मुस्लिम राष्ट्रीय मंच और तीन तलाक

asiakhabar.com | May 19, 2017 | 3:28 pm IST
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-शैलेन्द्र चौहान- फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों के पहले मुस्लिम राष्ट्रीय मंच नाम की एक संस्था ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में तीन तलाक़ पर मुस्लिम महिलाओं से संपर्क का बड़ा कार्यक्रम चलाया था। ये अभियान सहारनपुर के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दूसरे शहरों और हरिद्वार में भी चलाया गया। ध्यातव्य है कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, भारतीय जनता पार्टी के पैतृक संगठन, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ा है जिसकी शुरुआत, संस्था की वेबसाइट के अनुसार, दिसंबर 24, 2002 को राष्ट्रवादी मुसलमानों और आरएसएस के कुछ कार्यकर्ताओं के साथ की थी। आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार इसके संरक्षक हैं। पर संस्था के राष्ट्रीय सह संयोजक महीराजध्वज सिंह आरएसएस और मंच में संबंध की बात से इनकार करते हैं। 5 और 6 मई को रूड़की के पास कलियार शरीफ में हुए राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय अधिवेशन में तीन तलाक़ पर जनजागरण, मंच द्वारा अपनाए गए प्रस्तावों का अहम हिस्सा था। मंच ने ट्रिपल तलाक़ के ख़िलाफ वाराणसी से एक हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत की है जिन्हें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री कार्यालय, न्यायालय और विधि आयोग में भेजा जाएगा। महीराजध्वज सिंह के अनुसार हस्ताक्षर अभियान बिहार और दिल्ली में भी चलाया जाएगा और इस जून के दूसरे हफ्ते तक ख़त्म करने की योजना है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हाल में ही इसी तरह का एक हस्ताक्षर अभियान चलाया था जिसे लॉ कमिशन को सौंप दिया गया है। कलेर शरीफ में ट्रिपल तलाक़ के साथ-साथ राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच ने दो दूसरे प्रस्तावों को भी अपनाया थाः अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और गो रक्षा अधिवेशन में अपनाए गए अन्य प्रस्ताव थे। महीराजध्वज सिंह कहते हैं कि इस रमजान में ‘बीफ नहीं चलेगा, गाय का दूध बांटा जाएगा।’ ये तय किया गया है कि राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच के कार्यकर्ता रोजेदारों को गाय का दूध बांटेंगे। ‘पैगंबर हजरत मोहम्मद ने कहा था कि गाय का दूध शफा है, गाय का घी दवा है और गाय का गोश्त बीमारी है।’ ‘क़ुरान में गाय पर एक पूरी सूरा यानी अध्याय है और चूंकि गाया का जिक्र कुरान पाक में है इसलिए गाय पवित्र है और ये मुसलमानों को बताया जाना चाहिए।’ दरअसल में क़ानूनी पहलू और तलाक़ के तरीक़े की प्रासंगिकता पर बहस के साथ-साथ मामले का एक संदर्भ ये भी है कि कुछ लोग तीन तलाक़ मामले के जरिये ये दिखाना चाहते हैं कि मुस्लिम समाज पिछड़ा और दक़ियानूस है। कई ऐसी राजनीतिक और सामाजिक ताक़तें हैं जो मुसलमानों को नीचा दिखाना चाहती हैं, ये उनकी राजनीति का आधार है। अब अगर मुस्लिम विरोधी छवि वाले नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ मुसलमान महिलाओं के अधिकारों का झंडा उठा लें, योगी को ‘ट्रिपल तलाक़’ द्रौपदी के चीरहरण जैसा दिखे और मोदी मुस्लिम महिलाओं के हक़ों की रक्षा की जिम्मेदारी का वादा करने लगेंय तो इस पर सवाल खड़े होना लाजिमी है। योगी सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने तीन तलाक के मुद्दे पर विवादित बयान दे दिया। मौर्य का कहना है कि मुस्लिम पति अपनी पत्नियों को इसलिए तलाक देते है ताकि वे दूसरी बीवी लाकर अपनी हवस को पूरा कर सके। ये बयान मौर्य ने बस्ती जिले में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही। समझने की बात यह है कि ट्रिपल तलाक़ ही मुस्लिम औरतों की अकेली दिक्क़त नहीं