संविधान से सबसे ज्यादा छेड़छाड़ करने वाले आज संविधान बचाओ अभियान चला रहे

asiakhabar.com | April 28, 2018 | 3:35 pm IST
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस सप्ताह संविधान बचाओ अभियान की शुरूआत करते हुये कहा कि भाजपा व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोग देश के संविधान और उससे जुड़ी संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वह ऐसा नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि संविधान के साथ छेड़छाड़ तो दूर हम उन्हें इसे छूने भी नहीं देंगे। गांधी ने कहा कि गत 70 वर्षों में देश ने जो इज्जत बनाई थी उस पर मौजूदा सरकार की वजह से आघात पहुंचा है।

गांधी के संविधान बचाओ अभियान पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने तंज कसते हुये कहा है कि यह कांग्रेस का संविधान बचाओ अभियान है या परिवार बचाओ आंदोलन। उन्होंने कहा कि यह हास्यापद है कि जिस पार्टी ने कई बार न्यायपालिका, सेना, निर्वाचन आयोग, सीएजी एवं सांसद जैसी संस्थाओं को कमजोर किया है वो आज प्रजातंत्र के खतरे में होने की दुहाई दे रही है। सूत्रों का कहना है कि अब तक देश के संविधान में 101 बार संशोधन किये जा चुके हैं और उसमें सर्वाधिक संशोधन कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल में ही किये गये हैं। संविधान पर सर्वाधिक प्रहार तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने किये थे। सन् 1975 में 37वें संविधान संशोधन के जरिये जब देश में आपातकाल लागू कर दिया गया तो संविधान का प्रमुख अंग न्यायपालिका भी अछूती नहीं रह सकी। 38वां सविधान संशोधन 22 जुलाई 1975 को पास हुआ था। उसके द्वारा न्यायपालिका से आपातकाल की न्यायिक समीक्षा करने का अधिकार छीन लिया गया। इसके लगभग दो महीने बाद ही संविधान का 39वां संशोधन लाया गया। यह संविधान संशोधन इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री पद को बनाए रखने के लिए किया गया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर चुका था। लेकिन इस संशोधन ने न्यायपालिका से प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त व्यक्ति के चुनाव की जांच करने का अधिकार ही छीन लिया। इस संशोधन के अनुसार प्रधानमंत्री के चुनाव की जांच सिर्फ संसद द्वारा गठित की गई समिति ही कर सकती थी। आपातकाल को समय की जरूरत बताते हुए इंदिरा गांधी ने उस दौर में लगातार कई संविधान संशोधन किये। 40वें और 41वें संशोधन के जरिये संविधान के कई प्रावधानों को बदलने के बाद 42वां संशोधन पास किया गया। इसी संशोधन के कारण संविधान को कंस्टीट्यूशन ऑफ इंदिरा कहा जाने लगा। इसके जरिये भारतीय संविधान की प्रस्तावना तक में बदलाव कर दिए गए थे।
42वें संशोधन के सबसे विवादास्पद प्रावधानों में से एक था- मौलिक अधिकारों की तुलना में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को वरीयता देना। इस प्रावधान के कारण किसी भी व्यक्ति को उसके मौलिक अधिकारों तक से वंचित किया जा सकता था। इसके साथ ही इस संशोधन ने न्यायपालिका को पूरी तरह से बौना कर दिया था। वहीँ विधायिका को अपार शक्तियां दे दी गई थीं। अब केंद्र सरकार को यह भी शक्ति थी कि वह किसी भी राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर कभी भी सैन्य या पुलिस बल भेज सकती थी साथ ही राज्यों के कई अधिकारों को केंद्र के अधिकार क्षेत्र में डाल दिया गया।
