पानी की बर्बादी रोकेंः पानी नहीं बचा तो हम भी नहीं बचेंगे

asiakhabar.com | March 23, 2018 | 12:45 pm IST
View Details

जल की उपलब्धता को लेकर वर्तमान में भारत ही नहीं अपितु समूचा विश्व चिन्तित है। जल ही जीवन है। जल के बिना सृष्टि की कल्पना नहीं की जा सकती। मानव का अस्तित्व जल पर निर्भर करता है। पृथ्वी पर कुल जल का अढ़ाई प्रतिशत भाग ही पीने के योग्य है। इनमें से 89 प्रतिशत पानी कृषि कार्यों एवं 6 प्रतिशत पानी उद्योग कार्यों पर खर्च हो जाता है। शेष 5 प्रतिशत पानी ही पेयजल पर खर्च होता है। यही जल हमारी जिन्दगानी को संवारता है।

विश्व जल दिवस हर वर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है। आज विश्व में जल का संकट सर्वत्र व्याप्त है। विश्व में चहुंमुखी विकास का दिग्दर्शन हो रहा है। किंतु स्वच्छ जल मिल पाना कठिन हो रहा है। विश्व भर में साफ जल की अनुपलब्धता के चलते ही जल जनित रोग महामारी का रूप ले रहे हैं। इंसान जल की महत्ता को लगातार भूलता गया और उसे बर्बाद करता रहा, जिसके फलस्वरूप आज जल संकट सबके सामने है। विश्व के हर नागरिक को पानी की महत्ता से अवगत कराने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने विश्व जल दिवस मनाने की शुरुआत की थी। जल संरक्षण दिवस जल के प्रति चेतना और जागरूकता पैदा करने का महत्वपूर्ण अवसर है, परंतु यह तभी सार्थक हो सकता है जब हम जल के संरक्षण का असली महत्व समझ कर उसे अपने जीवन में शामिल करें। जल के बिना जीवन की कल्पना विडंबना है। देश के कई हिस्सों में अभी से जबरदस्त जल संकट गहरा गया है। जनसंख्या के भारी विस्फोट के साथ कल−कारखाने, औद्योगिकीकरण और पशुपालन को बढ़ावा दिया गया, उस अनुपात में जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं गया, जिस कारण आज गिरता जल स्तर बेहद चिंता का कारण बना हुआ है। एक रपट में बताया गया है कि दुनिया में करीब पौने 2 अरब लोगों को शुद्ध पानी नहीं मिल पाता। पृथ्वी के इस जलमण्डल का 97.5 प्रतिशत भाग समुद्रों में खारे जल के रूप में है और केवल 2.4 प्रतिशत ही मीठा पानी है।
यूएचओ के अनुसार, भारत में लगभग सत्तानवे लाख लोगों को पीने के पानी के स्वच्छ स्रोत प्राप्त नहीं हैं। यदि यह आंकड़ा सही है तो यह हमारे लिए बेहद दुखदाई और कष्टकारी है। धरती प्यासी है और जल प्रबंधन के लिए कोई ठोस प्रभावी नीति नहीं होने से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि पृथ्वी का 70 फीसदी हिस्सा पानी से लबालब है लेकिन इसमें पीने लायक अर्थात मीठा पानी केवल 40 घन किलोलीटर ही है। धरती पर जीवन का सबसे जरूरी स्रोत जल है क्योंकि हमें जीवन के सभी कार्यों को निष्पादित करने के लिये जल की आवश्यकता है जैसे पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़ा धोने, फसल पैदा करने, कल कारखानों आदि के लिये। बिना इसको प्रदूषित किये भविष्य की पीढ़ी के लिये जल की उचित आपूर्ति के लिये हमें पानी को बचाने की जरूरत है। हमें पानी की बर्बादी को रोकना चाहिये, जल का उपयोग सही ढंग से करें तथा पानी की गुणवत्ता को बनाए रखें।
