नई दिल्ली। उत्तर-पूर्व के तीन राज्यों में आए विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा ने सभी को चौंका दिया है। त्रिपुरा में भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की है और इस जीत के पीछे पीएम और और अमित शाह ही नहीं बल्कि और भी कई लोगों की अहम भूमिका है। इनमें एक नाम ऐसा है जो पर्दे के पीछे रहते हुए आज से नहीं बल्कि पिछले 4 साल से राज्य में रहकर जमीन तैयार कर रहा था।
यह शख्स है भाजपा नेता सुनील देवधर, सुनील हमेशा मीडिया से दूर रहे लेकिन उन्होंने इस दौरान जमीन पर रहते हुए यहां के लोगों से जुड़कर और उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए कड़े प्रयास किए। इसी का नतीजा है कि भाजपा ने राज्य में इतनी बड़ी जीत दर्ज की है।
कभी चुनावी मैदान में नहीं उतरने वाले सुनील देवधर ने इस बेहतरीन प्रदर्शन का खाका खींचा था। उनके अथक प्रयास और बेहतरीन प्लानिंग के साथ राजनीति का यह परिणाम है। इससे पहले 2013 में पार्टी एक भी सीट हासिल नहीं कर पायी थी।
मीडिया में भी कभी नहीं आए देवधर
देवधर कभी मीडिया में भी नहीं आए लेकिन त्रिपुरा में भाजपा की कामयाबी के लिए आज सुबह मां त्रिपुरा सुंदरी के मंदिर में जाकर पूजा की। सुनील देवधर ने ट्विटर लिखा- ‘सुप्रभात! आज सुबह मां त्रिपुरा सुंदरी के मंदिर में जाकर मैंने मां की पूजा की और 37 लाख त्रिपुरावासियों के लिए दुष्ट शक्तियों से मुक्ति मांगी… मुझे पूरा भरोसा है की आज की मतगणना में भाजपा दो तिहाई बहुमत से विजयी होगी।‘
नार्थ ईस्ट में भाजपा के लिए जगाई उम्मीद
सुनील देवधर ने नॉर्थ ईस्ट में भाजपा के लिए उम्मीद जगाई। मराठी देवधर लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं और वे बांग्ला भाषा भी बोल लेते हैं। भाजपा की ओर से उन्हें नॉर्थ ईस्ट की जिम्मेदारी दी गयी थी। यहां रहते हुए उन्होंने स्थानीय भाषाएं सीख लीं। बताया जाता है कि जब वो मेघालय, त्रिपुरा, नागालैंड में खासी और गारो जैसी जनजाति के लोगों से मिलते हैं तो उनसे उन्हीं की भाषा में बातचीत करते हैं।
संभाला था वाराणसी को भी
इससे पहले देवधर ने वाराणसी व उत्तर प्रदेश में भाजपा को जीत दिलाया जिसके बाद नॉर्थ ईस्ट भी उनके हाथों सौंप दिया गया था। विधानसभा के चुनावों से ठीक पहले कई दलों के नेता और विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया था। त्रिपुरा में वाम दलों, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस में सेंध मारने का काम भी देवधर ने ही किया। यही नहीं, उन्होंने ही ‘मोदी लाओ’ की जगह ‘सीपीएम हटाओ’, ‘माणिक हटाओ’ जैसे नारों को बुलंद किया।
मुट्ठी भर कार्यकर्ताओं के साथ आए थे त्रिपुरा
देवधर जब त्रिपुरा पहुंचे थे उस वक्त वहां भाजपा के लिए कुछ नहीं था। हर काम की शुरुआत जड़ से करनी थी। देवधर के अनुसार, बस मुट्ठीभर कार्यकर्ता और एकमात्र नेता सुबल भौमिक के साथ आए थे। प्रभारी नियुक्त किए जाने के बाद उन्होंने महीने के 15 दिन यहीं बिताने शुरू किए। राज्य के कोने-कोने का दौरा किया। वहां के आदिवासियों से सीधे तौर पर जुड़ने के लिए उनकी भाषा सीखी क्योंकि राज्य की 31 फीसद आबादी यही हैं। उन्होंने बताया, ‘हमने यहां की स्थानीय समस्याओं से काम शुरू किया जैसे पानी की कमी, बिजली, सड़क, चिकित्सकों का अभाव, स्कूल में शिक्षक आदि। इससे हमें स्थानीय लोगों का समर्थन हासिल हुआ।‘
1985 में आरएसएस में हुए थे शामिल
नवंबर 2014 में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा उन्हें त्रिपुरा का प्रभारी बताया गया था तब से ही वे इस मिशन में जुटे थे। 1985 में देवधर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शमिल हुए और अब असंभव सी लगने वाली जीत भी भाजपा के सिर पर ताज के रूप में सजा दी।