पेट्रोल और डीजल के अंतर्राष्ट्रीय दाम अभी भले ही 2013 के मुकाबले बेहद कम हों लेकिन भारत में यह पिछले सारे रिकार्ड तोड़ चुके हैं। महंगाई एवं भ्रष्टाचार कम करने के नाम पर सत्ता में काबिज हुई मोदी सरकार दोहरे मापदंड अपना कर जनता की गाढ़ी कमाई पर खूब चपत लगा रही है और जनता है कि बेचारी चाहकर कराह भी नहीं पा रही है। पेट्रोल का रिकार्ड दाम महाराष्ट्र के प्रभानी में सर्वाधिक 86.39 रूपए दर्ज किया गया जबकि डीजल महाराष्ट्र के ही अमरावती में रिकार्ड 73.75 रूपए दर्ज क्या गया है। दिल्ली में पेट्रोल के दाम 76.91 रूफए की ऊंचाई के साथ शतक की ओर अग्रसर है और इसी तर्ज पर डीजल भी 68.12 रूपए की तेजी के साथ पूरी गर्मजोशी में है लेकिन मोदी सरकार की बेहोशी टूटने का नाम नहीं ले रही है।
अचम्भे की बात यह है कि कर्नाटक चुनावों के दौरान सरकार के मौखिक निर्देश पर गत 24 अप्रैल से कर्नाटक विधानसभा चुनावों तक दाम स्थिर रखे गये थे और चुनावों के बाद से लगातार बढ़ रहे हैं और विशेषज्ञों का कहना है कि अभी पिछला मार्जिन पूरा करने के लिए 5 रूपए तक तेल के दाम और बढ़ सकते हैं। पेट्रोल और डीजल के दाम आधे हो सकते हैं यदि सरकार टैक्स की दर कम करे। दरअसल तेल के दाम जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कम हुए थे तो मोदी सरकार ने उपभोक्ताओं को इसका लाभ न देकर स्वयं इसका फायदा उठाने की ठानी थी और करीब 9 बार चुपके−चुपके तेल के गोदाम में केन्द्रीय कर लगा दिये और आज एक लीटर स्टैंडर्ड पेट्रोल पर 38.96 रूपए ब्रांडेड पेट्रोल पर 41.32 रूपए का टैक्स लगता है। इसी प्रकार स्टैंडर्ड डीजल पर प्रति लीटर 30.66 रूपए और ब्रांडेड पर 35.38 रूपए का केन्द्रीय कर लगता है जिसके कारण तेल में आग लगी हुई है लेकिन मोदी सरकार अपना खजाना केवल इसी के भरोसे भरने का लालसा पाले हुए है, जिसके कारण आम जनता त्राहि−त्राहि कर रही है लेकिन सरकार कानों में रूई डाले सिर्फ तमाशा देख रहा है।
पेट्रोल और डीजल से सरकार को हर माह लाखों−करोड़ों के वारे न्यारे हो रहे हैं तो फिर आम जनता की कौन सोचे। केन्द्र की मोदी सरकार को यदि आम जनता की चिंता होती तो वह अपने खर्चों में कटौती करती, मंत्रियों और अफसरशाही के मनमाने खर्चों पर कटौती करती लेकिन ऐसा कोई नहीं हो रहा है। मोदी सरकार के मंत्री टैक्स बढ़ोत्तरी के पीछे विकास योजनाओं के लिए धन जुटाने का हवाला देते हैं लेकिन इससे पहले भी सरकारें अपने विभिन्न स्त्रोतों से विकास योजनाओं के लिए धन जुटायी थी सिर्फ मोदी सरकार बनने के बाद रामराज नहीं आ गया है या भारत एकाएक विश्व का सबसे शक्तिशाली देश नहीं बन गया है। गांवों और शहरों के मध्यमवर्गीय समाज के जीवन में कोई ठोस बदलाव नहीं आया है और बेरोजगारी और काम−धंधों की हालत किसी से छिपी नहीं है।
पेट्रोल और डीजल को दाम पिछले सारे रिकार्ड तोड़ चुके हैं। पेट्रोल व डीजल की कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि से युवा वर्ग के साथ−साथ आमजन परेशान है। पेट्रोल, डीजल की इस बढ़ती महंगाई ने आम लोगों का जीवन त्रस्त कर रखा है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आज भी पैट्रोल और डीजल की कीमतें मोदी सरकार बनने से पहले यानि 2013 के मुकाबले 35 से 49 प्रतिशत कम हैं। एक समय तो ऐसा भी आया कि जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 65 प्रतिशत से अधिक गिर गई थीं लेकिन शायद ही भारतीय उपभोक्ताओं का इसका अहसास हुआ हो क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ज्यों−ज्यों पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम होती थी मोदी सरकार चुपके से इन पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा देती थी ताकि सारा मुनाफा तेल कम्पनियों और सरकारी खजाने में जाए। मोदी सरकार बनने के बाद करीब 9 बार केन्द्रीय एक्साइज डयूटी बढ़ाई गई है, जिसके कारण आज मुम्बई में पेट्रोल 82 रूपए से अधिक और डीजल 71 रूपए से अधिक के भाव में बिक रहा है और इसमें कोई हैरत नहीं होनी चाहिए कि आने वाले दिनों में यह 100 रूपए के भाव मिले।
