आजकल अधिकांश बच्चों व नौजवानों की ज़िंदगी से गुड़ का स्वाद गायब है मगर गुड़ का मीठा मौसम हर बरस आता है और सेहतयुक्त स्वाद बरकरार रखता है। गुड़ बनाने वाले गन्नों के खेतों के आसपास धूनी जमाकर गुड़ बनाते हैं, गुड़ खाने के शौकीन गरम गरम गुड़ खाते हैं, पड़ोस में लगे गन्ने चूसते हैं और कुदरती मिठास जीवन व शरीर में भर लेते हैं। शहरी बच्चों को तो अब गन्ने भी कहां नसीब, मिल भी जाएं तो खाने से डरेंगे उनके दांत जो इतने सुकोमल हैं, हालांकि गन्ने खाने से दांत मज़बूत होते हैं।
गन्नों को गुड़ में बदलने वाले बताते हैं कि लगभग आधा घंटे में 25 से 30 किलो गुड़ बन जाता है। आग की भट्टियों पर चार कड़ाहे रखे जाते हैं। पहले वाले में गन्ने का रस डालकर उबालते हैं। उबलते हुए रस में से मैल निकालते रहते हैं। रस पूरा निकल जाए इसके लिए मैल के साथ निकले रस को पोटलियों में टांग देते हैं ताकि रस पूरा निकल आए। साफ हुए रस को अगली कड़ाही में पहुंचाते रहते हैं जहां वह और साफ होता रहता है तीसरी कड़ाही में और अधिक साफ होते गाढ़ा होने लगता है। चौथी कड़ाही में पहुंच कर रस का रूप बदल चुका होता है और स्वादिष्ट गन्ध वाले पेस्ट के रूप में दिखता है। गुड़ बनाने वाले इस रसीले पेस्ट को सीमेंटिड जगह पर फैलाते हैं, ठंडा होते होते लकड़ी के पलटे से घुमाते रहते हैं। हल्का सा जमने लगे तो लकड़ी की खुरपियों से उठाकर पानी लगे हाथों से गोल छोटी या कपड़े में लपेट कर बड़ी पाथियां बना लेते हैं। एक दिन में दस बारह कुंतल गुड़ बना देने वाले माहिर बताते हैं कि गुड़ में खूबसूरती लाने के लिए मीठा सोडा डाला जाता है। खाने वाले शौकीन लोग नारियल, बादाम, काजू, सौंफ छोटी इलायची या अन्य मेवे डलवाते हैं।
बुज़ुर्ग सही कहते हैं कि खाना खाने के बाद गुड़ के टुकड़े को मुंह में डालकर टाफी की तरह घुमा घुमा कर खाने से हमारी फूडपाईप में लगे खाने के रेशे साफ हो जाते हैं। पेट में पहुंचकर यही गुड़ खाना पचाने में सहायक बनता है। रात को भिगोए काले चने या कच्चे चने गुड़ के साथ यूंही खाएं तो हॉर्स पावर्स जैसी ताकत हासिल की जा सकती है। गुड़ को भुनी हुई गेहूं के साथ मिलाकर लड्डू बनाकर या चलाई के लड्डू, गजक, रेवड़ी या अन्य कई स्वादिष्ट चीज़ें बनाकर खाई जाती हैं। सर्दी के मौसम में गुड़ की चाय सेहत के लिए काफी मुफीद समझी जाती है। बिस्किट, सब्ज़ियों, चटनियों व डिशेज़ में गुड़ का प्रयोग उन्हें खासियत प्रदान करता है। गुड़ आयरन व ग्लूकोज़ युक्त होता है। गन्ने की बात भी कर ली जाए कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, वसा व जल से युक्त गन्ने में विटामिन ए सक्रांमक रोगों से रक्षा व विटामिन बी पाचन शक्ति मज़बूत करते हुए भूख व स्फूर्ति बढ़ाता है। गन्ने के रस से दिमाग़ की कार्य क्षमता, स्मरण शक्ति बढ़ती है। पीलिया, खांसी में मूली के रस के साथ, कब्ज़ व गैस में लाभकारी है। माना जाता है गन्ने के रस के नियमित सेवन से पथरी छोटे छोटे टुकड़े हो मूत्र के माध्यम से बह जाती है। ताज़े धनिया के हरे पत्ते, पुदीना व नींबू का रस गन्ने के रस में मिलाकर पीना सबसे लाभकारी बताया जाता है। गन्ने के रस का सेवन मोटे व्यक्तियों, दमा व सांस की बीमारियों से पीड़ितों को कम मात्रा में मेडिकल परामर्श से करना चाहिए। रस के अधिक सेवन से दस्त लग सकते हैं। रस हमेशा स्वच्छ व ताज़ा गन्ने का ही प्रयोग करना चाहिए। बदलते ज़माने के साथ गुड़ को भी हमने गुड गोबर कर दिया है। इसमें अब पहले जैसी बात कहां। दिलचस्प यह है कि अब तो गुड़ की मिठास बदलने व बढ़ाने के लिए इसमें चीनी भी मिला दी जाती है।
गन्ने चूसने व गरम गरम गुड़ चखने का लुत्फ सचमुच निराला है, आपके पड़ोस में गर्म गुड़ तो संभवतः न मिले गन्ने का रस तो पिया ही जा सकता है।