ऐसा नहीं है कि एजुकेशन पर फ़िल्में पहले नहीं बनीं हैं! ‘चॉक एंड डस्टर’, ‘तारे ज़मीन पर’ या ‘थ्री इडियट’ जैसी फ़िल्मों के जरिये शिक्षा और शिक्षा प्रणाली को बड़े पर्दे पर दिखाया गया है। बहरहाल, आज के दौर में हमारी शिक्षा प्रणाली और शिक्षा पद्धति पर सवाल भी खूब उठते हैं और उस पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत भी है। एक बुनियादी बात जो एजुकेशन सिस्टम को लेकर हमेशा ही कही जाती है वो यह कि कोई विद्यार्थी खराब नहीं होता, खराब या अच्छे शिक्षक होते हैं।
‘हिचकी’ की कहानी नैना माथुर (रानी मुखर्जी) की कहानी है। फ़िल्म में नैना माथुर एक खास तरह की बीमारी से ग्रसित है इस कारण उनके बोलने में रुकावट आती है। नैना का सपना है टीचर बनने का! मगर तमाम स्कूल्स बोलने में उनके रुकावट की वजह से उन्हें जॉब देने से मना आकार देते हैं। नौकरी की तलाश करती जब वो हार जाती हैं तब अंत में उनके सामने एक ऐसा प्रस्ताव आता है जिसे वो हंसते हुए स्वीकार कर लेती हैं।
लेकिन, यहां ट्विस्ट यह है कि नैना को जिस क्लास में पढ़ाना है वो नगर निगम के स्कूल में पढ़ने वाले उन बच्चों की क्लास है जिन्हें जबरदस्ती स्कूल में रखा गया है क्योंकि नियमों के आधार पर इन बच्चों को स्कूल से निकाला नहीं जा सकता। और यह बच्चे ज़ाहिर तौर पर विद्रोही किस्म के हैं जिन्हें स्कूल में अपनी जगह, अपने वर्क को लेकर कॉम्प्लेक्स तो हैं ही, तेवर भी बगावती है! ऐसे में नैना माथुर इनकी ज़िंदगी में आती है और किस तरह से इन बगावती बच्चों को अनुशासित और शिक्षा के प्रति जागरुक बच्चे बनाने का प्रयास करती हैं, इसी ताने-बाने पर बनी है फ़िल्म- ‘हिचकी’।
अभिनय की बात करें तो रानी मुखर्जी वैसे ही एक सशक्त अभिनेत्री हैं और यह फ़िल्म तो उन्हीं के लिए लिखी गई फ़िल्म है। तो ज़ाहिर तौर पर नैना माथुर को मजबूती से खड़ा कर दिया गया है! ख़ास तौर पर एक दृश्य में जब रानी को मालूम होता है कि बच्चों को सस्पेंड किया गया है तो उस दृश्य में नैना माथुर आपको रुलाने में सफल हो जाती है। उस सीन को एक एक्टर के तौर पर जिस तरह से रानी ने किया है वह तारीफ के काबिल है!
अवार्ड विनिंग फ़िल्म ‘आई एम कलाम’ में बाल कलाकार रहे हर्ष मायर सहित तमाम बच्चों ने बहुत ही प्रभावी अभिनय किया है। खास तौर पर जिक्र करना चाहेंगे बढ़िया बने अभिनेता फलां-फलां की फिल्म को एक नया आयाम दिया तकनीकी तौर पर भी फ़िल्म काफी मजबूत है।
सिनेमेटोग्राफी हो या एडिटिंग, कला निर्देशन हो यह कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग हर विभाग में फ़िल्म खरी उतरती हुई मालूम हुई है। हिचकी पूरी तरह से निर्देशक की फ़िल्म है। जब स्टोरी लाइन सिर्फ विचार पर आधारित हो तो उसका एक्सपेंशन बहुत ज्यादा नहीं हो सकता और वो पूरी तरह से निर्देशक की फ़िल्म मानी जाती है। ‘हिचकी’ अपने विचारों को दर्शकों तक पहुंचाने में सफल रही है।
कुल मिलाकर हिचकी एक ईमानदार फ़िल्म है जो आपको हंसाती भी है तो रुलाती भी है और साथ ही आपको सोचने पर भी विवश कर देती है। इस फ़िल्म को आप परिवार के साथ जाकर देख सकते हैं।