स्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में भारत ने इतिहास रच दिया। कुल 66 पदकों (26 स्वर्ण, 20 रजत और 20 कांस्य) के साथ भारत का विदेशी धरती में सबसे बढ़िया प्रदर्शन है। इससे पहले भारत ने 2010 में सबसे ज्यादा 38 स्वर्ण पदक जबकि 2002 में ग्लासगो (मैनचेस्टर) में 30 सोने का पदक हासिल किया था। नि:संदेह हाल के वर्षो में भारत ने खेल की दुनिया में अपनी दावेदारी मजबूती के साथ रखी है। खास तौर पर बैडमिंटन, कुश्ती, भारोत्तोलन, निशानेबाजी, मुक्केबाजी, तीरंदाजी और एथलेक्टिक्स में भारतीय टीम ने अद्भुत खेल का प्रदर्शन किया है। वैसे गोल्ड कोस्ट में भारतीय खेमे ने टेबल टेनिस, जेवलिन रो और निशानेबाजी की कुछ स्पर्धा में प्रतिभावान खिलाड़ियों से देश और दुनिया का परिचय कराया है। यह देखकर अच्छा लगा कि भारत के पास कुछ खेल स्पर्धाओं में बेहतरीन और विश्वस्तरीय खिलाड़ी हैं। जरूरत है बस इनके हौसले को पंख देने की। सरकार भी खेल को लेकर ज्यादा फोकस करे। हालांकि देश में खेल का माहौल बदला है तभी ऐसे सुखद नतीजे आने लगे हैं। मगर अभी हमें मीलों आगे का सफर तय करना है। राष्ट्रमंडल खेल में सफलता गौरवान्वित तो करती है, किंतु यह लय ओलंपिक और एशियाई खेल में भी बरकरार रहनी जरूरी है। और यह तभी हो पाएगा जब खेल को लेकर न केवल सरकार बल्कि खेल संस्थानों और अभिभावकों का भी दृष्टिकोण उदार हो। संतोष और खुशी की बात यह है कि 71 देशों में हमारा स्थान तीसरा है। हां कई खेल स्पर्धाओं में थोड़े-बहुत अंतर से हम सोना झटकने में विफल रहे। उस ओर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। तकनीक और खेल को लेकर सकारात्मक रुख ने नियंतण्र मंच पर भारत की अहमियत को बढ़ाया है। जरूरत है और एकाग्रचित्त और पेशेवर होने की। ग्रास रूट लेवल यानी छोटे बच्चों का चयन कर उन्हें बेहतर तालीम देने से फर्क पड़ना तय है। सुखद है कि परिदृश्य में तब्दीली आई है। अगला ओलंपिक 2020 में जापान में और राष्ट्रमंडल खेल 2022 में बर्मिंंघम में होगा। सो, तैयारियों के लिए वक्त बहुत ज्यादा नहीं बचा है। अभी से ही रण के लिए निरंतर अभ्यास में जुट जाना होगा। कुल मिलाकर उज्ज्वल भविष्य की तस्वीर दिखा गया गोल्ड कोस्ट।