अनुवांशिक डिसऑर्डर के आधार पर नहीं खारिज हो सकता बीमा क्लेम: HC

asiakhabar.com | February 27, 2018 | 5:17 pm IST
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नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के तहत अनुवांशिक गड़बड़ी को शामिल नहीं किए जाने को अवैध करार दिया है।

हाई कोर्ट ने इसे संविधान के तहत दिए गए समानता के अधिकार( अनुच्छेद 14) और स्वतंत्रता के अधिकार( अनुच्छेद 21) के खिलाफ माना है। तथ्य ये हैं कि कई तरह के अनुवांशिक डिसऑर्डर के अलावा डायबिटीज और दिल से जुड़ी बीमारियों को बीमा कवर से बाहर करने से मरीजों की परेशानी बढ़ जाती है। ऐसे में बड़ी जनसंख्या हेल्थ इंश्योरेंस के असल फायद से महरूम रह जाएगी। जिसका देश की सेहत पर बुरा असर पड़ेगा।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि, “अनुवांशिक बीमारियों को हेल्थ इंश्योरेंस से बाहर करना अवैध और असंवैधानिक है। दिल्ली हाई कोर्ट का ये फैसला दो बातों की पुष्टि करता है। पहला ये कि संविधान किसी भी शख्स के अनुवांशिक संरचना के हिसाब से भेदभाव नहीं करता है और राइट टू हेल्थ या राइट टू हेल्थकेयर संविधान में प्रदत्त जिंदगी जीने के अधिकार के तहत आता है। ऐसे में इससे किसी को महरूम नहीं रखा जा सकता है।”

HC ने IRDA को दिए निर्देश-

हालांकि अपने आदेश में कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनियों को अपने मुताबिक कॉन्ट्रैक्ट बनाने की छूट दी है। मगर इसमें भी ये ध्यान रखने को कहा है कि इसमें अनुवांशिक गड़बड़ियों के आधार पर किसी तरह का भेदभाव न हो। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट इंश्योरेंस लेने वाले की जांच और डाटा के आधार पर ही तैयार हो चाहिए। वहीं कोर्ट ने ये पाया कि इंश्योरेंस रेगुलेटरी डेवलपमेंट अथॉरिटी( IRDA) को ये देखना चाहिए था कि इंश्योरेंस कंपनियां कैसे जेनेटिक डिसऑर्डर का गलत इस्तेमाल कर रही हैं।

कोर्ट ने बताया कि अनुवांशिक गड़बड़ियों को लेकर इरडा की गाइडलाइन की आड़ में इंश्योरेंस कंपनियों ने सही दावों को भी खारिज कर दिया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में इंश्योरेंस रेगुलेटरी अथॉरिटी को ये निर्देश दिया कि वो इस बात को मुक्ममल करे कि किसी भी तरह के क्लेम को इंश्योरेंस कंपनी इस आधार पर खारिज नहीं कर सकती कि वो अनुवांशिक गड़बड़ी में आता है।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने जय प्रकाश तायल की याचिका पर फैसला सुनाया। दरअसल इस शख्स ने यूनाइडेट इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से अपना स्वास्थ्य बीमा कराया था। मगर दिल की गंभीर बीमारी होने की सूरत में बीमा कंपनी ने उसका क्लेम खारिज कर दिया था। इसके बाद उसने कंपनी के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी।


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