मेवात, 25 मई । बरकत और सब्र के नाम से महशूर महिना रमजान आगामी शनिवार से शुरू होने जा रहा है। मुस्लिम बहुल क्षेत्र मेवात में इसकी तैयारी रमजान से करीब 15 दिन पहले शबे-बरात के बाद से ही शुरू कर दी जाती है। रोज-रोज बाजार के चक्कर ना काटने पडें इस लिये अधिकतर लोग सप्ताह दस दिन के लिये शहरी और इफ्त्यारी के सामान का जुगाड पहले ही कर लेते हैं। लोग फल और सब्जियों को छोड़कर चीनी, दाल, आटा, शर्बत, चावल, बूरा जैसे जरूरी सामान खरीद लेते हैं। हरियाणा में मेवात क्षेत्र मुस्लिम बहुल होने की वजह से यहां रमजान के महिनों में खास रौनक होती है। रमजान के पूरा महिना लोग रोजा रखते हैं। सुबेह लोग शहरी करते हैं और शाम को सूरज छिप जाने के बाद रोजा खोलते हैं। रोजा शुरू होने से पहले मेवात में 98 फीसदी से अधिक चाय की दुकान और होटले दिन में बंद कर दी जाती है। रमजान माह में अमीर आदमी गरीबों को जकात, खेरात सदका और फितरा देते हैं। रोजे का इतिहास अल्लाह के हुक्म से सन् 2 हिजरी से मुसलमानों पर रोजे अनिवार्य किए गए। इसका महत्व इसलिए बहुत ज्यादा है क्योंकि रमजान में शब-ए-कद्र के दौरान अल्लाह ने पवित्र कुरान को आसमान से उतारा था। रोजे की अहमियत जमीयत उलमा हिंद की नोर्थ जोन के सदर मोलाना याहया करीमी ने बताया कि इसलाम धर्म में रोजे की बहुत बडी फजीलत है। हर बालिग, आकिल और तंदुरूस्त मर्द-औरत पर रोजा रखना फर्ज होता है ना रखने वाला गुनाहगार होता है। रोजा केवल भूखे रहने का नाम नहीं हैं बल्कि रोजा, आंख, नाक, कान, पैर और दिल का भी होता। मसलन कोई आदमी रोजा रखकर गलत ना देखे, गलत ना सुने, हाथ से गलत काम ना करे, ना गलत सोचे तभी सही माईने में रोजा पूरा होता है। रोजा सब्र और गरीबों की मदद करना सिखाता है। क्या हैं सहरी, इफ्तार और तरावी सूरज निकलने से करीब डेढ़ घंटे पहले सहरी (खाना खाना) के बाद रोजा शुरू हो जाता है। पूरे दिन आप कुछ भी खा-पी नहीं सकते। शाम को तय वक्त पर इफ्तार कर रोजा खोला जाता है। रात को इशां की नमाज (करीब 9 बजे) के बाद तरावी (खास इबादत) की नमाज अदा की जाती है। ईद का चांद 29वें दिन या 30वें दिन नजर आने के अगले दिन ईद मनाई जाती है। रोजे से छूट किसे बीमार हो या बीमारी बढ़ने का डर हो। लेकिन, इसमें डॉक्टर की सलाह जरूरी। यानी अगर डॉक्टर कहता है कि आपके रोजा रखने का असर बीमारी पर पड़ेगा तो रोजा न रखने की छूट है। अगर आप यात्रा पर हैं, प्रेग्नेंट महिला और जो मां अपने बच्चे को दूध पिलाती है उन्हें भी इससे छूट है। बहुत ज्यादा बूढ़े लोगों को भी इससे छूट रहती है। दान सबसे महत्वपूर्ण रमजान में जकात (दान) का खास महत्व है। अगर किसी के पास सालभर उसकी जरूरत से अलग साढ़े 52 तोला चांदी या उसके बराबर का कैश या कीमती सामान है तो उसका ढाई फीसदी जकात यानी दान के रूप में गरीब या जरूरतमंद लोगों को दिया जाना जरूरी है। ईद पर फितरा (एक तरह का दान) हर मुसलमान को करना चाहिए। इसमें 2 किलो 45 ग्राम गेहूं की कीमत तक की रकम गरीबों में दान की जानी चाहिए। रोजे के मायने रोजा को अरबी भाषा में सौम कहा जाता है। सौम का मतलब होता है रुकना, ठहरना यानी खुद पर नियंत्रण या काबू करना। यह वह महीना है जब हम भूख को शिद्दत से महसूस करते हैं और सोचते हैं कि एक गरीब इंसान भूख लगने पर कैसा महसूस करता होगा। बीमार इंसान जो दौलत होते हुए भी कुछ खा नहीं सकता, उसकी बेबसी को महसूस करते हैं।