है, शिक्षा, रोजगार, गरीबी-इन मुद्दों पर बीजेपी नेता क्यों नहीं बात करते? और अगर मोदी मुसलमान महिलाओं के इतने हिमायती हैं तो 2002 गुजरात दंगों में उनके साथ जो ज्यादतियां हुईं उन पर बीजेपी ने क्या किया? गुजरात और हरियाणा दोनों बीजेपी शासित हैं और गुजरात में तो पार्टी की सरकार लंबे वक्त तक रही. नरेंद्र मोदी लंबे वक्त तक सूबे के मुख्यमंत्री थे। मुसलमानों और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग के बीच ये ख्याल है कि तीन तलाक़ बीजेपी और हिंदुत्ववादी दलों के लिए राजनीति से अधिक कुछ नहीं। राजनीतिक विश्लेषक राधिका रमाशेषण के अनुसार ‘महिला अधिकारों पर बीजेपी का पूरा इतिहास सबके सामने रहा है।’ ‘बीजेपी की बड़ी नेता विजय राजे सिंधिया ने रूपकंवर के सती होने का समर्थन किया था। वर्तमान में गुजरात और हरियाणा जैसे सूबों में कन्या भ्रूण हत्या पर क्या स्थिति है इस पर बीजेपी नेता कभी कुछ क्यों नहीं बोलते?’ जब बीजेपी यूपी चुनाव में मुस्लिम महिलाओं के समर्थन की बात करती है तो स्पष्ट जाता है कि तीन तलाक़ का मुद्दा उठाने के पीछे उसकी मंशा क्या है। बीजेपी और हिंदुत्वादी विचारधारा वाले संगठन क्या ट्रिपल तलाक़ मामले को इसलिए भी ख़ूब उछाल रहे हैं कि उन्हें लगता है कि इस मामले पर कोई उनके ख़िलाफ नहीं बोलेगा, न महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाले और न ही उदारवादी विचारधारा रखनेवाला कोई दल या संगठन? मुस्लिम औरतों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने 5,000 महिलाओं के बीच एक सर्वे किया था जिसमें से 78 प्रतिशत औरतों ने ट्रिपल कि वो एकतरफा तलाक़ से पीड़ित हुई हैं। आंदोलन की सह-संस्थापक नूर जहां सफिया नियाज ये मानती हैं कि 5,000 का सर्वे साइज मुसलमानों की कुल तादाद के हिसाब से बहुत छोटा था लेकिन छोटी सी संस्था के पास बस इतना ही कर सकती है। वे कहती हैं, ‘आज जब मुस्लिम औरतें इतनी बड़ी तादाद में तीन तलाक़ के ख़िलाफ सामने आ रही हैं तो किसी ने दूसरी पॉलिटिकल पार्टी को रोका नहीं तो वो ख़ामोश क्यों हैं?’ मुस्लिम धर्मगुरु कहते हैं कि दरअसल, ऐसा नहीं है कि तलाक से पहले सुलह सफाई की कोशिशें नहीं की जातीं, की जाती हैं, लेकिन वह सामने नहीं आतीं। सामने आता है कि पति ने एक झटके में तलाक-तलाक-तलाक बोलकर पत्नी से पीछा छुड़ा है। खबर बनती है कि सब्जी में नमक तेज होने की वजह से पति ने पत्नी को तलाक दे दिया। सब्जी में नमक तेज होना भले तात्कालिक कारण हो, लेकिन उससे पहले जो तल्खियां दोनों के बीच होती हैं, उसे कैसे नजर अंदाज किया जा सकता है। जब कोई गैर मुस्लिम दंपति अदालत में तलाक लेने जाता है, जो क्या वह किसी एक क्षण में लिया जाना फैसला होता है? नहीं होता है। जब मतभेद चरम पर पहुंच जाते हैं, तभी दोनों अलग होने का फैसला करते हैं। यही बात तीन तलाक के संदर्भ में भी कही जा सकती है। यह बात समझ से परे है कि मुस्लिम इस मुद्दे पर इतनी हायतौबा मचा क्यों रहे हैं? क्यों न्यूज चैनलों की डिबेट में जा रहे हैं? क्यों प्रेस कॉन्फ्रेंस करके विरोध जता रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट और सरकार जो करना चाहते हैं, करने दीजिए ना। इस देश में कानून से कोई समस्या खत्म हुई है क्या? क्या दहेज का चलन बंद हो गया? क्या दहेज की खातिर बहुओं का मारना खत्म हो गया? क्या कन्या भ्रूण हत्या बंद हो गई? क्या बाल श्रम रुक गया? क्या देवदासी प्रथा पर रोक लग गई? बहरहाल, यू पी के बाद आरएएस और भाजपा अब इस मुद्दे के सहारे अब 2019 के चुनाव के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण करना चाहते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उलेमा संघ के जाल में फंसकर ट्रिपल तलाक को जीने मरने का प्रश्न बना रहे हैं। मुस्लिम इस मुद्दे पर जितना मुखर होंगे, उतना ही संघ परिवार का एजेंडा पूरा होता जाएगा।


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