42वें संशोधन का एक और कुख्यात प्रावधान संविधान में संशोधन के सम्बंध में भी था। हालांकि आपातकाल से कुछ साल पहले सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती मामले में ऐतिहासिक फैसला देते हुए संविधान में संशोधन करने के पैमाने तय कर दिए थे। लेकिन 42वें संशोधन ने इन पैमानों को भी दरकिनार कर दिया। इस संशोधन के बाद विधायिका द्वारा किए गए संविधान-संशोधनों को किसी भी आधार पर न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। साथ ही सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता को भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। किसी विवाद की स्थिति में उनकी सदस्यता पर फैसला लेने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति को दे दिया गया और संसद का कार्यकाल भी पांच वर्ष से बढ़ाकर छह वर्ष कर दिया गया।
इन्दिरा गांधी द्वारा संविधान से छेड़छाड़ का नतीजा यह निकला कि 1977 में वह सत्ता से हटा दी गईं और जनता पार्टी ने सत्ता में आने के बाद किये गये संविधान संशोधन में प्रमुख रूप से नागरिकों के अधिकार बहाल किये व मीडिया को भी आजादी मिली। आपातकाल के विपरीत परिणामों को भुगतने के बाद भी कांग्रेस नहीं चेती और जब भी मौका मिला संविधान अथवा संवैधानिक संस्थाओं पर हमले करने में कोई चूक नहीं की। खासकर संप्रग-दो के कार्यकाल में सीएजी द्वारा अनेक घोटालों का पर्दाफाश करने पर उसे भी नहीं बख्शा गया। तत्कालीन कैग प्रमुख विनोद राय पर संप्रग सरकार को खत्म करने तक के आरोप लगाये गये। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने तो यहां तक कह डाला कि विनोद राय प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं।
भाजपा नीत राजग के सत्ता में आने पर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने निर्वाचन आयोग को भी नहीं बख्शा। बार-बार आरोप लगाये कि सब कुछ ईवीएम मशीनों के जरिये हुआ। उसके बाद जब भाजपा की एक के बाद एक राज्यों में सरकार बनती रही तो कांग्रेसी मानो नंगई पर आ गये। आरोप मढ़़ डाला कि चुनाव आयोग व भाजपा में मिली भगत है तभी तो भाजपा एक के बाद एक चुनाव जीतती जा रही है। आप के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने तो चुनाव आयोग को धृतराष्ट्र की संज्ञा दे डाली।
ईवीएम मशीनों में बार-बार छेड़छाड़ के आरोप लगने से व्यथिथ आयोग ने कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को चुनौती दी थी कि कोई भी दल आयोग में आकर ईवीएम में छेड़छाड़ करके दिखाये। गौरतलब है कि आयोग की इस चुनौती को किसी दल ने कबूल नहीं किया। अनावश्यक आरोपों से आहत होकर ही आयेाग ने सरकार से उस पर झूठे आरोप लगाने वालों के विरूद्ध अवमानना के नोटिस जारी करने की कार्यवाही करने के अधिकार देने की मांग भी कर डाली।
कांग्रेसी ने देश की सेना तक को नहीं छोड़ा। जून 2017 में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के सुपुत्र संदीप दीक्षित ने तो थल सेना अध्यक्ष जनरल विपिन रावत की तुलना सड़क के गुंडे से कर डाली। यही नहीं उनसे भी एक हाथ आगे बढ़कर दिसम्बर 2017 में जम्मू कश्मीर के प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रचार सचिव सलमान निजामी ने भारतीय सेना के बलात्कारी कह डाला था और तो और पाकिस्तानी सीमा के भीतर भारतीय सेना द्वारा की गई सफल सर्जिकल स्ट्राइक पर भी कांग्रेस ने प्रमाण मांग कर भारतीय सेना के शौर्य पर उंगुली उठाने में भी हिचक महसूस नहीं की।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दरअसल कांग्रेस व उसके रणनीतिकारों को संविधान बचाने के बहाने देश के 17 फीसदी दलितों की वोटों के चिंता खाये जा रही है। कांग्रेस को अच्छी तरह पता है जब तक उसे देश के दलित मतदातओं का समर्थन नहीं मिलेगा तब तक उसकी सत्ता में वापसी आसान नहीं है। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि जिस तरह कांग्रेस अध्यक्ष व उनके रणनीतिकार अपने कारनामों से हंसी का पात्र बन रहे हैं उससे कांग्रेस की छवि सुधारने की बजाय गिरती ही जा रही है। यदि कहीं कर्नाटक भी कांग्रेस के हाथ से निकल गया तो फिर कांग्रेस की 2019 में सत्ता वापसी सिर्फ मुंगेरी लाल के हसीन सपनों से ज्यादा कुछ नहीं रह जायेगी।

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