जल जीवन का सबसे आवश्यक घटक है और जीविका के लिए महत्वपूर्ण है। यह समुद्र, नदी, तालाब, पोखर, कुआं, नहर इत्यादि में पाया जाता है। हमारे दैनिक जीवन में जल का बहुत महत्व है। हमारा जीवन तो इसी पर निर्भर है। यह पाचन कार्य करने के लिए शरीर में मदद करता है और हमारे शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। यह हमारी धरती के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह हमारे जीवन की गुणवत्ता निर्धारित करने में महत्वपूर्ण घटक है और सार्वभौमिक है। जल वनस्पति एवं प्राणियों के जीवन का आधार है उसी से हम मनुष्यों, पशुओं एवं वृक्षों को जीवन मिलता है। भारत नदियों का देश कहा जाता है। पहले जमाने में गंगाजल वर्षों तक बोतलों, डिब्बों में बन्द रहने पर भी खराब नहीं हुआ करता था, परन्तु आज जल−प्रदूषण के कारण अनेक स्थानों पर गंगा−यमुना जैसी नदियों का जल भी छूने को जी नहीं करता। हमें इस जल को स्वच्छ करना है एवं भविष्य में इसे प्रदूषित होने से बचाना है।
रामायण में लिखा है कि
शिति जल पावक गगन समीरा
पंचतत्व का बना शरीरा
इस चोपाई का अर्थ है- हमारा शरीर अग्नि, जल और आसमान से मिलकर बना है और यह पंचतत्व का बना हुआ है जल का महत्व हमारे जीवन में बहुत है। धरती पर जब तक जल नहीं था तब तक जीवन नहीं था और जल ही नहीं रहेगा तो जीवन के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती। वर्त्तमान समय में जल संकट एक विकराल समस्या बन गया है। नदियों का जल स्तर गिर रहा है। कुएं, बावडी, तालाब जैसे प्राकृतिक स्त्रोत सूख रहे हैं। घटते वन्य क्षेत्र के कारण भी वर्षा की कमी के चलते जल संकट बढ़ रहा है। वहीं उद्योगों के दूषित पानी की वजह से नदियों का पानी प्रदूषित होता चला गया लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
राजस्थान भारत के सबसे बड़े राज्य होने के गौरव से सम्मानित है वहीं भौगोलिक स्थिति फलस्वरूप इसे सीमित एवं न्यूनतम जलस्त्रोत विरासत में प्राप्त है। इस राज्य का क्षेत्रफल 3.42 लाख वर्ग किलोमीटर है जो देश के क्षेत्रफल का लगभग 10 प्रतिशत है। प्रदेश में उपलब्ध जल स्त्रोत देश के कुल स्त्रोतों के एक प्रतिशत से भी कम हैं। प्रदेश में भूजल का स्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है। कुएं, तालाब, बोरवैल सूखते जा रहे हैं। जहां 1984 में 237 में से 135 ब्लॉक्स सेफ थे, वहीं 2004 में 35 ब्लॉक्स और 2015−16 में सेफ ब्लॉक्स की संख्या घटकर केवल 25 ही रह गई है। हम 200 प्रतिशत भूजल का दोहन करते हैं तो केवल 2 प्रतिशत ही पुनर्भरण कर पाते हैं।
राजस्थान भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है। हमारी आबादी देश की आबादी की 5.5 प्रतिशत है। राज्य का सतही जल संसाधन 1.16 प्रतिशत है। यहाँ गर्मी में सामान्य आदमी आवश्यक सुविधाओं के लिए त्रस्त हो जाता है। यहां पानी के स्रोत भू−गर्भ अथवा वर्षा जल है। प्रदेश में स्थाई नदियों का अभाव है। ऐसे में वर्षा जल अथवा भू−गर्भ के जल पर हमारे जीवन की सांस अटकी हुई है। गर्मी का प्रकोप बढ़ने के साथ ही जल संकट भी बढ़ने लग जाता है। इस मौसम में जल के उपभोग की मात्रा बढ़ जाती है। पीने के पानी से लेकर नहाने तक जल की मात्रा में वृद्धि होने से जल संकट उपस्थित हो जाता है।
सरकार को जनता में जागरूकता लाने के लिए विशेष प्रबन्ध और उपाय करने होंगे। करोड़ों रूपयों की धनराशि जल प्रबन्धन पर प्रतिवर्ष व्यय की जा रही है। आम आदमी को जल संरक्षण एवं समझाइश के माध्यम से पानी की बचत का सन्देश देना होगा। वर्षा की अनियमितता और भूजल दोहन के कारण भी पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि हम जल के महत्व को समझें और एक−एक बूंद पानी का संरक्षण करें तभी लोगों की प्यास बुझाई जा सकेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *