदबा कायम है।अभी भी वह फौज को ही अपना रक्षक समझती है, नेताओं को नहीं। जो नेता फौज को चुनौती देगा, उसे पाकिस्तानी जनता स्वीकार नहीं करेगी। हो सकता है कि चुनाव में धांधली के जो आरोप लगाए हैं, वे सच होंगे लेकिन अब उनकी कीमत क्या रह गई है ? यह संभव है कि मियां नवाज़ और बिलावल भुट्टो की पार्टियां पंजाब और सिंध में इमरान का जीना हराम कर दें और पाकिस्तान घोर अराजकता और खूंरजीं के नए दौर में प्रवेश कर जाए। लेकिन अब भारतीय लोग, कई टीवी चैनल, कई अखबार और नेतागण मुझसे पूछते रहे कि इमरान का भारत के प्रति रवैया कैसा रहेगा ? जहां तक इमरान खान का सवाल है, उनसे तीन-चार बार मेरी लंबी मुलाकातें हो चुकी हैं। मैंने उनके दिल में भारत के प्रति जहर भरा हुआ कभी नहीं देखा लेकिन चुनाव के आखिरी दो दिनों में उन्होंने जो जुमलेबाजी की है, वह वैसी ही है, जैसी कि अक्सर चुनावों में होती है या पाकिस्तानी फौज के अफसर करते रहते हैं। इमरान इसी फौज के मोहरे हैं। वे फौज की मर्जी पर अपनी मर्जी कैसे थोप पाएंगे ? इमरान के दर्जनों मित्र भारत में हैं। वे कई बार भारत आ चुके हैं। लेकिन पाकिस्तान की विदेश नीति और रक्षा-नीति पर जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनजीर और नवाज जैसे लोकप्रिय नेताओं का भी दखल नहीं रहा तो इमरान खान को यह आजादी कैसे मिलेगी ? लेकिन इमरान का स्वभाव अन्य नेताओं जैसा नहीं है। वे यदि भड़क गए तो फौज को लेने के देने पड़ सकते हैं। ऐसी स्थिति में इमरान की भी वही गति हो सकती है, जो अन्य पाक प्रधानमंत्रियों की हुई है। कुल मिलाकर इस चुनाव के कारण पाकिस्तान अनिश्चितता के भयंकर दौर में प्रवेश कर गया है। इसीलिए भारत को अपना हर कदम फूंक-फूंककर रखना होगा।