बाबा साहेब जयंती: याद करें संविधान निर्माता के 10 अनमोल विचार

asiakhabar.com | April 14, 2017 | 3:23 pm IST
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आज भारत के इतिहास के लिए अहम दिन है। आज 14 अप्रैल है और संविधान के रचयिता भीमराव अंबेडकर का जन्मदिन है। साल 1891 में मऊ में जन्मे अंबेडकर को देश बाबा साहेब के नाम से जानता है। बाबा साहेब का जन्म हिन्दू धर्म की महार जाति में हुआ था। वे अपने माता-पिता की 14वीं संतान थे। बॉम्बे में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1906 में उन्होंने 15 साल की उम्र में शादी की।

1908 में उन्हें छुआ छूत के बारे में जानकारी मिली। वे जिस जाति से आते थे उस जाति को उस समय नीचा समझा जाता था। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। बीआर अंबेडकर को भी बचपन से ही भेदभाव का सामना करना पड़ा था। वे जिस आर्मी स्कूल में पढ़ते थे,वहां क्लास के बच्चे उन्हें अंदर तक नहीं आने देते थे, पानी नहीं पीने देते थे।

बाबा साहेब मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में दो साल तक प्रिंसिपल पद पर कार्यरत रहे। स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री डॉ. अंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक माना जाता है। जाति के कारण उन्हें संस्कृत भाषा पढ़ने से वंचित रहना पड़ा। उन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय से पहले एमए बाद में पी.एच.डी. डिग्री प्राप्त की। तिरंगे में अशोक चक्र को जगह देने का श्रेय भी डॉ. अम्बेडकर को जाता है। डॉ. अम्बेडकर ही एकमात्र भारतीय हैं जिनकी पोट्रेट लंदन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगी है।

उन्होंने इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और भारत के इतिहास में अपना नाम दर्ज किया। संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर खुद आरक्षण को नापसंद करते थे। उन्होंने इसे ‘बैसाखी’ कहकर खारिज कर दिया था। डॉ. अम्बेडकर धारा 370 के खिलाफ थे, जो जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देता है।

आज उनकी 126वीं वार्षिकी है, आज के दिन उनके महान विचार हमें जरूर याद आते हैं। हिन्दुस्तान आपको आज उनके ऐसे ही विचारों से रू-ब-रू कराता है। जिन्होंने भारत के युवाओं के लिए एक दिशा तय की है।

शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करते रहो

हमेशा ऊंचा सोचो और अच्छा करो। जिंदगी सपनों से बड़ी होनी चाहिए।

मैं ऐसे धर्म को मानता हूं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए।

किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं ने जो प्रगति हासिल की उससे मापना चाहिए।

दिमाग का विकास मानव अस्तित्व का परम लक्ष्य होना चाहिए।

मैं सबसे पहले और अंत में भारतीय हूं

इतिहास बताता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र में संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है।

एक सफल क्रांति के लिए अंसतोष होना काफी नहीं है, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के महत्व को समझने की जरूरत है।

अगर मुझे लगा कि संविधान का गलत इस्तेमाल हो रहा है तो मैं इसे पहले जलाऊंगा।


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