कश्मीर में रमजान के महीने में केंद्र सरकार द्वारा आतंकवादियों के विरूद्ध घोषित एकतरफा सीजफायर के विरोध में भी स्वर उठने लगे हैं। सेना ने इसके विरोध में स्वर मुखर किया है। सेनाधिकारियों के बकौल, यह घोषणा आतंकी गुटों में नई जान फूंकने जैसी होगी क्योंकि इसका फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब आतंकियों की कमर टूट चुकी है और वे भाग खड़े हुए हैं। इतना जरूर था कि इस फैसले की निंदा करने वाले वर्ष 2000 के सीजफायर का हवाला देते हुए कहते थे कि तब चार चरणों में बढ़ाए गए सीजफायर ने 1221 मौतें देखी थीं और उसके खत्म होने के करीब 7 महीनों तक कश्मीर कराहता रहा था क्योंकि अगले 7 महीनों में कश्मीर में 3110 लोगों का लहू बहा था।
रमजान के अवसर पर कश्मीर में पहली बार सीजफायर की घोषणा भी भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी। मकसद था कश्मीर में शांति लाने का और यह प्रयास औंधे मुंह गिरा था। वर्ष 2000 में इसे 28 नवम्बर को लागू किया गया था और लगातार चार चरणों में इसे बढ़ाते हुए इसे 31 मई 2001 को समाप्त कर दिया गया था। इसको खत्म करने का कारण भी आतंकी ही थे जिन्होंने न ही सुरक्षा बलों पर अपने हमलों को रोका था और न ही आम नागरिकों की हत्याएं रोकी थीं।
अगर आंकड़ों पर जाएं तो कश्मीर में वर्ष 2000 में रमजान के दौरान लागू हुए सीजफायर का पहला चरण सबसे भारी था। यह 28 नवम्बर से लेकर 27 दिसम्बर 2000 तक चला था जिसके दौरान 211 मौतें हुई थीं। दुखद पहलू पहले चरण के सीजफायर का यह था कि जिस आम कश्मीरी जनता को राहत पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने सीजफायर की घोषणा की थी उन्हीं को सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ा था। तब पहले चरण में 96 नागरिक मारे गए थे। जबकि सुरक्षा बलों तथा आतंकियों की मौत का आंकड़ा लगभग क्रमशः 56 और 59 के बराबर रहा था।
अगले चरणों में भी नागरिकों को कोई राहत नहीं मिली थी क्योंकि आतंकियों के निशाने पर सुरक्षा बलों के साथ साथ नागरिक रहे थे। यही कारण था कि दूसरे चरण में अगर 83 तो तीसरे व चौथे चरण में क्रमशः 97 व 72 नागरिक आतंकियों के हाथों मारे गए। इतना जरूर था कि सुरक्षा बलों ने आतंकी हमलों पर जवाबी कार्रवाई करते हुए वर्ष 2000 के सीजफायर के चार चरणों के दौरान कुल 293 आतंकियों को ढेर कर दिया था। इन कामयाबियों के लिए सुरक्षा बलों को 197 जवानों व अधिकारियों की शहादत देनी पड़ी थी और तकरीबन 348 नागरिक भी इन चार चरणों के दौरान मारे गए थे।
इसे सभी पक्षों ने स्वीकार किया था कि आतंकी गुटों ने वर्ष 2000 के रमजान सीजफायर के दौरान अपने आपको अच्छी तरह से मजबूत कर लिया था। यह मजबूती सीजफायर की समाप्ति के बाद के 7 महीनों के दौरान होने वाले हमलों और मौतों से स्पष्ट होती थी जब आतंकियों ने 1 जून से लेकर 31 दिसम्बर 2001 तक के 7 महीनों के अरसे में 627 नागरिकों को मार डाला था और 389 सुरक्षाकर्मी भी मारे गए थे। हालांकि सुरक्षा बलों ने भी फिर ताबड़तोड़ हमले कर इसी अवधि में 2094 आतंकियों को मार गिराया था।
सुरक्षा बलों ने वर्ष 2000 के सीजफायर से बहुत से सबक सीखे थे, पर राजनीतिज्ञों ने नहीं। यही कारण है कि राजनीतिज्ञों ने ऐसे समय में रमजान सीजफायर लागू करवाने में कामयाबी पाई है जबकि सेना के ऑपरेशन आल आउट ने आतंकियों की कमर को तोड़ दिया था। बचे खुचे आतंकियों को उनकी मांद से निकाल मारने का जो सिलसिला तेजी पकड़ चुका था अब उस पर ब्रेक लगा दिया गया है। यही कारण है कि सेना समेत अन्य सुरक्षा बलों के अधिकारियों ने इस सीजफायर का विरोध करना आरंभ किया है। वर्ष 2000 में भी उन्होंने चेताया था। अब भी उनकी चेतावनी को अनसुना कर दिया गया है जिसके बाद चिंता यह है कि इस अनसुने का खामियाजा कश्मीरी जनता और देश को ही भुगतना पड़ सकता है।