द्यपि एक अप्रैल से देश के निर्यातकों को नये वित्तीय वर्ष 2018-19 के तहत विभिन्न रियायतें और प्रोत्साहन शुरू किए गए हैं, लेकिन भारतीय निर्यातक संगठनों के महासंघ (फियो) का कहना है कि सरकार के द्वारा निर्यातकों को दी जा रही रियायतें नियंतण्र निर्यात की बढ़ती हुई चुनौतियों का सामना करने के मद्देनजर कम हैं। ऐसे में सरकार को निर्यात प्रोत्साहन के लिए और अधिक कारगर कदम उठाने होंगे। चूंकि एक ओर पिछले वित्तीय वर्ष 2017-18 में देश से निर्यात में कमी आई है, और पिछले वर्ष भारत के निर्यात 300 अरब डॉलर के निर्धारित लक्ष्य तक भी नहीं पहुंच सके हैं। वहीं, दूसरी ओर विगत 15 मार्च को अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत के द्वारा दी जा रही निर्यात सब्सिडी को रोकने हेतु आवेदन किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में भारत कमजोर पड़ सकता है, और अगले 9 माह में भारत को निर्यात सब्सिडी खत्म करना पड़ सकती है। यह भी निर्यात परिदृश्य पर एक बड़ी चिंता है। गौरतलब है कि देश से निर्यात बढ़ाने हेतु वर्ष 2018-19 के तहत सरकार ने श्रम आधारित रोजगारपरक वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात हेतु एक अप्रैल से प्रोत्साहन और रियायतें लागू कर दी हैं। खासतर से चमड़ा, हस्तशिल्प, कालीन, खेल के सामान, कृषि, समुद्री उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक पुजरे और कपड़ा सहित अन्य क्षेत्रों के लिए विशेष रियायतें दी गई हैं। वित्त वर्ष 2018-19 के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कपड़ा उद्योग के लिए विशेष प्रोत्साहन दिए हैं। नये वित्तीय वर्ष में निर्यात बढ़ाने के लिए परिधान क्षेत्र का विशेष पैकेज 19 फीसदी बढ़ाकर 71.48 अरब रुपये दिखाई दे रहा है। नये बाजारों और नये उत्पादों की संभावनाएं तलाशने और परंपरागत बाजारों तथा उत्पादों के निर्यात में भारत का हिस्सा बढ़ाने के लिए नई रणनीति भी दिखाई दे रही है। सरकार ने नई कृषि निर्यात नीति के तहत कृषि निर्यात मौजूदा 30 अरब डॉलर से बढ़ाकर 2022 तक 60 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंचाने और भारत को कृषि निर्यात से संबंधित दुनिया के 10 प्रमुख देशों में शामिल कराने का चुनौतीपूर्ण लक्ष्य रखा है। कहा गया है कि सरकार का प्रयास होगा कि नई कृषि निर्यात नीति से ज्यादा मूल्य और मूल्यवर्धित कृषि निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके। निर्यात किए जाने वाले कृषि जिंसों के उत्पादन और घरेलू दाम में उतार-चढ़ाव पर लगाम लगाने के लिए कम अवधि के लक्ष्यों तथा किसानों को मूल्य समर्थन मुहैया कराने और घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने की बात की गई है। साथ ही कृषि निर्यात की मसौदा नीति में राज्यों की कृषि निर्यात में ज्यादा भागीदारी, बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक्स में सुधार और नये कृषि उत्पादों के विकास में शोध एवं विकास गतिविधियों को प्रोत्साहन पर जोर दिया गया है। भारतीय निर्यातक संगठनों के महासंघ का कहना है कि यद्यपि नये बजट 2018-19 के प्रावधान एक अप्रैल से लागू हो गए हैं, लेकिन छोटे निर्यातकों को सबसे