
MP वाले दिग्गी राजा को तो जानते ही होंगे आप, अरे वही… अपने दिग्विजय सिंह। कभी मध्य प्रदेश की सत्ता में शीर्ष पर रहे दिग्विजय बाबू आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। रगों में राजपुताना खून है, भला इतनी जल्दी हथियार कैसे डाल देते। लगे हुए हैं तमाम दांव-पेंच लगाने में। पर नयका कांग्रेसी सब दांव-पेंच कहां लगने दे रहे हैं। आखिर दिग्गी राजा के पास क्या नहीं है, उमर है, अनुभव है, कई सालों तक CM रहे हैं, राजनीति में लंबी पारी खेली है, BJP-RSS के खिलाफ सबसे आक्रामक भी रहे हैं, मैडम के करीबी भी थे, राजपूत समुदाय से आते हैं, कांग्रेस की लंबे समय से सेवा कर रहे हैं, जनता के बीच पकड़ भी है, और क्या चाहिए। हां, एक चीज नहीं है और वह है राहुल गांधी का साथ और यही वह चीज है जो कुछ ना होने के बाद भी उन्हें सत्ता के शिखर तक पहुंचा सकती है। वो क्या है ना कि कभी दिग्विजय को अपना राजनीतिक गुरु बताने वाले आजकल उनसे कट्टी कर चुके हैं। यहां तो उनकी दस साल की कुर्बानी भी काम नहीं आ रही है। अब दिग्विजय का दर्द कौन समझे? जबलपुर से इंदौर, बघेलखंड से भोपाल छान मारने के बाद भी अकेले-अकेले छटपटा रहे हैं। यह छटपटाहट भी ऐसी है कि कोई दवा-दारू भी काम नहीं आ रही। गोवा भी गए थे Relax होने पर वहां काम और बिगड़ गया जिसके बाद हैदराबाद की बिरयानी को भी छोड़ना पड़ा। पर ऐसा क्यों, चलिए आपको बताते हैं:- पहला- हुआ यह कि गोवा विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में कांग्रेस उभरी पर सरकार बना नहीं पा रही थी। परिस्थिति को देखते हुए कांग्रेस ने धाकड़ और फ्रंटफुट पर बैटिंग करने वाले दिग्विजय सिंह को वहां भेजा। दिग्विजय जब तक कुछ समझ पाते, BJP के नागपुर वाले मंत्री जी Concrete की बनी पिच पर छक्का मार चुके थे। अब दिग्विजय की जो किरकिरी मीडिया और विपक्ष में हुई वो भला कांग्रेस कैसे पचा सकती थी। गाज तो गिरनी ही थी।