चुनाव लड़ने से पहले बताना होगा जीवनसाथी की आय का स्रोत

asiakhabar.com | February 17, 2018 | 5:04 pm IST
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने देश की चुनावी राजनीति को साफ-सुथरी बनाने के लिए ऐतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संपत्ति में होने वाली बेतहाशा बढ़ोतरी पर चिंता प्रकट करते हुए उसके खतरों से आगाह कियाा और अब प्रत्याशियों के अलावा जीवन साथी व आश्रितों (माता-पिता,बच्चों आदि) की संपत्तियों के ब्योरे के साथ आय का स्रोत बताना भी अनिवार्य कर दिया।

केंद्र रखे संपत्ति पर नजर

दूरगामी महत्व के इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव प्रणाली में सुधार के कई उपाय किए हैं। कोर्ट ने कहा, ‘निर्वाचन प्रक्रिया की पवित्रता, स्वस्थ लोकतंत्र के अस्तित्व को कायम रखने का आधार है।’

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह ऐसा तंत्र बनाए, जिससे जनप्रतिनिधि निर्वाचित होने के दिन से उसके, जीवनसाथी व आश्रितों की संपत्ति की निश्चित अंतराल में जानकारी जुटाई जा सके और यह परीक्षण किया जा सके कि उसमें आय की तुलना में अनुपातहीन वृद्धि तो नहीं हुई है। अनुपातहीन संपत्ति मिलने पर दोषियों के खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई की भी सिफारिश की गई है।

असामान्य वृद्धि होने पर जा सकती है सदस्यता

– शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि निर्वाचित प्रतिनिधि, जीवनसाथी व आश्रितों की संपत्ति में अनुपातहीन बढ़ोतरी पाई जाए तो उनके खिलाफ उपयुक्त कानून के तहत कार्रवाई करने के साथ ही उनकी संसद या विधानसभाओं की सदस्यता खत्म करने पर भी विचार किया जाए।

– जस्टिस जे.चेलमेश्वर और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने एनजीओ ‘लोक प्रहरी’ की याचिका पर 56 पेज के फैसले में साफ कहा कि आय व संपत्ति की घोषणा नहीं करने वाले प्रत्याशियों को जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण का दोषी माना जाए।

– पीठ ने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों व उनके करीबियों, सहयोगियों की संपत्तियों में अनुचित बढ़ोतरी, किसी भी सच्चे लोकतांत्रिक समाज के नागरिकों के लिए चिंता का सबब होना चाहिए।

इन सुधारों के निर्देश दिए

-चुनाव नियमावली 1961 के नियम 4 और फॉर्म 26 में उपयुक्त संशोधन करें। इसमें प्रत्याशी व उसके परिजनों की आय के स्रोत बताना व संपत्ति की घोषणा अनिवार्य हो।

-सांसदों-विधायकों व उनके करीबियों, परिजनों तथा प्रत्याशियों की आय की जानकारी मांगना प्रासंगिक है। उन्हें इसके लिए कानून बनाकर बाध्य किया जाए।

‘लोकप्रहरी’ की ये मांगें थीं

-सांसद-विधायक रहते हुए ‘माननीयों’ की संपत्तियों में होने वाली अनुपातहीन संपत्ति की जांच कराई जाए।

-माननीयों की संपत्ति पर नजर रखने के लिए स्थाई तंत्र बनाया जाए।

-प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतरने से पहले उनकी आय व संपत्ति का ब्योरा देना अनिवार्य किया जाए।

26 सांसदों और 257 विधायकों की जांच नहीं – सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा 26 सांसदों और 257 विधायकों की संपत्ति में पांच गुना से ज्यादा इजाफा होने का आरोप लगाते हुए उनके मामलों की जांच करने की मांग की थी। कोर्ट ने यह मांग ठुकरा दी। कोर्ट ने कहा है कि वह ‘चुनिंदा छानबीन’ की इजाजत नहीं दे सकती, क्योंकि इसे ‘राजनीतिक बदले की कार्रवाई’ माना जाएगा।


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