युक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में मानव तस्करी का एक प्रमुख केंद्र भारत को बताया गया है, और दिल्ली को इसके व्यवसाय के लिए सुरक्षित ठिकाना। बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था कैम्पेन अगेंस्ट चाइल्ड ट्रैफिलंग ने मानव तस्करी के कारणों का खुलासा करते हुए साफ किया है कि भारत की भौगोलिक एवं सामाजिक विविधता मानव तस्करी के लिए बेहद मुफीद है। नेपाल के बच्चे मेघालय में काम करते हुए मिल जाएंगे। हरियाणा में लिंगानुपात बेहद कम होने और लड़कियों की संख्या बेहद घटने से असम की लड़कियां यहां दुल्हन के रूप में मिल जाएंगी। गोवा के स्पा सेंटर में काम करने वाली कमसिन लड़कियां और बच्चे मानव तस्करी के जरिए उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारत से यहां लाए जाते हैं।पूर्वोत्तर के राज्यों में एंटी ह्यूमन ट्रेफिलंग स्क्वॉड असम, अरु णाचल और मणिपुर में काम करती हैं, यहां मानव तस्करी एक बड़ा व्यापार है। भारत में नेपाल और बांग्लादेश से मानव तस्करी सबसे ज्यादा हो रही है, और भारत इसे रोकने के लिए बांग्लादेश के साथ लगातार काम भी कर रहा है। पश्चिम बंगाल विविधता और गरीबी के कारण मानव तस्करी से सबसे ज्यादा प्रभावित है। पिछले सालों में पश्चिम बंगाल में मानव तस्करी के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए। साल 2016 में यह आंकड़ा 3576 था। बाल विवाह के लिए बदनाम राजस्थान इसके बाद दूसरे और तीसरे नम्बर पर फिर कथित विकसित राज्य गुजरात आता है। दरअसल, भारत में शहरों की आबादी निरंतर बढ़ रही है। देश में पिछले एक दशक में गांवों की तुलना में शहरी आबादी ढाई गुना से भी अधिक तेजी से बढ़ी है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश की आबादी का 68.84 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण और 31.16 फीसद शहरी है। रोजगार की तलाश में लोग गांवों से शहर आने लगे हैं। शहर में रहने की दिक्कतें और रोजगार की जरूरतें गरीबों के लिए जानलेवा होती हैं। रोजी-रोटी की तलाश में अक्सर बाहर रहने वाले गरीब परिवारों पर मानव तस्करों की नजर होती है, और वे अपने बदतरीन इरादों में कामयाब भी हो जाते हैं। तस्कर इन बच्चों को देश-विदेश के विभिन्न इलाकों में बेच देते हैं, जहां इनसे भीख मंगवाना, वेश्यावृत्ति, घरों में काम, फैक्टरियों या होटलों में मजदूरी करवाई जाती है। यहां तक कि तस्कर बेहद वहशियाना तरीके से बच्चों के अंगों की खरीद-फरोख्त भी करते हैं। ‘‘वॉक फ्री फाउंडेशन’ के 2014 के ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के मुताबिक भारत में एक करोड़ चार लाख से अधिक लोग आधुनिक गुलामी में जकड़े हुए हैं। माया नगरी मुंबई को यूं तो सपनों की नगरी कहा जाता है, लेकिन यह भी अब मानव तस्करी के लिए कुख्यात हो रही है। इस मानव तस्करी का सबसे आसान शिकार लड़कियां होती है, जिन्हें रेड लाइट एरिया में धकेल दिया जाता है। यहां पर बांग्लादेश, नेपाल, म्यामांर, फिलीपींस, उज्बेकिस्तान और कजाखस्तान की लड़कियां भी मिल जाती हैं। मानव तस्करी के शिकार गरीब परिवार होने से पुलिस ऐसी घटनाओं को लेकर लापरवाह होती है, और मां-बाप रोजी-रोटी छूटने के डर से उन्हें ढूंढने का ज्यादा प्रयास भी नहीं कर पाते। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए पुलिस को फटकार लगाई थी कि वो सिर्फ अमीरों के बच्चे तलाश करती है।राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट कहती है कि 80 प्रतिशत पुलिस वाले गायब होने वाले बच्चों की तलाश में कोई रुचि नहीं दिखाते। राष्ट्रीय मानावधिकार आयोग के अनुसार भारत में हर साल लगभग 45 हजार बच्चे गायब होते हैं, और इनमें से 11 हजार बच्चे कभी नहीं मिलते। अब भारत में भी मानव तस्करी को रोकने के लिए कड़ा कानून बनाया गया है, जिसमें ऐसे मामलों में शामिल होने पर 10 साल से आजीवन कारावास की कैद भी हो सकती है। व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, सुरक्षा और पुनर्वास) विधेयक, 2018 के अनुसार समयबद्ध अदालती सुनवाई, पीड़ितों को संज्ञान की तिथि से एक वर्ष की अवधि के अंदर वापस भेजना, जिलों में सुनवाई की व्यवस्था और बेहतर पुनर्वास के प्रावधान किए गए हैं। उम्मीद है कि नये कानून का सही क्रियान्वयन होगा और भारत को इस संगठित अपराध से मुक्ति मिलने की संभावना बढ़ेगी। बहरहाल, मानव तस्करी की समस्या से निपटने के लिए पुलिस, स्वयंसेवी संगठनों, प्रशासन, महिला संगठनों और समाज को मिलकर व्यापक साझा प्रयास करने की जरूरत है।