तरिक्ष विज्ञानी स्टीफेन हॉकिंग आज दुनिया को अलविदा कह गये। इसे संयोग ही कहेंगे कि वह गैलीलियो की मृत्यु के 300वें साल पर पैदा हुए और आइंस्टीन के जन्मदिन पर संसार से कूच कर गए। विज्ञान हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करता है पर ऐसे मौके बहुत कम होते हैं, जब कोई वैज्ञानिक हमारे जीवन को उतना ही प्रभावित करता है, जितना कि उसकी खोज या उसका आविष्कार। आइंस्टीन के बाद स्टीफेन हॉकिंग शायद एकमात्र ऐसे विज्ञानी थे। वे कैंब्रिज में ल्यूकासियन प्रोफेसर के रूप में न्यूटन चेयर पर थे। व्हील चेयर में बैठे-बैठे अपनी चमकतीं अांखों से शून्य को निहारने वाले ब्रिटिश विज्ञानी हॉकिंग ने ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ को बहुत ही समृद्ध किया। ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में बिग बैंग के सिद्धांत से लेकर ब्लैक होल पर अपने शोधों के जरिये हॉकिंग ने ब्रह्मांड की हमारी समझ को एक ऐसी ऊंचाई पर ले गए जहां से ब्रह्मांड हमारे लिए ज्यादा दिलचस्प बन गया। इससे ब्रह्मांड को धार्मिंक और ईरवादी नजरिये से देखने की पुरातन और अवैज्ञानिक परम्परा पर विराम लग गया। अंतरिक्ष विज्ञान और खगोल भौतिकी के बारे में लोगों की दिलचस्पी उनकी वजह से ही बढ़ी। इस बारे में उनकी लिखी चर्चित पुस्तक ‘‘अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम’ का बहुत बड़ा योगदान है। 1988 में आई यह किताब उन्हें भी बेहद पसंद आई, जिनको विज्ञान के बारे में कुछ भी पता नहीं है। इस पुस्तक की एक करोड़ से ज्यादा कॉपियां बिक चुकी हैं और 35 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। आइंस्टीन की तरह ही हाकिंग बड़े मानवतावादी थे और यही शायद उनको विशिष्ट बनाता है। ईर और जीवन के बारे में उनके विचार मानवीयता से हमेशा ओत-प्रोत रहे। वह निरीश्वरवादी थे और पुनर्जन्म में भी उनका विास नहीं था। पर उनकी कही हुई किसी भी बात को दुनिया बड़े गौर से सुनती रही। विज्ञानी होते हुए भी वह विज्ञान के दुष्प्रभावों से दुनिया को आगाह करते रहते थे। आर्टफिीसियल इंटेलिजेंस के बारे में उनका मत ऐसा ही है। व्हीलचेयर पर बैठा एक ऐसा व्यक्ति जो न तो बोल सकता है, न चल सकता है, दुनिया में जहां कहीं गया लोग उनको देखने-सुनने के लिए उमड़ पड़े। हाकिंग 2001 में भारत भी आए थे और इस दौरे को उन्होंने ‘‘विशिष्ट’ बताया था। उनके अवदान मानवीय इतिहास में अमिट रहेंगे और वे अपनी खोजों में जिंदा रहेंगे।