उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक बार फिर अपयश के शिकार हो गये हैं। पहले उनकी छवि पिता मुलायम सिंह और चाचा शिवपाल यादव के साथ बदसलूकी के चलते दागदार हुई थी, अबकी अखिलेश की छवि उनके द्वारा खाली किये गये सरकारी बंगले में तोड़फोड़ के चलते सुर्खियां बटोर रही है। उनकी साफ−सुथरी छवि पर दाग लगा है। पिता मुलायम से बदसलूकी का खामियाजा सपा प्रमुख अखिलेश को विधानसभा चुनाव में हार के रूप में भुगतना पड़ा था। अब बंगले में तोड़फोड़ का मामला किस करवट बैठेगा, यह देखने वाली बात होगी। ऐसा नहीं था कि अखिलेश ने विधान सभा चुनाव के समय मुलायम सिंह से बदसलूकी पर सफाई नहीं दी थी, लेकिन जनता ने तब भी उनकी किसी सफाई पर भरोसा नहीं किया था और आज भी सरकारी आवास में तोड़फोड़ पर उनकी सफाई लोगों के गले नहीं उतर रही है। वह जितनी सफाई दे रहे हैं, उतना ही उलझते जा रहे हैं। अखिलेश के ऊपर सरकारी बंगले से महंगे साजो−समान और इलेक्ट्रानिक उपकरणों सहित तमाम सुख सुविधाओं की वस्तुओं को ले जाने का आरोप बेजा और सिर्फ सियासी नहीं कहा जा सकता है। बिना चिंगारी के शोले नहीं बन सकते हैं। इसीलिये बीजेपी इस मुद्दे को छोड़ना नहीं चाह रही है, कम से कम लोकसभा चुनाव तक तो बीजेपी द्वारा इसे जीवित रखा ही जायेगा। उक्त मुद्दे के माध्यम से बीजेपी और योगी सरकार पूर्व मुख्यमंत्री की स्वच्छ और बेदाग छवि को धूमिल करना चाहेंगे। अखिलेश के लिये यह ऐसी लड़ाई है, जिसे उसको अकेले ही लड़ना होगा, न बसपा का साथ उन्हें मिलेगा, न कांग्रेस ही इस मुद्दे पर अखिलेश के बचाव में आना पसंद करेगी।
जिस बंगले को बचाते रहे उसी को उजाड़ कर चले गये अखिलेश
asiakhabar.com | June 14, 2018 | 5:56 pm ISTइसी वजह से अखिलेश के सरकारी बंगला खाली करने के बाद यूपी की सियासत में घमासान मचा हुआ है तो अखिलेश अकेले खड़े नजर आ रहे हैं। मौके का फायदा उठाकर बीजेपी फ्रंट पर बैटिंग कर रही है, वहीं अखिलेश खेमा बैकफुट पर है। आरोप−प्रत्यारोप के बीच बीते दिनों जब मीडिया को अखिलेश का विक्रमादित्य मार्ग का सरकारी बंगला दिखाया गया, तो अंदर तकरीबन हर जगह तोड़फोड़ मिली। कभी आलीशान महल की तरह दिखने वाला यह बंगला अंदर से तहस−नहस था। एसी, स्विच बोर्ड, बल्ब और वायरिंग तक गायब मिले। स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, स्विमिंग पूल और लॉन उजड़े हुए थे। सीढ़ियां तोड़ दी गई थीं। साइकल ट्रैक भी खोद दिया गया था। बंगले में पहली मंजिल पर (जहां अखिलेश रहते थे) वहां बने सफेद संगमरमर के मंदिर के अलावा कोई हिस्सा ऐसा नहीं है, जहां तोड़फोड़ न की गई हो। वहीं अब यह बात भी सामने आ रही है कि बंगले की साज−सज्जा के लिए राज्य संपत्ति विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा जो 42 करोड़ रुपये जारी किए गए थे, उनमें से 41.1 करोड़ रुपये का कोई हिसाब नहीं मिल रहा है। सूत्र बताते हैं कि अखिलेश के मुख्यमंत्री रहते उनके सरकारी बंगले की रखरखाव के लिए अलग−अलग मदों में दो बार कुल 42 करोड़ रुपये का बजट जारी किया गया था, लेकिन राज्य संपत्ति अधिकारी का कहना है कि विभाग के हिसाब में सामने आया है कि इस बंगले पर केवल 89.99 लाख रुपये ही खर्च हुए हैं। बाकी धनराशि कहां खर्च की गई, जांच करके इसका पता लगाया जा रहा है।
उधर, बंगले के विवाद पर चारों ओर से घिरे समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव पलटवार करते हुए बीजेपी पर निशाना साध रहे हैं। अखिलेश ने कहा कि उन्होंने बंगले में कोई तोड़−फोड़ नहीं कराई, न ही किसी तरह का नुकसान पहुंचाया है। पूर्व सीएम ने साथ ही राज्यपाल राम नाइक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि वह बंगले से वही चीजें निकालकर ले गए हैं जो उन्होंने खुद लगवाईं थीं। साथ ही कहा कि मीडिया में गलत तस्वीरें दिखाई गईं।
गौरतलब है कि जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों ने बंगले की चाबियां सौंपी हैं, उनमें से केवल अखिलेश यादव के बंगले में ही तोड़फोड़ मिली है। इसी वजह से उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर कहा था कि अखिलेश यादव द्वारा बंगला खाली करने से पहले हुई तोड़फोड़ के मामले में उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने लिखा कि 4 विक्रमादित्य मार्ग पर आवंटित आवास को खाली किए जाने से पहले उसमें की गई तोड़फोड़ का मामला मीडिया और जनमानस में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह एक अनुचित और गंभीर मामला है।
लब्बोलुआब यह है कि बंगाले के आरोपों में घिरे अखिलेश यादव के लिये इस मुद्दे पर आगे की राह आसान नहीं है। वह यह कहकर बच नहीं सकते हैं कि अगर आरोप सिद्ध हो गये, जिसकी उम्मीद काफी अधिक है तो अखिलेश को लेने के देने पड़ सकते हैं। उनके लिये सरकारी बंगला लज्जा बचाने का मामला बन गया है। ऐसा नहीं है कि पहले किसी मंत्री या अधिकारी पर इस तरह के आरोप नहीं लगे हों, लेकिन किसी पार्टी के मुखिया पर इस तरह के आरोप की इतनी बड़ी घटना कभी सामने नहीं आई है।