कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कीर्ति चारों दिशाओं में फैल चुकी है। दक्षिण के प्रवेश द्वार माने जाने वाले कर्नाटक चुनाव परिणामों के बाद पर देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक टीवी साक्षात्कार में मोदी को एक ऐसा राजनेता बताया जिनकी साख व स्वीकार्यता पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक एक समान है। मोदी की लोकप्रियता का परिणाम है कि हिंदी भाषी पार्टी की पहचान रखने वाली भाजपा ने आज देश के हर क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाई है।
कर्नाटक चुनाव के नतीजों ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने समकालीन राजनीतिज्ञों में एक अजेय योद्धा के रूप में स्थापित कर दिया है। किसी समय देश में पंचायतों से लेकर पार्लियामेंट तक में एक छत्र राज करने वाली अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को मात्र पंजाब, मिजोरम व पुडुचेरी तक सीमित कर देना एक चमत्कार से कम नहीं है। यह चमत्कार प्रधानमंत्री मोदी की करिश्माई छवि के बलबूते ही संभव हुआ है।
देश को कांग्रेस मुक्त करने और भाजपा के विजय रथ को निर्विघ्न आगे बढ़ाने में प्रधानमंत्री मोदी के जादुई व्यक्तित्व के साथ पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की कुशल संगठनकर्ता और प्रबंधकीय क्षमता का कम योगदान नहीं है। मोदी व शाह दो ऐसे योद्धा हैं जो सरकार और संगठन के अलग-अलग मोर्चों पर तैनात हैं। अलग-अलग मोर्चों पर होने के बावजूद दोनों एक रथ पर कुशल संतुलन व तालमेल के साथ सवार होकर कठोर मेहनत, थका देने वाली यात्रा एवं व्यापक जनसंवाद के बल पर विजयश्री को वरण करने की हद तक पहुंचते हैं।
वृद्धावस्था की दहलीज पार कर जीर्ण-शीर्ण स्थिति में पहुंच चुकी कांग्रेस के साम्राज्य को 38 वर्षीय भाजपा ने छिन्न-भिन्न किया तो इसके लिए कांग्रेस पार्टी खुद पूरी तरह से जिम्मेदार है। इतने वर्षों तक देश में राज करने वाली कांग्रेस ने सत्ता को केवल भोगने, ऐशो-आराम और राज करने का साधन माना।
स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र स्थापित होने पर भी कांग्रेस देश को राजशाही की तरह चलाती रही है। राजनीति को परिवारवाद तक सीमित कर दिया। अशिक्षा, गरीबी व पिछड़ापन केवल लोक लुभावन नारों में जिंदा रखा। मुस्लिम तुष्टिकरण और दलित वर्ग को गुमराह कर उन्हें अपने वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया। अपने स्वार्थों के खातिर कांग्रेस विभिन्न वर्गों को आपस में लड़ाती रही। कांग्रेस ने आमजन की समस्याओं से मुंह मोड़े रखा। स्थिति यहाँ तक पहुंची कि कांग्रेस व भ्रष्टाचार एक दूसरे के पर्याय बन गए।
आखिर एक समय कांग्रेस के पाप का घड़ा पूरी तरह से फूटना ही था। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में यह समय आया। भाजपा ने कांग्रेस को नेस्तनाबूत करते हुए मात्र 44 सांसदों वाली पार्टी बनाकर रख दिया। केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार का गठन होने पर देश की राजनीति की तस्वीर बदल गई। प्रधानमंत्री मोदी ने सरकार और राजनीति के नए अर्थ गढ़े। सरकार का अर्थ केवल सत्ता अर्जित करने तक नहीं रहा। मोदी ने ”सबका साथ-सबका विकास” को ध्येय वाक्य बनाते हुए कार्य किया।
समाज के सभी वर्गों, दलितों, पिछड़ों, महिलाओं व गरीबों को केंद्र में रखकर कल्याणकारी योजनाएं संचालित कीं। जीएसटी, नोटबंदी, तीन तलाक जैसे मुद्दों पर ऐतिहासिक फैसला लिया। घरेलू मोर्चे के साथ विदेश नीति में दमखम दिखाया और भारत को विश्व मंच पर एक अलग पहचान दिलाई।
यही कारण रहा कि देश की जनता ने भाजपा को हाथों-हाथ लिया। भाजपा के नाम विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनने का रिकॉर्ड दर्ज़ हुआ। वर्ष 2014 में जब भाजपा ने लोकसभा में विजय प्राप्त कर केंद्र में सरकार बनाई थी, तब पांच राज्यों गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व नागालैंड में भाजपा सरकारें थीं।
आज देश के 21 राज्यों में भाजपा और उसके गठबंधन की सरकारें हैं। पूर्वोत्तर भारत में मिजोरम छोड़कर बाकी सभी राज्यों में भाजपा सत्ता में काबिज है। त्रिपुरा में 25 साल पुराने वामपंथी शासन को ध्वस्त करना और कांग्रेस को शून्य पर पहुंचाना एक अभूतपूर्व घटना है। भाजपा ने असम में एक दशक पुराने कांग्रेस राज का खात्मा किया। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में 403 विधानसभा सीटों में से 325 सीटों पर कब्जा कर भाजपा ने एक नया इतिहास लिखा। वहीं उत्तराखंड में 70 में से 57 सीटों पर विजय प्राप्त कर रिकॉर्ड कायम किया।
यह घोर आश्चर्यजनक व दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतनी बुरी गति को प्राप्त करने के बावजूद कांग्रेस पार्टी कोई सबक लेने को तैयार नहीं दिखती है। कांग्रेस अपनी विघटनकारी और समाज को बांटने की नीति को नहीं छोड़ पा रही है। गुजरात विधानसभा चुनाव में दलित वर्ग व गैर दलितों के बीच कांग्रेस ने जमकर वैमनस्यता फैलाने का दुष्प्रयास किया। मगर जनता ने गुजरात विधानसभा चुनाव में उसे मुंहतोड़ जवाब दे दिया। इसी तरह कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पूर्व वहां के लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जे की पैरवी कर कांग्रेस ने एक नापाक चाल चली। मगर इसमें भी कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। यहाँ यह तथ्य उल्लेखनीय है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कई भाजपा प्रत्याशी जीत हासिल करने में सफल रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि मुस्लिमों का भी भाजपा व नरेंद्र मोदी पर विश्वास बढ़ा है। तीन तलाक के मुद्दे पर भाजपा को घेरने वालों के लिए यह एक करारा जवाब है।
बहरहाल कांग्रेस की पराजय का यह सिलसिला मात्र कांग्रेस या राहुल गांधी की हार तक सीमित नहीं है। यह बुद्धिजीवियों की खाल ओढ़े उन तमाम वामपंथियों, छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों और मीडिया के उस वर्ग के मुंह पर करारा तमाचा है, जो बात-बेबात पर प्रधानमंत्री मोदी व उनकी सरकार की आलोचना करना अपना धर्म समझते हैं।