दरअसल मोदी सरकार ने बड़ी चतुराई पहले पैट्रोल−डीजल पर एक्साइज डयूटी बढ़ाई और बाद में तेल के दाम प्रतिदिन तय करने का नियम बना दिया जिससे तेल की कीमतों में लगभग हर रोज इजाफा होता गया और आज हालत यह हो गई है कि आम आदमी पैट्रोल−डीजल के नाम पर खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। पेट्रोल−डीजल के दामों में पहले सरकार का नियंत्रण रहता था लेकिन 2010 से सरकार ने इसे नियंत्रण मुक्त करते हुए बाजार आधारित मूल्य पर बेचने का ऐलान किया था लेकिन वास्तविक नियंत्रण आज भी सरकार के पास है क्योंकि तीनों प्रमुख तेल उत्पादक कम्पनियां सरकारी हैं। सोमवार को नई दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 74.63 रुपए प्रति लीटर थी, जबकि डीजल 65.93 रुपए प्रति लीटर के स्तर पर था और यह रेट 27 अप्रैल से है। कहा जा रहा है कि कर्नाटक चुनावों के चलते सरकार ने दाम स्थिर रखने का मौखिक निर्देश दिया है। अब पेट्रोल और डीजल का अंतर घटकर 8.70 रुपए प्रति लीटर रह गया है जबकि दो वर्ष पहले यह अंतर 13.92 रुपए प्रति लीटर था। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इतना कम अंतर पहले कभी नहीं रहा है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि लोगों का झुकाव सिर्फ डीजल की गाड़ियों की तरफ ही न हो। एक दशक पहले पेट्रोल व डीजल की कीमतों में 20 रुपए का अंतर था। पहले सरकार डीजल पर अधिक सब्सिडी देती थी लेकिन अक्टूबर 2014 में सरकार ने डीजल को सरकारी नियंत्रण से बाहर कर कंपनियों को लागत आधार पर इसकी बाजार कीमत तय करने का अधिकार दे दिया है जिससे कीमत का अंतर तेजी से घट रहा है।
पेट्रोल कंपनियां अब रोजाना पेट्रोल−डीजल की कीमतों का निर्धारण करती हैं। 14 सितंबर 2013 को जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल 110 डालर प्रति बैरल था तब रेट 76.06 रुपये प्रतिलीटर हो गया था। अब जबकि क्रूड ऑयल करीब 80 डालर के आसपास है तब पेट्रोल की मुम्बई में कीमत 85 रूपए से अधिक हो गई है। डीजल का रेट 75 रुपये प्रति लीटर है जो अब तक की सबसे ज्यादा कीमत है। भारत में पेट्रोल और डीजल को दाम अपने पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, चीन, भूटान से भी अधिक हैं।
2013 के मुकाबले अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बहुत कम हैं लेकिन भारत में पेट्रोल−डीजल 2013 के भाव बिक रहा है। सितंबर 2013 में अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल की कीमत 109.45 डॉलर प्रति बैरल थी। तब पेट्रोल के दाम दिल्ली में 76.06 पैसे प्रति लीटर, कोलकाता में 83.63 पैसे प्रति लीटर, मुंबई में 83.62 पैसे हो गए थे और भारतीय जनता पार्टी ने देशभर में धरना−प्रदर्शन करके खूब पुतले फूंके थे और कई बार लोकसभा तथा राज्यसभा की कार्यवाही बाधित की थी। पेट्रोल और डीजल महंगे दामों पर बेचने और बजट में मध्यम वर्ग को कोई राहत न मिलने से आम जनता में मोदी सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। बजट की प्रतिक्रिया शेयर बाजार में अभी भी दिखाई दे रही है जिसमें शेयर कारोबार करने वालों के लाखों करोड़ रोज डूब रहे हैं और बजट के दिन घोषित राजस्थान के चुनाव परिणामों ने सरकार को आइना दिखाकर यह कहावत चरितार्थ की है कि थोथा चना बाजे घना। आम जनता विपक्षी पार्टियों के रवैये से भी नाराज है क्योंकि पूरा विपक्ष इसे मुद्दा बनाने में विफल रहा है। सरकार का दावा है कि पेट्रोल−डीजल के दाम पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है और यह सही है लेकिन पैट्रो उत्पादों पर टैक्स के नाम पर जो वसूली हो रही है, वह केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के नियंत्रण में है और तेल की घटी कीमतों का लाभ उपभोक्ताओं को न देकर सरकार उनसे छल कर रही है।