-रमेश ठाकुर- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेशनीति सबसे अलग और सबसे जुदा होती हैं। न ही खुलासा नहीं करते हैं और न चर्चा! मोदी की श्रीलंका यात्रा के वापसी के वक्त जब उनसे मीडिया ने सवाल किया कि श्रीलंका से क्या लेकर आए हो, तो उन्होंने जबाव दिया कि वहां के मजदूरों का अपार प्यार और स्नेह! उनके साथ चाय पर चर्चा करना अपने लिए अक्षणीय और यादगार बताया। श्रीलंका के चाय उत्पादक मध्य प्रांत में तमिल समुदायों की संख्या बहुतायत है। भारत के लिए वहां से चाय का आयात भारी मात्रा में होता है। मोदी ने इन लोगों के साथ चाय पीकर कई मसले सुलझाए। चाय से जुड़े तमिल सदस्यों से संपर्क साधते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘चाय से मेरा विशेष जुड़ाव है। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना तथा प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की मौजूदगी में हजारों की संख्या में एकत्र तमिलों को अपने संबोधन में नरेंद्र मोदी ने चाय पे चर्चा,का जिक्र करते हुए कहा कि यह केवल एक स्लोगन ही नहीं है बल्कि ईमानदार श्रम की गरिमा और ईमानदारी के सम्मान का प्रतीक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पड़ोसी देश श्रीलंका की यात्रा ऐसे वक्त की है जब चीन श्रीलंका में अपनी पैठ बढ़ाने की जुगत में है। ऐसे में दोनों देशों के बीच पारंपरिक संपर्क को दोबारा मजबूत करने से श्रीलंका से ज्यादा भारत को फायदा होगा। हालांकि मोदी की यात्रा को लेकर चीन की नजर गिद्व की तरह बनी रही। मोदी की यह यात्रा कई मायनों में फायदेमंद रही। चाहें तमिल की राजनीति में सेंध लगाना हो, चाय आयात क्षेत्र में नरमी हो, या फिर चीन की हेकड़ी को तोड़ना हो। दो दिनों का श्रीलंका दौरा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वापस भारत आ गए हैं। प्रधानमंत्री की पिछले दो साल में श्रीलंका की यह दूसरी यात्रा है। उनकी इस यात्रा को दोनों पड़ोसी देशों के मजबूत होते रिश्तों के मध्य प्रतीक के रूप में देखा गया है। श्रीलंका ने कोलंबो में पनडुब्बी खड़ा करने के चीन के आग्रह को ठुकरा दिया है। चीनी पनडुब्बी को खड़ा करने की इजाजत को लेकर 2014 में भारत ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था। सबसे बड़ी बात यह है कि श्रीलंका की ओर से इनकार किए जाने का यह कदम उस वक्त उठाया गया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के दौरे पर थे। भारत अपने इस पड़ोसी देश में बढ़ते चीनी प्रभाव को लेकर श्रीलंका को अपनी चिंताओं से अवगत कराता रहा है। मोदी की यह मौजूदा श्रीलंका यात्रा उनके साथ रिश्तों को बेहतर बनाने और कूटनीतिक लक्ष्यों को साधने के लिहाज से बहुत मायने रखती है। यात्रा से सबसे बड़ा फायदा एक और होगा! कूटनीतिक रुप से चीन की श्रीलंका में अपना पांव जमाने की कोशिशों को ब्रेक लगाने में अहम योगदान देगी उनकी यह यात्रा। तमिलनाडू की राजनीति श्रीलंका में रहने वाले बहुसंख्य तमिल लोगों से सीधा संबंध रखती है। उन्हें साधने का भी मोदी ने भरसक प्रयास किया। श्रीलंका सीलोन चाय का सबसे बड़ा उत्पादन क्षेत्र है। इस चाय की सराहना पूरे विश्व में की जाती है। इस विश्व प्रसिद्ध चाय का निर्यात तकरीबन सभी मुल्कों में होता है। सीलोन चाय को निर्मित करने में बहुत मेहनत लगती है। जब मजदूरों के साथ पीएम मोदी चाय पर चर्चा कर रहे थे तो उन्होंने कहा कि सीलोन चाय को उगाने में कितना पसीना बहाना पड़ता है और श्रम करना पड़ता है, उस बारे में बहुत कम जानकारी है। उनकी इस जानकारी से वहां के मजदूर भौचक्के रह गए कि इतनी गहरी जानकारी भला मोदी को कैसे है। इसके अलावा चाय बागानों व विभिन्न तरह की उत्पादन चाय के संबंध में बात कर मोदी ने वहां के मजदूरों को खुब प्रभावित किया। गौरतलब है कि श्रीलंका आज चाय का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। मोदी ने कहा कि यह सब यहां के मजदूरों की कठिन परिश्रम की वजह से है। आकंड़ों पर गौर करें तो श्रीलंका चाय के लिए विश्व की मांग की करीब 17 फीसदी जरूरत पूरी करता है और विदेशी मुद्रा में 1.5 अरब डालर से अधिक की राशि अर्जित करता है। भारतीय मूल के तमिलों की सराहना करते हुए मोदी ने कहा यहां के मजूदर श्रीलंका के फलते-फूलते चाय उद्योग की रीढ़ हैं जिसने अपनी सफलता और वैश्विक पहुंच से खुद को गौरवान्वित किया है। इस सच्चाई को नहीं झुठलाया जा सकता कि चाय बगान के कर्मियों की कड़ी मेहनत उनके योगदान को श्रीलंका और उसके बाहर बहुत मायने रखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चाय के साथ विशेष जुड़ाव से अब पूरा संसार वाकिफ हो चुका है। वह आज भी खुद को चाय वाले का बेटा कहलाना पसंद करते हैं। चाय उनके जीवन का अहम हिस्सा है। श्रीलंका के दौरे पर भी प्रधानमंत्री ने चाय बेचने के अपने दिनों का संदर्भ देते हुए वहां के लोगों से कहा कि आपमें और मुझमें कुछ समान है। आपने शायद सुना भी होगा कि चाय से मेरा विशेष जुड़ाव है। उन्होंने कहा कि हमें आपके पूर्वज याद हैं। मजबूत इच्छाशक्ति और साहस वाले पुरुषों और महिलाओं ने भारत से तत्कालीन सीलोन (श्रीलंका) तक का अपना सफर तय किया। भले ही उनकी यात्रा आसान नहीं रही और उनका कड़ा संघर्ष रहा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आज हम उनके हौसले को याद करते हैं और उसे सलाम करते हैं। दरअसल वर्तमान पीढ़ी ने भी कड़ी मेहनत की है। उसे अपनी और अपने देश की पहचान बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ा है। मोदी अपनी श्रीलंका यात्रा के दौरान जहां चीन की चालबाज कूटनीति के कदमांे को थामने के लिए श्रीलंका के शीर्ष नेतृत्व को संदेश देने की कोशिश करेंगे। कई मायनों में भारत के लिए उनकी यह यात्रा हितकर होगी। आने वाले समय में उसका असर भी दिखेगा।