ज्यादा परेशानी अनुभव हो रही है। पैसों की कमी के चलते वे नये ऑर्डर नहीं ले रहे हैं। जीएसटी आने के बाद नकदी के प्रवाह की समस्या बढ़ गई है, जिससे निर्यातकों को नये ऑर्डर रद्द करने पड़ रहे हैं। लघु, छोटे और मझले उद्योगों पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है। धन की समस्या के कारण इन उद्योगों को अपना कार्यबल भी कम करना पड़ा है। जीएसटी से पहले निर्यातकों को शुल्क में छूट मिलती थी लेकिन अब उन्हें पहले टैक्स चुकाना पड़ता है। जीएसटी लागू होने के बाद से कारोबारियों और उद्योगों को इनपुट क्रेडिट के रूप में टैक्स रिफंड में दिक्कतें आ रही हैं। इससे 80 फीसदी निर्यातकों का रिफंड अटका हुआ है। इसलिए जल्द ई-वॉलेट जल्द से जल्द लाया जाना चाहिए जिससे कारबारियों को सीधे भुगतान किया जा सकेगा। निश्चित रूप से 2018-19 के बजट और निर्यात बढ़ाने हेतु विदेश व्यापार नीति की मध्यावधि समीक्षा से निर्यात परिदृश्य पर दिखाई दे रही मुश्किलों के परिप्रेक्ष्य में निर्यातक अधिक प्रोत्साहनों की उम्मीद संजोए हुए थे। लेकिन ये आशाएं पूरी नहीं हुई हैं। फियो का कहना है कि भारत के मुकाबले कई छोटे-छोटे देश मसलन बांग्लादेश, वियतनाम, थाईलैंड आदि ने अपने निर्यातकों को सुविधाओं का ढेर देकर भारतीय निर्यातकों के सामने कड़ी प्रतिस्पर्धा खड़ी कर दी है। ऐसे में निर्यात को प्राथमिकता वाले क्षेत्र में शामिल किया जाना चाहिए। निर्यात पर ब्याज सब्सिडी भी मिले। निर्यात परिदृश्य सुधारने के लिए कम से कम कुछ ऐसे देशें के बाजार भी जोड़े जाने होंगे जहां गिरावट अधिक नहीं है। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के कई पड़ोसी देशों नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान को भारतीय निर्यात बढ़ने की संभावनाएं हैं। ब्राजील, रूस, चीन और द. अफ्रीका में भी निर्यात बढ़ने की संभावनाएं हैं। इसी तरह म्यांमार और मलयेशिया सहित आसियान देशों को भी निर्यात बढ़ सकते हैं। कई विकसित देशों में भी भारत के निर्यात बढ़ने की संभावना दिख रही है। अब निर्यात बढ़ाने के लिए कई और जरूरतों पर ध्यान दिया जाना होगा। निर्यातकों के हित मेंमानकों में बदलाव किया जाए जिससे महत्वपूर्ण कार्यशील पूंजी पर असर न पड़े। सरकार के द्वारा अन्य देशों की गैर-शुल्कीय बाधाएं, मुद्रा का उतार-चढ़ाव, सीमा शुल्क अधिकारियों से निपटने में मुश्किल और सेवा कर जैसे निर्यात को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाना होगा। 2018-19 में सरकार ने निर्यातकों के लिए ब्याज एकरूपता योजना के तहत आवंटन 1,000 करोड़ से बढ़ाकर 2,500 कर दिया है। इस योजना के तहत सरकार फिलहाल सभी सूक्ष्म, लघु एवं मझौले उपक्रमों (एमएसएमई) और श्रम आधारित निर्यात क्षेत्रों को तीन प्रतिशत की ब्याज सब्सिडी उपलब्ध कराई जानी है। लेकिन निर्यातकों का कहना है कि ब्याज सब्सिडी को तीन से बढ़ाकर पांच प्रतिशत किया जाना जरूरी है। ऐसे में आशा करें कि सरकार ने निर्यात को बढ़ाने के लिए जो कदम उठाए हैं, उन्हें और अधिक प्रोत्साहनों के साथ आगे बढ़ाया जाएगा। इन सब प्रभावी प्रयासों से देश के निर्यात में वृद्धि हो सकेगी और बढ़ता हुआ व्यापार घाटा कम किया जा सकेगा।